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…और अब डाक विभाग को भी खरीदार का इंतजार!

विश्व डाक दिवस : चिट्ठी लिखना और पढ़ना पुराने ज़माने की बात, अब कोई डाकिये का इंतजार नहीं करता

दुनियाभर में शनिवार को विश्व डाक दिवस मनाया गया। हर साल 9 अक्टूबर को दुनिया भर में यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन (यूपीयू) की स्थापना की वर्षगांठ को चिह्नित करने के लिए ये दिन मनाया जाता है। 9 अक्टूबर 1874 में यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन की स्थापना स्विट्जरलैंड में हुई थी। जापान की राजधानी टोक्यो में 1969 में हुए यूपीयू कांग्रेस में 9 अक्टूबर को विश्व डाक दिवस के रूप में घोषित किया गया था। यह दिन डाक सर्विस और उनके लिए काम करने वालों के लिए समर्पित है। विश्व डाक दिवस मनाने का उद्देश्य दैनिक जीवन में पोस्ट की भूमिका को समझाना है। इसके साथ-साथ वैश्विक, सामाजिक और आर्थिक विकास में डाक विभाग के योगदान के लिए जागरूकता लाना है।

आज डाक की उपयोगिता केवल चिट्ठियों तक सीमित नहीं है, बल्कि आज डाक के जरिये बैंकिंग, बीमा, निवेश जैसी जरूरी सेवाएं भी आम आदमी को मिल रही हैं। भारत यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन की सदस्यता लेने वाला प्रथम एशियाई देश था। भारत में एक विभाग के रूप में इसकी स्थापना एक अक्टूबर, 1854 को लार्ड डलहौजी के काल में हुई। भारतीय डाक विभाग के पास अरबों रुपये की संपत्ति है। दुनिया का सबसे बड़ा विशाल नेटवर्क है। इतना बड़ा नेटवर्क तो आस्ट्रेलिया और अमेरिका के पास भी नहीं है। फिर भी भारतीय डाक विभाग घाटे में है।

करोड़ों रुपये के घाटे में चल रहा भारतीय डाक विभाग

दरअसल इस समय भारत सरकार के लिए करोड़ों रुपये के घाटे वाला डाक विभाग आर्थिक संकट का कारण बना हुआ है। 2019-20 की आडिट रिपोर्ट बताती है कि 1995 में डाक विभाग को साढ़े चार सौ करोड़ रुपये का घाटा उठाना पड़ा था। 2016 में यह घाटा 6,000 करोड़ रुपये, 2018 में 8,000 करोड़ रुपये और अब यह घाटा बढ़कर 15,000 करोड़ रुपये से अधिक हो गया है। संचार के नए माध्यमों इंटरनेट, गूगल, वाट्सएप, फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर और कूरियर सेवाओं के लोकप्रिय हो जाने के कारण कमोबेश डाक विभाग से लोगों का मोहभंग हो रहा है।

कुछ कूरियर कंपनियों ने स्पीड पोस्ट को खरीदने में दिखाई रुचि

केंद्र ने डाक विभाग के अधिकारियों के कहने पर घाटे से उबारने के लिए इसे पोस्टल पेमेंट बैंक जरूर बनाया, लेकिन उससे कोई लाभ नहीं हुआ। एयर इंडिया को तो खरीदार मिल गया है, किंतु डाक विभाग को कोई भी कंपनी लेने को तैयार नहीं है। कुछ कूरियर कंपनियों ने स्पीड पोस्ट को खरीदने में रुचि दिखाई है, लेकिन सरकार पूरा विभाग निजी क्षेत्र को देना चाहती है।

अगर देखा जाए तो मानव सभ्यता की उत्पत्ति के साथ ही सन्देश भेजने का काम शुरू हो गया था, जो समय के साथ अलग अलग माध्यमों में परिवर्तित होता चला गया। इंसान ने जब से पढ़ना-लिखना सीखा तभी से खतो-किताबत का सिलसिला चल रहा है। युद्ध के मैदान से घुड़सवारों के जरिये, प्रेमी-प्रेमिकाओं द्वारा कबूतर के जरिये और राजाओं ने हरकारों के जरिये सन्देश भेजने की व्यवस्था की थी। वारेन हेस्टिंग्स ने भारत में पहला डाकघर 1774 में कोलकाता में खोला। चेन्नै और मुंबई के जनरल पोस्ट ऑफिस 1786 और 1793 में अस्तित्व में आए। भारत में स्पीड पोस्ट 1986 में शुरू हुआ। वहीं मनी ऑर्डर सिस्टम 1880 में शुरू हुआ। अपने देश में आधुनिक डाक व्यवस्था की शुरुआत 18वीं सदी से पहले हुई।

देश में कितने डाक घर

आजादी के समय देशभर में 23,344 डाक घर थे। इनमें से 19184 ग्रामीण क्षेत्रों में तो 4160 शहरी क्षेत्रों में थे। 31 मार्च, 2008 तक भारत में 1,55,035 डाक घर थे। इनमें से 1,39,173 डाक घर ग्रामीण क्षेत्रों और 15,862 शहरी क्षेत्रों में थे।

   दया शंकर चौधरी

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