उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने अपने तीन साल का कार्यकाल पूरा कर लिया है. सत्ता के अनुभव की कमी के बावजूद योगी ने कदम-कदम पर सीखने, समझने और एक्शन लेने में हिचक नहीं दिखाई. शायद इसी का नतीजा है कि बीजेपी में मोदी-शाह के बाद तीसरे सबसे कद्दावर नेता के तौर पर अपना सियासी कद बनाया.
योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री के पद से हटाने की बातें पिछले तीन साल में कई बार उड़ीं. ये भी कहा गया कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी उनसे नाराज है और उनकी केंद्र में चलती नहीं, लेकिन योगी इन सबकी परवाह किए बगैर अपने मिशन को धार देने में जुटे रहे.
हालांकि मार्च 2017 में यूपी में दो डिप्टी सीएम का फैसला होते ही यह साफ हो गया था कि सूबे में सत्ता के एक नहीं कई केंद्र होंगे. डिप्टी सीएम केश्व प्रसाद मौर्य की राजनीतिक महत्वाकांक्षा किसी से छिपी नहीं है. इसके बावजूद सीएम योगी ने पिछले तीन सालों में अपने कार्यों और राजनीतिक एजेंडे के जरिए जिस तरह बीजेपी संगठन और सरकार पर पकड़ बनाई है, उसे सूबे में न तो पार्टी के अंदर और न ही विपक्ष में कोई चुनौती देता नजर आ रहा है. इससे साफ है कि देश में मोदी-शाह बीजेपी को कई तीसरी सबसे बड़ा नाम है तो वह योगी आदित्यनाथ का है.