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अवधपुरी सम प्रिय नहिं सोऊ

प्रभु सर्वव्यापी हैं, किंतु जब मनुष्य रूप में अवतार लेते है,तब जन्मभूमि भी तीर्थ बन जाती है। इसीलिए गोस्वामी तुलसीदास कहते हैं-अवधपुरी सम प्रिय नहिं सोऊ। यह प्रसंग जानइ कोउ कोऊ।। यह सभी के लिए सन्तोष का विषय है कि जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त हुआ। श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के महामंत्री चंपतराय प्रारंभ से ही इस आंदोलन से जुड़े रहे है। कारसेवक पुरम व कार्यशाला के संचालन में उनकी सक्रिय भूमिका रही है। अयोध्या ही उनका स्थाई केंद्र रहा है। भूमिपूजन कार्यक्रम के निर्धारण में उनके विचार महत्वपूर्ण रहे है। कृष्णपक्ष द्वितीया संवत दो हजार सतहत्तर तदनुसार पांच अगस्त दो हजार बीस को श्रीराम जन्मभूमि पर मन्दिर निमार्ण कार्यारम्भ हेतु भूमि पूजन होगा। इसमें भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र भाई मोदी उपस्थित रहेंगे।

पूजन हेतु भारत की मिट्टी से जन्मी प्रमुख छत्तीस परम्पराओं के एक सौ पैतीस पूज्य संत महात्माओं को एवं अन्य विशिष्ट अतिथिगणों को आमंत्रित किया गया है। पहले यह तय किया गया था कि इस कार्यक्रम उन्नीस सौ चौरासी में प्रारम्भ हुए श्रीराम जन्मभूमि मन्दिर निर्माण के सतहत्तरवें आन्दोलन में भाग लेने वाले रामभक्त बड़ी संख्या में उपस्थित रहेंगे। किन्तु इस दौरान कोरोना महामारी फैल गई। इसके कारण पूर्व निर्धारित योजना में बदलाव किया गया। अब निर्धारित संख्या में लोग ही इसमें सहभागी हो सकेंगे।

चम्पत राय ने बताया कि सुरक्षा की दृष्टि से एक कार्ड पर एक ही व्यक्ति का प्रवेश होगा। संतगणों में दशनामी सन्यासी परम्परा, रामानन्द वैष्णव परम्परा,रामानुज परम्परा,नाथ परम्परा, निम्बार्क, माध्वाचार्य, वल्लभाचार्य, रामसनेही, कृष्णप्रणामी, उदासीन, निर्मले सन्त, कबीर पन्थी, चिन्मय मिशन, रामकृष्ण मिशन, लिंगायत, वाल्मीकि सन्त, रविदासी सन्त, आर्य समाज, सिक्ख परम्परा, बौद्ध, जैन, सन्त कैवल्य ज्ञान, सतपंथ, इस्कान, स्वामीनारायण, वारकरी, एकनाथ, बंजारा सन्त, वनवासी सन्त,आदिवासी गौण, गुरु परम्परा, भारत सेवाश्रम संघ, आचार्य समाज, सन्त समिति, सिन्धी सन्त, अखाड़ा परिषद के प्रतिनिधि सम्मलित है। नेपाल से भी पूज्य संत कार्यक्रम में उपस्थित रहेंगे।

भूमि पूजन एवं कार्यारम्भ का मुख्य कार्यक्रम प्रधानमंत्री के करकमलों द्वारा विशिष्ट अतिथि राष्ट्रीय स्वयंसेवक के सरसंघचालक मोहन भागवत की उपस्थिति में वैदिक रीति द्वारा संपन्न होना है। जबकि श्रीराम जन्मभूमि पर पूजन का यह क्रम एक सौ आठ दिन पहले से आरम्भ हो गया था। जिसमें प्रतिदिन वेदपाठ, पुरुष सूक्त, श्रीसूक्त, अघोरमंत्र, वास्तु, ग्रह, नक्षत्र शान्ति के पाठ एवं विश्व सहस्त्र नाम, श्रीराम सहस्त्र नाम, श्री हनुमत सहस्त्र नाम, दुर्गा सप्तसती पाठ के मंत्रों द्वारा हवन एवं रुद्राभिषेक भी किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि देव विग्रह के वस्त्रों का निर्धारण प्रत्येक दिन के स्वामी ग्रह और उससे संबंधित रंग के आधार पर किया जाता है।

यह बात सर्वज्ञात है कि बुध ग्रह का संबंध हरे रंग से है और इस परंपरा का पालन जबसे रामलला विराजमान वहं बैठे हैं, तब से किया जा रहा है। इस पर टिप्पणी करना किसी अन्य प्रकार के पूर्वाग्रह का द्योतक है।अभी तक देश के लगभग पन्द्रह सौ से भी अधिक स्थानों से पवित्र एवं ऐतिहासिक स्थलों की मृदा तथा दो हजार से भी अधिक स्थानों व देश की सौ से भी अधिक पवित्र नदियों एवं सैकड़ों कुण्डों के जल देश के कोने कोने से रामभक्तों द्वारा लाए गए हैं। इसमें प्रमुख रूप से गंगा, यमुना, नर्मदा, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी, सिन्धु, ब्रह्मपुत्र, झेलम, शतलुज, रावी, चिनाव व व्यास सहित समस्त पवित्र नदियों एवं देश के सभी प्रसिद्ध पवित्र कुण्डों का जल सम्मिलित है। इसके साथ ही साथ अनेकों ऐतिहासिक एवं धार्मिक महत्व के स्थानों की मिट्टी व जल भेजा गया है।

जिनमें प्रमुख रूप से हल्दीघाटी की मिट्टी, चित्तौड़ दुर्ग की मिट्टी, स्वर्ण मन्दिर के कुण्ड का जल व मिट्टी, वैष्णों देवी की मिट्टी, मैसेकर घाट कानपुर, बिठूर में ब्रह्मखूंटी व नाना साहब पेशवा के किले की मिट्टी, रायगढ़ किले की मिट्टी, सभी ज्योतिर्लिंगों के प्रांगण की मिट्टी, सरस्वती उद्गम स्थल का जल व रज,रविदास मन्दिर काशी की रज, बाबा साहब अम्बेदकर की इच्छा भूमि एवं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के उद्गम स्थली नागपर की रजव पवित्र जल, मानसरोवर की पवित्र रज व जल आदि अयोध्या पहुँच चुके हैं।

डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

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