सभी फैक्टर्स पर हावी रही विकल्पहीनता की स्थिति
महाराष्ट्र व हरियाणा में भाजपा (BJP) सत्ता में है। ऐसे में एंटी-इनकम्बेंसी (Anti-incumbency) व प्रो-इनकम्बेंसी (Pro-incumbency) को लेकर मतदाताओं के रुख पर चर्चा होनी चाहिए थी, लेकिन दोनों राज्यों में विकल्पहीनता की स्थिति बाकी सभी फैक्टर्स पर हावी नजर आई। मतदान के बाद मीडिया ने भी तमाम ओपीनियन पोल्स (Opinion Polls) में बताया कि भाजपा दोनों राज्यों में बड़े अंतर (Big Margin) से जीतेगी। महाराष्ट्र में भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए (NDA) के सिर जीत का सेहरा बंधेगा व कांग्रेस पार्टी तीसरे नंबर पर रहेगी। वहीं, हरियाणा में दोनों पार्टियों के बीच करीबी लड़ाई है, लेकिन सर्वे के मुताबिक भाजपा तीन-चौथाई सीटों पर जीत दर्ज करती हुई बताई जा रही है। स्पष्ट तौर पर सितंबर व अक्टूबर के बीच अनुमानों में खास परिवर्तन नहीं किया गया।
कांग्रेस समेत क्षेत्रीय दलों में भी लड़ने की इच्छा नहीं
महाराष्ट्र में लोग चर्चा कर रहे थे कि क्या कांग्रेस पार्टी शिवसेना (Shiv Sena) व एनसीपी (NCP) के बाद चौथे पर आएगी। हरियाणा में लोगों की रुचि कांग्रेस पार्टी से ज्यादा दुष्यंत चौटाला (Dushyant Chautala) के नेतृत्व वाली जननायक जनता पार्टी (JJP) के प्रदर्शन में दिखी। कुछ एक नेताओं को छोड़कर विपक्ष के किसी भी दल में लोकसभा चुनाव 2019 के दशा से उबरने की इच्छाशक्ति नजर नहीं आई। कांग्रेस पार्टी ही नहीं सपा, बसपा, टीएमसी व आरजेडी में से किसी पार्टी में लड़ने की इच्छा नजर नहीं आ रही है। दोनों राज्यों में निराशाजनक मतदान फीसदी का सबसे बड़ा कारण मतदाताओं की सरकार के कार्य में रुचि नहीं होना भी है। विपक्ष का कोई भी दल कार्य के आधार पर मतदाताओं को सरकार के विरूद्ध खड़ा नहीं कर पाया। दूसरे शब्दों में बोला जाए तो मतदाताओं पर एंटी-इनकम्बेंसी का कोई प्रभाव नहीं हुआ।
हरियाणा व महाराष्ट्र में बेरोजगारी और आर्थिक संकट को लेकर सरकार पर बरसने वाले मतदाताओं ने भी विपक्ष से निराश होकर भाजपा के पक्ष में ही वोट किया।
निराशा मतदाताओं ने भाजपा के पक्ष में किया मतदान
हरियाणा व महाराष्ट्र में बेरोजगारी (Unemployment) और आर्थिक संकट (Economic Crisis) को लेकर सरकार पर बरसने वाले मतदाताओं ने भी विपक्ष से निराश होकर भाजपा के पक्ष में ही वोट किया। अब विपक्ष का पारंपरिक जवाब होगा कि भाजपा ने राष्ट्रवाद (Hyper-Nationalism) व संघ (RSS) ने हिंदुत्व (Hindutva) के नाम पर मतदाताओं को लुभाया। कुछ लोगों का मानना है कि पॉलिटिक्स नए दौर में जा रही है, जहां वास्तविक मामले खत्म हो रहे हैं। नौकरियों का जाना व लिंचिंग जैसे मामले पीएम नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) के दरवाजे पर दस्तक नहीं दे पाए। महाराष्ट्र में कांग्रेस-एनसीपी के नेताओं का पार्टी छोड़ना व हरियाणा में बीएस हुड्डा और अशोक तंवर के बीच तनाव सुर्खियों में रहे। कांग्रेस पार्टी अब भी खुद को एक नेशनल पार्टी के तौर पर देख रही है, लेकिन वह मतदाताओं को खींच पाने में भाजपा के आगे कहीं नहीं ठहर पा रही है।
तीसरे नंबर पर खिसकी तो उबर नहीं पाएगी कांग्रेस
कांग्रेस पार्टी वर्तमान परिस्थिति में अगर तीसरे नंबर पर खिसकी तो कभी उबर नहीं पाएगी। उत्तर प्रदेश, बिहार, ओडिशा व पश्चिम बंगाल में कांग्रेस पार्टी के साथ कुछ ऐसा ही हुआ है। इसे उलट भाजपा उत्तर प्रदेश में महज पांच वर्ष के भीतर नंबर चार से नंबर एक पर पहुंच गई। लोकसभा चुनाव 2019 में आम आदमी पार्टी दिल्ली में 7-0 की करारी शिकस्त के बावजूद विधानसभा चुनाव 2020 के लिए आत्मविश्वास के साथ लड़ने को तैयार नजर आ रही है। दक्षिण हिंदुस्तान वैसे भाजपा की पहुंच से दूर है। वहीं, पूर्वोत्तर में भाजपा क्षेत्रीय दलों के सहारे आगे बढ़ रही है। सत्ता की चाभी मतदाताओं के हाथ में है। सियासी दलों को प्रत्याशी उतारने के साथ ही मैदान में सारे दमखम के साथ लड़ना भी होगा।