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कश्मीर से विस्थापन का 35 साल पुराना मंजर याद कर भावुक हुए अनुपम खेर, कविता के जरिए बयां किया दर्द

कश्मीर घाटी में 90 के दशक में हिंदुओं के पलायन की दर्दनाक घटना घटी। लाखों हिंदुओं को विस्थापन का दर्द झेलना पड़ा। उन्हें अपने घर छोड़ने को मजबूर किया गया। इस घटना को 35 साल हो चुके हैं। अपने घर छोड़ने वाले आज भी उस मंजर को भूले नहीं हैं। अनुपम खेर का परिवार भी कश्मीर से विस्थापित हुआ था। आज कश्मीरी हिंदुओं के पलायन दिवस पर अभिनेता ने सोशल मीडिया पोस्ट साझा कर दर्द साझा किया है।

सुनयना काचरू की कविता पढ़ भावुक हुए एक्टर
हर साल 19 जनवरी को कश्मीरी हिंदुओं का पलायन दिवस मनाया जाता है। आज रविवार 19 जनवरी को अनुपम खेर ने उस घटना को याद करते हुए एक पोस्ट शेयर किया है। इसमें उन्होंने कविता के माध्यम से विस्थापितों का दर्द बयां किया है, जिसे सुनाते हुए उनकी आंखें भर आईं। अनुपम खेर ने कवि और फिल्म लेखक सुनयना काचरू की एक कविता सुनाई है। सुनयना भी विस्थापन की पीड़ित रहीं और उस दर्दनाक मंजर को याद कर दिल छू लेने वाली कविता लिखी, जिसे अनुपम खेर ने पोस्ट में सुनाया है।

बोले- वे घर आज भी वहीं हैं
इसके साथ अनुपम खेर ने लिखा है, ’19 जनवरी, 1990! कश्मीरी हिंदुओं का पलायन दिवस! 35 साल हो गए हैं, जब 500000 से ज्यादा हिंदुओं को उनके घरों से बेरहमी से निकाल दिया गया था। वे घर अभी भी वहीं हैं, लेकिन उन्हें भुला दिया गया है। वे खंडहर हैं। इस त्रासदी की शिकार सुनयना काचरू भिडे ने उन घरों की यादों के बारे में दिल छूने वाली एक कविता लिखी। कविता की ये पंक्तियां उन सभी कश्मीरी पंडितों को वह मंजर याद दिला देंगी, जो इस भीषण त्रासदी के शिकार हुए थे! यह दुखद और सत्य दोनों है’!

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