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सोन चिरैया के अद्भुत रंग

डॉ दिलीप अग्निहोत्रीप्रख्यात गायिका पद्मश्री मालिनी अवस्थी सोन चिरैया के माध्यम से लोक संगीत की विविध विधाओं के संरक्षण व संवर्धन में सतत सक्रिय है। संरक्षण व संरक्षण के साथ ही उन्होंने इसमें सम्मान को भी समाहित किया है। लोक निर्मला सम्मान इस क्षेत्र का सबसे बड़ा सम्मान है।

विगत वर्ष यह सम्मान पंडवी गायिका तीजन बाई को मिला था। इस बार लोक कलाकार गुलाबो सपेरा को यह सम्मान दिया गया। इस अवसर पर होने वाला सांस्कृतिक समारोह भी अपने में सभी लोक कलाकारों के प्रति सम्मान की अभिव्यक्ति जैसा होता है। लखनऊ में एक ही स्थान पर लोक कलाओं के अनेक रंग एक साथ प्रकट होते है।

इसमें भारत की अति प्राचीन संस्कृति धरोहर के दर्शन होते है। जिसे हमारे लोक कलाकारों ने अनेक परेशानियों का सामना करते हुए सहेज कर रखा है। चकाचौध के इस दौर में इनकी राह आसान नहीं रही। फिर भी इन कलाकारों ने संघर्ष किया,संगीत साधना को निरन्तर जारी रखा,आर्थिक अभाव देखा,अनेक विरोधों का सामना किया,लेकिन विचलित नहीं हुए। इस बार भी लोक निर्मला सम्मान समारोह में लोक संगीत की आकर्षक प्रस्तुति हुई।

मालिनी अवस्थी ने बताया कि इसमें पुरलिया बंगाल से आये खरसावां शैली के छाऊ ले दल ने लोगों का दिल जीत लिया। प्रमाणिक नंदा एवं उनके साथ पधारी युवा कलाकारों की टोली में मौलिकता थी। कलात्मकता व रचनात्मकता थी। इनके मुखौटे,मुखसज्जा सब अलग थी,कथाओं कहन भी में भी एक अलग अनगढ़ भारतीय गंध थी।

उनके द्वारा प्रस्तुत शिकारी की रोचक प्रस्तुति दी गई। जनजातीय समाज से आये कम उम्र के बच्चों ने शिकार को जैसा दिखाया,वह अद्भुत था।द्वापर की कथा में कृष्ण और गोपिकाओं का, वानरों का अद्भुत सामंजस्य दिखा। महिषासुर मर्दिनी का छाऊ को सदा देवी का आशीष मिलता है। इस प्रकार सभी प्रस्तुतियां आने आप में बहुत कहने वाली थी। इनसे भारतीय लोक संगीत की विविधता व व्यापकता की अभिव्यक्ति हुई। यह संगीत की सामान्य साधन नहीं है,बल्कि पीढ़ी दर पीढ़ी से चली आ रही विरासत को संवर्धित संरक्षित करने का प्रयास भी है।

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