भारत ग्लोबल भूख सूचकांक की सूची में नीचे गिरा है। 117 देशों के सर्वे में भारत 102वें स्थान पर पिछड़ गया है। भारत का ये स्थान दक्षिण एशियाई देशों का सबसे निचला पायदान है। बाकि के दक्षिण एशियाई देश 66वें से 94वें स्थान के बीच हैं। भारत इस सूची में ब्रिक्स के बाकि देशों से बहुत पीछे है जिसमें ब्राजील, रूस, इंडिया,चीन और साउथ अफ्रीका देश शामिल है। इन देशों में से सबसे खराब प्रदर्शन साउथ अफ्रीका का है जो कि 59वें स्थान पर है।
जीएचआई इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट से संबंधित आयरलैंड की ऐड एजेंसी कंसर्न वर्ल्डवाइड और जर्मन ऑर्गेनाइजेशन वेल्ट हंगर तैयार करते हैं। ग्लोबल हंगर इंडेक्स की रैंकिंग में 100 प्वाइंट्स पर किसी भी देश को रैंक किया जाता है।
2014 से 2018 के बीच जुटाए गए आंकड़ों से तैयार ग्लोबल हंगर इंडेक्स विभिन्न देशों में कुपोषित बच्चों की आबादी, उनमें लंबाई के अनुपात में कम वजन या उम्र के अनुपात में कम लंबाई वाले पांच वर्ष तक के बच्चों का प्रतिशत और पांच वर्ष तक के बच्चे की मृत्यु दर पर आधारित हैं।
ग्लोबल हंगर इंडेस्क में भूख की स्थिति के आधार पर देशों को 0 से 100 अंक दिए गए हैं। इसमें 0 अंक सर्वोत्तम यानी भूख की स्थिति नहीं होना है। 10 से कम अंक का मतलब है कि देश में भूख की बेहद कम समस्या है।
इसी तरह, 20 से 34.9 अंक का मतलब भूख का गंभीर संकट, 35 से 49.9 अंक का मतलब हालत चुनौतीपूर्ण है और 50 या इससे ज्यादा अंक का मतलब है कि वहां भूख की बेहद भयावह स्थिति है।
इस साल भारत का स्कोर 30.3 है जो इसे सीरियस हंगर कैटेगरी में लाता है। हैरानी की बात ये है कि इस इंडेस्क में पाकिस्तान भारत से उपरी पायदान पर है। 2015 में भारत की ग्लोबल हंगर इंडेस्क रैंकिग 93 थी, तब पाकिस्तान ही ऐसा देश था जो एशियाई देशों में भारत से नीचे था इस साल ये 94 वें स्थान के साथ भारत से उपर है। वहीं 2016 में 97वें, 2017 में 100वें और साल 2018 में 103वें स्थान पर रहा है।
ग्लोबल हंगर इंडेक्स के आकड़े बताते हैं कि भारत के कारण जीएचआई में दक्षिण एशिया की स्थिति अफ्रीका के उप-सहारा क्षेत्रों से भी बदतर हो गई है। जीएचआई पर पेश एक रिपोर्ट कहती है कि भारत में 6 से 23 महीनों के सिर्फ 9.6% बच्चों को ही न्यूनतम स्वीकृत भोजन उपलब्ध हो पाता है।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से जारी हालिया रिपोर्ट में तो यह आंकड़ा 6.4% ही बताया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2000 के बाद से नेपाल ने इस मामले में सबसे ज्यादा सुधार किया है।रिपोर्ट बताते है कि भारत में बच्चों में कुपोषण की स्थिति भयावह है। देश में 20.8 फीसदी बच्चों का पूर्ण शारीरिक विकास नहीं हो पाता है जिसकी बड़ी बजह कुपोषन है।