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आजादी का अमृत महोत्सव : रानी लक्ष्मीबाई के जन्म दिवस पर प्रदर्शनी एवं व्याख्यान का आयोजन

लखनऊ। आजादी के अमृत महोत्सव की श्रृंखला के अन्तर्गत BSNVPG COLLEGE LUCKNOW के इतिहास विभाग (MIH) द्वारा आज प्रथम स्वतत्रता संग्राम 1857 में शहीद होने वाली झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के जन्म दिवस पर, उनके जीवन पर एक प्रदर्शनी एवम व्याख्यान का आयोजन किया गया। परम्परा का निर्वाह करते हुए ज्ञान की देवी मां सरस्वती का स्मरण करते हुए दीप प्रज्ज्वलन के साथ कार्यक्रम का शुभारम्भ किया गया। अर्थशास्त्र विभाग की प्रो गुंजन पांडे ने मंच संचालन करते हुए कार्यक्रम का आरम्भ सुभद्रा कुमारी चौहान की सुप्रसिद्ध कविता- “बुंदेलो हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी, खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।” से किया।

इतिहास विभाग (MIH) की प्रो नीलिमा गुप्ता ने पर्यावरण संरक्षण का संदेश देते हुए प्राचार्य का स्वागत पौधे देकर किया। तत्पश्चात शिक्षा शास्त्र विभाग की प्रो गीता रानी ने प्रमुख वक्ता प्राचीन इतिहास विभाग के HOD का स्वागत ,पौधे देकर किया तथा हिंदी विभाग की प्रो सविता सक्सेना का स्वागत इतिहास विभाग (MIH) असिस्टेंट प्रोफेसर प्रदीप कुमार ने पौधे दे कर किया।

रसायन विभाग के प्रो. देवेंद्र गुप्ता का स्वागत कॉमर्स विभाग की HOD असिस्टेंट प्रोफेसर मधु भाटिया ने पौधे देकर किया। #रानी_लक्ष्मी_बाई के जीवन पर पोस्टर प्रतियोगिता एवं प्रदर्शनी का आयोजन किया गया जिसका उद्घाटन यशस्वी प्राचार्य प्रो रमेशधर द्विवेदी ने रिबन काट कर किया। इस कार्यक्रम में, छात्र छात्राओं उत्साह के साथ सहभागिता की। पोस्टर प्रतियोगिता के निर्णायक की भूमिका अर्थ शास्त्र विभाग की प्रो. गुँजन पाण्डे तथा शिक्षा शास्त्र विभाग की प्रो. गीता रानी ने निभाई।

तदोपरांत प्रमुख वक्ता ऐसो. प्रोफेसर उमेश सिंह ने अपने व्याखान में रानी लक्ष्मी बाई के जीवन के विविध पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए कहा- रानी लक्ष्मी बाई का बचपन का नाम मणिकार्णिका था, परिवार के लोग प्यार से मनु बुलाया करते थे। उनको शिक्षा के साथ घुड़सवारी, निशानेबाजी एवम घेराबंदी का उचित प्रशिक्षण दिया गया था। उन्हें घोड़ों की अच्छी परख थी। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान झाँसी विद्रोह का केंद्र बन गया था। उन्होंने स्वयम सेवक दल का गठन किया था। जिसमें महिलाओं की भर्ती की गई थी। जब झांसी को अंग्रेजी साम्राज्य में विलय करने का आदेश 13 मार्च, 1854 को मिला तो रानी ने कहा “मैं अपनी झांसी नहीं दूँगी।“उन्होंने अपने जीते जी अंग्रेजों को झांसी पर कब्जा नहीं होने दिया। भारत के रेलवे मंत्रालय ने उनको सच्ची श्रधांजलि देते हुए झांसी रेलवे स्टेशन का नाम रानी लक्ष्मी बाई स्टेशन रखा है।

विशिष्ट वक्ता हिंदी विभाग की प्रो सविता सक्सेना ने रानी लक्ष्मीबाई पर केंद्रित हिंदी कविताओं और उपन्यासों की चर्चा की। सुभद्रा कुमारी चौहान की प्रसिद्ध कविता- बुंदेलों हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी, हरबोले का अर्थ प्रभाती गायन करके धन प्राप्त करने वाले, जो दानी करण ही नहीं #देशभक्त वीरों के पराक्रम के भी गीत गाते हैं। उन्होंने यह भी बताया कि रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों से टक्कर लेने के लिए अपनी दासियों मुंदर, जूही और झलकारी बाई को भी सैन्य कला में प्रशिक्षित किया था। आपने यह भी बताया कि प्रसिद्ध ऐतिहासिक हिंदी उपन्यासकार वृंदावन लाल ने झांसी की रानी नामक उपन्यास लिखा है। उनके परदादा अनंगराम रानी के सैन्य दल में थे, उनके अनुभवों को उपन्यास में स्थान दिया, यही नहीं बंगाली लेखिका महाश्वेता देवी ने अपनी पहली कविता रानी लक्ष्मीबाई को केंद्रित कर के लिखी थी।

प्राचार्य ने छात्र छात्राओं को जीवन में कुछ कर गुजरने की प्रेरणा देते हुए कहा देश की रक्षा व आजादी के लिए अपने प्राणों की आहूति देने वाले लोग आप के ही उम्र के थे, आप दुनिया और समाज को क्या दे जाओगे आप को एक बार दिल से विचार करना चाहिए। अंत में इतिहास विभाग की प्रो. नीलिमा गुप्ता ने धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कार्यक्रम का समापन किया।

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