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सैकड़ों स्त्रियों के हाथ में चरखा थमाकर उन्हें स्वावलंबी बनाने वाली इस महिला को सलाम, जिन्होंने किया यह काम

मध्य प्रदेश निवासी 27 वर्षीय उद्यमी उमंग श्रीधर ने नयी पीढ़ी के बीच गांधी को लौटा लाने की सच्ची प्रयास की है. फोर्ब्स अंडर-30 में स्थान बना चुकीं उमंग  उनके स्टार्टअप खाडिजी ने डिजिटल प्रिंट वाले खादी परिधानों को गांवों के कुटीर उद्योग से निकाल वैश्विक मार्केट तक पहुंचा दिया है. यही नहीं, गांधी ने ग्राम स्वराज, कुटीर  नारी सशक्तीकरण का जो पाठ पढ़ाया था, उमंग का यह कोशिश उनके उस हर स्वप्न को साकार करने की ओर बढ़ता दिखता है. उमंग ने चंबल-नर्मदा किनारे बसे पिछड़े गांवों की सैकड़ों स्त्रियों के हाथ में चरखा थमाकर उन्हें स्वावलंबी बना दिया.

ऐसे प्रारम्भ किया सफर

मध्य प्रदेश के इंदौर के एक छोटे से गांव किशनगंज में जन्मी  दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक करने वालीं उमंग ने मध्य प्रदेश के जावरा (मुरैना) स्थित गांधी सेवा आश्रम से 2017 में यह कोशिश प्रारम्भ किया. खादी को नया स्वरूप  नया मार्केट दिलाना ही उनका ध्येय था. इसके बाद जाबरोल, चंदेरी  महेश्वर की 250 स्त्रियों की टीम बनाई. कताई, बुनाई, फिनिशिंग, डिजाइनिंग, बिजनेस, प्रोडक्शन  मार्केटिंग तक, सभी जिम्मेदारियां स्त्रियों को ही दीं.

खादी गुम होने वाली वस्तु नहीं

उमंग श्रीधर कहती हैं, ‘बदलते परिवेश में लुप्त होती जा रही खादी पर शोध करते हुए मैं इस निष्कर्ष पर पहुंची कि खादी गुम होने वाली वस्तु नहीं है. हां, समय  फैशन की मांग के अनुरूप में इसमें बस कुछ नए इस्तेमाल की जरूरत है. इसे संजोकर नए रूप में संसार को दिखाया जा सकता है. इसी अवधारणा पर खाडिजी (खादी डिजिटल) की आरंभ की गई.’ वह कहती हैं, ‘अब इसी तर्ज पर 2020 तक मध्य प्रदेश में ऐसे 10 सेंटर स्थापित करने की योजना है. महाराष्ट्र  बंगाल में भी कुछ इकाइयां कार्य कर रही हैं.

अपनी ही अर्थव्यवस्था पर पूर्ण निर्भर रह सकते हैं गांव

उमंग बताती हैं, ‘मैंने दिल्ली विश्वविद्यालय  नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी से पढ़ाई जरूर की, लेकिन ग्रामीण परिवेश में पली-बढ़ी होने की वजह से मुङो यह पता था कि गांव अपनी ही अर्थव्यवस्था पर पूर्ण निर्भर रह सकते हैं  हर किसी को शहर जाने की आवश्यकता नहीं है. लिहाजा, पढ़ाई के बाद 2013 में मैंने खाडिजी कंपनी प्रारम्भ की, ताकि गांवों में आय के स्नोत विकसित कर बेहतर संभावनाएं तलाश सकूं. 2017 में गांधी सेवा आश्रम से खाडिजी ने असल उड़ान भरी. दो वर्ष पहले तक जिन स्त्रियों की आमदनी शून्य या चार हजार रुपये मासिक ही थी, वे आज खादी से 15 हजार रुपये महीने तक कमाने लगी हैं. हमारा काफिला बढ़ता जा रहा है.

खादी को नए मार्केट की जरूरत

अपने स्टार्टअप के मूलमंत्र के बारे में उमंग श्रीधरकहती हैं, ‘2013 से 2017 तक अपने अनुभव में मैंने पाया कि खादी को नए मार्केट की आवश्यकता है. मैंने खादी पर डिजिटल प्रिंटिंग प्रोसेस से फैब्रिक तैयार करवाए. बिजनेस-टू-बिजनेस के आधार पर इसे टेक्सटाइल स्टोर्स  फैशन डिजाइनर्स को दिया. देश के अतिरिक्त लंदन, इटली जैसे राष्ट्रों में हमारा फैब्रिक जा रहा है. कुछ अन्य राष्ट्रों में भी हिंदुस्तान की खादी को उतारने की तैयारी है.

दो वर्ष में बढ़ा दायरा

उमंग श्रीधर महज दो वर्ष में ही उमंग खादी को गांवों के दायरे से निकालकर उस स्तर पर ले गईं कि प्रतिष्ठित बिजनेस पत्रिका फोर्ब्स की अंडर-30 एचीवर्स की सूची में उन्हें जगह देकर सम्मानित किया गया. उन्हें देश के शीर्ष-50 नवोन्मेषी उद्यमियों की सूची में भी शामिल कर सम्मानित किया गया है. मुंबई निवासी फैशन डिजाइनर तानिया चुघ भी उनके साथ इस कार्य में जुड़ी हुई हैं.

आने वाला समय खादी का

उमंग का मानना है कि आने वाला समय गांधी  खादी का ही है. गांधी के विचारों की आज हमें हर कदम पर जरूरत पड़ रही है, चाहे वह स्वच्छता की बात हो, पर्यावरण का पहलू हो, ग्राम स्वराज की बात हो या नारी सशक्तीकरण की. वह कहती हैं, ‘खादी की बात करें तो दुनियाभर में तापमान बदलाव के दौर में सिर्फ कॉटन (सूती) ही एकमात्र फैब्रिक है, जो राहत देता है. अनेक शोध खादी को अनुकूल परिधान बता रहे हैं. टेक्सटाइल-फैशन सेक्टर सबसे ज्यादा रोजगार देने वाले क्षेत्रों में से एक है  इसे देखते हुए खादी की महत्ता का आकलन किया जा सकता है. सिलाई, कढ़ाई में निपुण भारतीय स्त्रियों के लिए यह अपार संभावनाओं के द्वार खोल सकता है, लेकिन यह क्षेत्र असंगठित है जिसे तराशा जाना चाहिए.

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