आयुर्वेद में जड़ी बूटियों की रानी कही जाने वाली तुलसी कई गुणों से युक्त है. यह शरीर के लिए अंदरुनी और बाहरी दोनों रूपों में लाभकारी है. मौसमी और स्कीन संबंधी रोगों के अतिरिक्त इसके पत्ते रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में उपयोगी हैं. इसकी खास बात है कि यह आदमी की तासीर के अनुसार कार्य कर सकती है. जानते हैं वनौषधि विशेषज्ञ से इसके इस्तेमाल के बारे में-
बहूगुणी होने के कारण तुलसी के पत्ते ही नहीं बल्कि इसकी टहनी, फूल, बीज आदि को आयुर्वेद व नैचुरोपैथी पद्धति में भी उपचार के लिए इस्तेमाल में लेते हैं.
गुण – एंटीबैक्टीरियल, एंटीफंगल, एंटीपायरेटिक, एंटीसेप्टिक एंटीऑक्सीडेंट व एंटीकैंसर गुणों से भरपूर है.
फायदे : संक्रमण, चेहरे की चमक और इम्युनिटी बढ़ाने, स्कीन रोगों, सर्दी, जुकाम, खांसी, सिरदर्द, चक्कर आना और कई बड़े रोगों के उपचार में भी उपयोगी है.
उपयोग : तुलसी के पत्तों को पानी से निगलने के अतिरिक्त काढ़ा बनाकर भी पी सकते हैं. चाय आदि में भी पत्तियां उबाल लें. इसकी पत्तियों को चबाना नहीं चाहिए.