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टीएन शेषन: नहीं रहे देश की चुनावी तस्वीर बदलने वाले शख्स, जानें उनका योगदान

पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त्त टीएन शेषन का चेन्नई में रविवार यानी 10 नवम्बर को 86 साल की उम्र में निधन हो गया। टीएन शेषन को 12 दिसंबर 1990 को भारत के 10वें मुख्य चुनाव आयुक्त का पदभार दिया गया और वे 1996 तक इस पद पर रहें। शेषण को उनके कार्यकाल के दौरान देश में व्यापक चुनाव सुधार करवाने का श्रेय दिया जाता है।

केरल के पलक्कड़ जिले में 15 दिसंबर 1932 को टीएन शेषन का जन्म हुआ और 1995 में वे आईएएस बैच के अधिकारी बने। जिंदगी के अंतिम समय में वे बेटी श्रीविधा और दमाद महेश के साथ थे। उनकी पत्नी जयलक्ष्मी का देहांत पिछले साल हो गया था। टीएन शेषन की छवि के चलते 90 के दशक में भारत में मजाकिया तौर पर कहा जाता था कि भारतीय राजनेता सिर्फ दो चीजों से डरते हैं- एक खुदा और दूसरा टीएन शेषन से।

शेषन के आने से पहले माना जाता था कि चुनाव आयुक्त वहीं करता था जो उस समय की सरकार चाहती थी। शेषन ने मुख्य निर्वाचन आयुक्त्त रहते हुए भारतीय चुनाव प्रणाली में कई बदलाव किये। भारत में मतदाता पहचान पत्र की शुरुआत करने का श्रेय शेषन को जाता है।

शेषन को जब 1996 में मैगेसेसे अवार्ड से सम्मानित किया गया तब उन्होंने कहा था कि गरीबी और अशिक्षा के बावजूद भारत के मतदाता पोलिंग बूथ तक जाते हैं और उसी व्यक्ति के नाम पर मोहर लगाते हैं जिसे वे शासन करने के योग्य मानते हैं। इस पद पर रहते हुए उन्होंने ऐसे काम किए जिसे चुनाव प्रक्रिया में भारी सुधार माना जाता है। इनके समय में बोगस वोटिंग पर एक तरह से विराम लगना शुरू हुआ और इसी समय लोगों ने जाना कि आचार संहिता को कितना प्रभावी बनाया जा सकता है।

शेषन ने मुख्य निर्वाचन आयुक्त्त पद पर रहते हुए कहा था कि आई ईट पॉलिटीशियंस फॉर ब्रेक फास्ट। इन्होंने ये सिर्फ बोला ही नहीं बल्कि इसको कर के भी दिखाया। इसी कारण इन्हें अल्सेशियन भी कहा जाता था। 1992 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में उन्होंने सभी जिला जिस्ट्रेटों, पुलिस अधिकारियों और करीब 280 चुनाव पर्यवेक्षकों को ये साफ कर दिया था कि चुनाव में किसी भी गलती के लिए वे शेषन के प्रती जवाबदेह होंगे। हिमाचल प्रदेश में चुनाव के दिन पंजाब के मंत्रीयों के 18 बंदूकधारियों को राज्य की सीमा पार करते हुए पकड़ लिया। यूपी और बिहार के सीमा पर बिहार के विधायक पप्पू यादव को सीमा पार नहीं करने दिया गया।

हिमाचल प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल गुलशेर अहमद को शेषन के समय इस्तीफा देना पड़ा। गुलशेर पर आरोप था कि उन्होंने राज्यपाल पद पर रहते हुए अपने बेटे के पक्ष में सतना चुनाव क्षेत्र में चुनाव प्रचार किया। इसी तरह यूपी में पूर्व खाद्य मंत्री बलिराम भगत को भी चुनाव प्रचार बंद होने के बाद अपने भतीजे के लिए प्रचार करते पकड़ा गया। उस समय उन्हें चेतावनी दी गई की वे अपना भाषण बंद करे नहीं तो चुनाव रद्द किया जा सकता है।

टीएन शेषन आईएएस के अलावा रक्षा सचिव से लेकर कैबिनेट सचिव पद पर भी रहे। उन्होंने 1997 में राजनीति में भी कदम रखा। वे केआर नारायन के खिलाफ राष्ट्रपति चुनाव में खड़े हुए लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। इसके बाद उन्होंने 1999 में लोकसभा चुनाव भी लड़ा लेकिन इसमें भी उन्हे सफलता नहीं मिल पाई।

देश में पहले वोटों का सौदा करना आम बात थी उम्मीदवार तरह-तरह के लालच देकर वोट पाते थे। लेकिन शेषन ने इस पर रोक लगाने के लिए सख्त कार्यवाई की। पोलिंग बूथों को दबंगों से सुरक्षित करने के लिए केंद्रीय पुलिस बलों की तैनाती शेषन के समय अहम कदम था। इतना ही नहीं मतपेटियों की चोरी पर लगाम, उम्मीदवारों के चुनाीव प्रचार में खर्च की सीमा और चुनाव प्रचार और पोस्टर से लोगों को निजात दिलाने में भी शेषन की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।

टीएन शेषन ने चुनाव के दौरान कई नेताओं का चेहरा सबके सामने साफ किया। उन्होंने सार्वजनिक संसाधनों का अवैध इस्तेमाल, चुनाव के दौरान शराब की बिक्री पर प्रतिबंध, बिना लाइसेंस के हथियारों को जब्त करने जैसे गतिविधियो पर

सख्ती से काम किया। इसके साथ ही धर्म के नाम पर चुनाव प्रचार पर भी रोक लगाया। इन सभी प्रयासों के कारण आज भारत में चुनाव प्रक्रिया निष्पक्ष रूप से किया जाता है।

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