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कर्नाटक में मिली हार से सतर्क हुई बीजेपी , मध्य प्रदेश में करने जा रही ऐसा…

र्नाटक में चुनावी हार के बाद भाजपा नेतृत्व अपनी सत्ता वाले राज्यों को लेकर सतर्क हो गया है। खासकर मध्य प्रदेश को लेकर जहां इस साल के आखिर में विधानसभा चुनाव होने हैं। पार्टी नेतृत्व राज्य की हर सीट का फीडबैक हासिल कर रहा है। साथ ही संगठनात्मक स्थिति की भी सतत समीक्षा की जा रही है। कुछ बदलाव किए जाने की भी संभावना जताई जा रही है।

लोकसभा चुनावों के पहले इस साल के आखिर में जिन पांच राज्यों में चुनाव होने हैं, उनमें केवल मध्य प्रदेश में भाजपा की सरकार है। छत्तीसगढ़ व राजस्थान में कांग्रेस, तेलंगाना में बीआरएस व मिजोरम में एमएनएफ की सरकार है। ऐसे में लोकसभा चुनावों के लिए भाजपा पर मध्य प्रदेश में सत्ता बरकरार रखने का दबाव है। दरअसल, हाल में भाजपा ने अपनी सत्ता वाले दो राज्यों कर्नाटक व हिमाचल में सत्ता गंवाई है। उसने गुजरात को जरूर जीता है, लेकिन वहां के समीकरण अलग हैं।

मध्यप्रदेश को लेकर भाजपा की एक चिंता यह भी है कि वहां पर सिंधिया के साथ आए नेता अभी तक पार्टी के साथ पूरी तरह से समायोजित नहीं हो सके हैं। ऐसे में टिकट देने और चुनाव में दिक्कतें आ सकती है।

नगर निगम चुनावों में यह टकराव दिख चुका है, जबकि भाजपा ग्वालियर व मुरैना के अपने गढ़ों में महापौर का चुनाव हार गई थी। भाजपा में नाराजगी भी बढ़ी है। हाल में प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी के बेटे पूर्व मंत्री दीपक जोशी भी कांग्रेस में शामिल हो गए हैं। उनकी सीट सिंधिया के साथ आए विधायकों के पास जाने से टिकट मिलना मुश्किल था।

मध्य प्रदेश में बीते चुनाव में 230 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस बहुमत से दो सीटें कम 114 पर रह गई थी और भाजपा (109) कांग्रेस से पांच सीटें पिछड़ गई थी।

यानी लगभग बराबरी में थोड़ी से बढ़त से कांग्रेस की सरकार बन गई थी। कांग्रेस की यह सरकार लगभग सवा साल ही चल पाई। ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ डेढ़ दर्जन से ज्यादा विधायकों के कांग्रेस छोड़ देने के साथ यह सरकार गिर गई और भाजपा की सरकार फिर से बन गई थी।

सिंधिया व उनके समर्थक भी भाजपा में आ गए थे। लगभग ऐसा ही कर्नाटक में हुआ था, जहां एचडी कुमारस्वामी के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार कांग्रेस व जद एस के कुछ विधायकों के टूटने से लगभग सवा साल में गिर गई थी। बाद में भाजपा की सरकार बनी थी।

 

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