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तो इस वजह से किसी भी धार्मिक काम की शुरुआत में बजाया जाता है शंख

पूजा-पाठ, उत्सव, हवन, विजय उत्सव, आगमन विवाह, राज्याभिषेक आदि शुभ कार्यों में शंख बजाना शुभ और अनिवार्य माना जाता है। क्योंकि इसे विजय, समृद्धि, यश और शुभता का प्रतीक माना गया है। मंदिरों में सुबह और शाम के समय आरती में शंख बजाने का विधान है। शंखनाद के बिना पूजा-पाठ अधूरी मानी जाती है। साथ ही सभी धर्मों में शंखनाद को बड़ा ही पवित्र माना गया है।

अथर्ववेद के चौथे कांड के दसवें सूक्त में कहा गया है कि शंख अंतरिक्ष वायु, ज्योतिर्मंडल और सुवर्ण से युक्त है। परंतु क्या आप जानते हैं कि कोई भी धार्मिक कार्य शुरू करने से पहले शंख क्यों बजाया जाता है? यदि नहीं, तो आगे इसे जानिए।

शास्त्रों में कहा गया है कि शंख की ध्वनि शत्रुओं को निर्बल करने वाली होती है। पुराणों में श्रीविष्णु का पांचजन्य, अर्जुन का देवदत्त आदि के शंखों का जिक्र है। पुराणों के अनुसार पूजा के समय जो व्यक्ति शंख बजाता है उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और वह भगवान विष्णु का आशीर्वाद पाता है। साथ ही शंख को सूर्योदय से पहले और सूर्यास्त के बाद बजाने के पीछे की मान्यता यह है कि सूर्य की किरणें ध्वनि की तरंगों में बढ़ा डालती है।

शंख ध्वनि का तन-मन पर प्रभाव पड़ता है और इसमें प्रदूषण को भी दूर करने की अद्भुत क्षमता होती है। कहा जाता है कि घर में शंख रखने से नकारात्मक ऊर्जा खत्म हो जाती है। साथ ही शंख में जल भरकर पूजा स्थान पर रखा जाना और पूजा-पाठ और अनुष्ठान के बाद श्रद्धालुओं पर उस जल को छिड़कने के पीछे मान्यता है कि इसमें किटाणुनाशक शक्ति होती है।

साथ ही इसमें जो गंधक, फास्फोरस और कैल्सियम की मात्रा होती है उसके अंश भी जल में आ जाते हैं। इसलिए शंख के जल को छिड़कने और पीने स्वास्थ्य अच्छा रहता है।

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