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पिता की विरासत से किसानों की सियासत तक…. 

किसान नेता अजीत सिंह का निधन देश की राजनीति के लिए एक अपूरणीय क्षति है। 22 अप्रैल को कोरोना संक्रमित हुए अजीत सिंह (82) ने गुरुवार को गुरुग्राम के एक प्राइवेट हॉस्पिटल में अंतिम सांस ली। अजीत सिंह के निधन पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, पीएम नरेंद्र मोदी व सीएम योगी सहित कई बड़े नेताओं ने उन्हें श्रद्धांजलि दी है। पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय चौधरी चरण सिंह के बेटे अजीत सिंह का जन्म 12 फरवरी 1939 को मेरठ के भड़ोला में हुआ था।

चौधरी अजित सिंह के लिए कहा जाता है की उन्हें सियासत अपने पिता चौधरी चरण सिंह से विरासत में मिली थी। शायद इसी वजह से अजित सिंह को भी लोग उनके पिता की तरह ही किसान और जाट नेता कहते थे। अपने पिता की विरासत और किसानों के हक़ की लड़ाई लड़ने के इरादे से उन्होंने राजनीति में कदम रखा। अजित सिंह का दबदबा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में काफी ज्यादा था। पहली बार वो 1986 में राज्य सभा सांसद बने और इसके बाद वे सात बार बागपत से लोकसभा चुनाव जीते। साल 1989 से लेकर 2014 तक वीपी सिंह, नरसिम्हा राव, अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सरकार में केंद्रीय मंत्री भी रहे। इस बीच समय और सियासी मिजाज को भांपते हुए वो अपनी रणनीतिक साझेदारी बदलते रहे। साल 1987 में उन्होंने लोक दल (अजित) का निर्माण किया। पार्टी बनाने के करीब एक साल बाद उन्होंने जनता पार्टी में इसका विलय कर दिया। उस समय चौधरी अजित सिंह इस दल के अध्यक्ष बनाए गए थे।

जब जनता दल बनी तो चौधरी अजित सिंह इसके महासचिव बनाए गए।साल 1997 में अजित सिंह ने राष्ट्रीय लोकदल की स्थापना की। इसके साथ ही 1997 के उपचुनाव में बागपत से लोकसभा चुनाव जीता। वहीं 1998 के चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। हालांकि 1999 के चुनाव में वो फिर लोकसभा पहुंचे। वर्ष 2001 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने बीजेपी के साथ गठबंधन कर चुनाव जीता और सरकार में कृषि मंत्री बने। साल 2003 में अजित सिंह की पार्टी ने बीएसपी के साथ भी गठबंधन किया, हालांकि बसपा के साथ उनका रिश्ता ज्यादा दिनों तक नहीं चला। इसके बाद जब प्रदेश में मुलायम सिंह की सरकार बनी तो साल 2007 तक उन्होंने सपा को अपना समर्थन दिया। किसानों के मुद्दे पर मतभेद होने के बाद उन्होंने सपा से अपना समर्थन वापस ले लिया। इसके बाद 2009 में उन्होंने एनडीए में शामिल होकर चुनाव लड़ा और एक बार फिर से लोकसभा पहुंचे।


अजित सिंह साल 2011 से 2014 तक मनमोहन सरकार में मंत्री रहे। उन्हें तब बड़ा झटका लगा जब साल 2014 में वह मुजफ्फरनगर सीट से लोकसभा चुनाव हार गए। इसके बाद साल 2019 में अजित मुजफ्फरनगर से लड़े, लेकिन बीजेपी के संजीव बलियान के हाथों उन्हें हार का सामना करना पड़ा। साल 2013 में हुए मुजफ्फरनगर के दंगों ने आरएलडी की राजनीति को काफी नुकसान पहुंचाया। दंगों की आग ने रालोद के मजबूत जाट-मुस्लिम समीकरण को ध्वस्त कर दिया।

बिल गेट्स की कंपनी आईबीएम में की नौकरी

अजीत सिंह न केवल सफल राजनेता थे, बल्कि वो एक अच्छे स्कॉलर भी थे। उन्होंने आईआईटी खड़गपुर से कंप्यूटर साइंस में बीटेक और इलेनॉइस इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से एमएस की डिग्री हासिल का रखी थी। अजीत सिंह पहले भारतीय थे जिन्होंने 1960 के दशक में बिल गेट्स की कंपनी आईबीएम में नौकरी की।

जब सीएम बनते-बनते रह गए अजीत सिंह

यूपी में किसानों के मसीहा कहे जाने वाले अजीत सिंह का उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने का सपना कभी साकार नहीं हो सका। अस्सी के दशक में जनता पार्टी, जन मोर्चा, लोकदल (अ) और लोकदल (ब) ने मिलकर जनता दल का गठन किया। 1980 के चुनाव में एक दशक के बाद विपक्ष को 208 सीटों पर जीत मिली थी। यूपी में उस समय कुल 425 विधानसभा सीटें थी, जिसके चलते जनता दल को बहुमत के लिए 14 अन्य विधायकों की जरूरत थी। जनता दल की जीत के बाद अजीत सिंह का नाम मुख्यमंत्री के लिए घोषित किया जा चुका था, लेकिन मुलायम सिंह यादव ने ऐसा दांव चला कि वो सीएम बन गए। बहुमत के लिए 14 अन्य विधायकों की जरूरत थी। जनता दल की जीत के बाद मुख्यमंत्री पद के लिए चौधरी अजित सिंह का नाम तय हो चुका था। लेकिन मुलायम सिंह यादव ने ऐसा दांव चला कि जनमोर्चा के विधायक अजीत सिंह के खिलाफ खड़े हो गए और मुलायम को सीएम बनाने की मांग कर बैठे। इस तरह मुलायम सिंह सीएम बन गए।

      अनुपम चौहान

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