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महाशिवरात्रि के बाद इस अमावस को मनाने के पीछे होता है एक बड़ा महत्व

कल देशभर में महाशिवरात्रि का महापर्व मनाया गया। महाशिवरात्रि एक अंधकारपूर्ण रात मानी जाती हैं क्योंकि इसके ठीक बाद अमावस्या की रात आती हैं मगर महाशिवरात्रि का अंधकार एक ऐसी रोशनी प्रदान करता हैं जो जीवन में अमावस के हर पल में प्रकाश बांटती हैं।


वही पंचांग के मुताबिक कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि को ही अमावस्या का नाम दिया गया हैं। इस तिथि के देवता पितृदेव माने जाते हैं इस तिथि पर सूर्य और चंद्रमा समान अंशों पर एक ही राशि में स्थिति होते हैं वही धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक कृष्ण में दैत्य और शुक्ल पक्ष में देवता सक्रिय होते हैं अमावस्या तिथि पर पितरों को प्रसन्न किया जाता हैं। तो आज हम आपको अमावस्या तिथि से जुड़ी कुछ खास बातें बताने जा रहे हैं तो आइए जानते हैं।

वही फाल्गुन के दिन व्रत उपवास, स्नान और पितरों का तर्पण किया जाता हैं इस दिन पीपल के पेड़ का दर्शन करना शुभ माना जाता हैं पितरों की शांति के निमित्त अनुष्ठान किए जाते हैं। इसके महत्व का अनुमान इसी से लगाया जा सकता हैं कि यह अमावस्या पितरों को मोक्ष प्रदान करने वाली होती हैं

पितरों की शांति के लिए किए जाने वाले दान, तर्पण, श्राद्ध आदि के लिए ये दिन बहुत ही खास माना जाता हैं निरंतरता में प्रत्येक अमावस्या को आप पितरों का श्राद्ध नहीं कर पाते हैं तो कुछ अमावस्याएं विशेष तौर पर केवल श्राद्ध कर्म के लिए ही शुभ और महत्वपूर्ण मानी जाती हैं। फाल्गुन मास की अमावस्या उन्हीं में से एक मानी जाती हैं इस अमावस्या पर केवल श्राद्ध कर्म ही नहीं बल्कि कालसर्प दोष निवारण हेतु भी अमावस्या विशेष होती हैं।

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