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मोदीफ़ोबिया से सबसे ज़्यादा पीड़ित BBC, जानिए इस पर क्या बोले लॉर्ड रामी

आपने इस्लामोफ़ोबिया या हिंदूफ़ोबिया शब्द के बारे में काफ़ी सुना होगा. फोबिया का मतलब किसी एक चीज़ से डर. लेकिन आजकल पश्चिमी मीडिया एक ख़ास तरह के फोबिया से पीड़ित है और ये फोबिया है मोदीफ़ोबिया या इंडियाफ़ोबिया. खुद को दुनिया का सबसे निष्पक्ष, ईमानदार और पत्रिकारिता का झंडाबरदार बताने वाला संस्थान BBC इस फ़ोबिया से सबसे ज़्यादा पीड़ित है और इसीलिए भारत या भारत की सरकार के खिलाफ़ बीबीसी के नैरेटिव गढ़ने वाले एजेंडे पर सवाल उठाए जाते रहे हैं.

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BBC यानी ब्रिटिश ब्रॉडकास्ट कॉरपोरेशन की निष्पक्षता पर ब्रिटिश पार्लियामेंट में सवाल उठा तो उसकी वजह भी बीबीसी का मोदीफ़ोबिया रही. ऐसे में आपको ये समझने की जरूरत है कि आख़िर क्यों पश्चिमी मीडिया पर भारत विरोधी होने के आरोप लगते रहे हैं? ब्रिटेन की संसद के हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स के सासंद लॉर्ड रामी रैंगर ने एक ट्वीट करके बीबीसी की भारत विरोधी रिपोर्टिंग पर सवाल उठाए हैं.

लॉर्ड रामी रैंगर ने लिखा, ‘BBC आपने एक अरब से अधिक भारतीयों को बहुत ज्यादा आहत किया है. आपने लोकतांत्रिक रूप से चुने गए भारतीय प्रधानमंत्री, भारतीय पुलिस और भारतीय न्यायपालिका का अपमान किया गया है. हम दंगों और जानमाल के नुकसान की निंदा करते हैं, लेकिन इसके साथ ही आपकी पक्षपातपूर्ण रिपोर्टिंग की निंदा करते हैं.’

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ब्रिटिश संसद में ये बवाल BBC की सीरीज़ इंडिया द मोदी क्वेश्चन पर शुरू हुआ. इस सीरीज़ का पहला पार्ट हाल ही में प्रसारित किया गया, जिसमें साल 2002 के गुजरात दंगों के लिए एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ज़िम्मेदार ठहराया गया. ये वही #बीबीसी है, जिसे मुम्बई में आतंकी हमला करने वाले इस्लामी आतंकवादी तो बंदूकधारी नज़र आते हैं.

ब्रिटेन की संसद में बीबीसी की निष्पक्षता और उसके एंटी इंडिया नैरेटिव पर खरीखोटी सुनाई गई तो ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने भी बीबीसी को आड़े हाथ लेते हुए कहा, ‘PM मोदी एक सम्मानित हस्ती हैं और इस डॉक्युमेंट्री में उनका जिस तरह चरित्र हनन किया गया है, वो उससे सहमत नहीं है और इसलिए उसे वो ख़ारिज करते हैं.’

इसके बावजूद बीबीसी भारत को लेकर अपने नैरेटिव गढ़ना बंद करेगा, इस पर संदेह है. क्योंकि साल 2002 के जिस गुजरात दंगे का हवाला देकर BBC की इस डॉक्युमेंट्री में पीएम नरेंद्र मोदी को  और अल्पसंख्यकों से नफरत करने वाला शख़्स बताया गया है, भारत का सुप्रीम कोर्ट उसी गुजरात दंगे के मामले में पीएम मोदी को क्लीन चिट दे चुका है.

साल 2011 में #BBC ने एक डॉक्युमेंट्री दिखाई गई थी, जिसके ज़रिए भारत में बाल मज़दूरी होने का दावा किया गया था. लेकिन बाद में बीबीसी ने  सार्वजनिक तौर पर  माफ़ी मांगी थी और ये माना कि ये ख़बर और ये वीडियो झूठे थे. अक्टूबर 2020 में कोरोना महामारी के वक़्त बीबीसी ने अपनी एक ख़बर में भारत का अधूरा नक्शा दिखाया था. इस नक्शे में कश्मीर और लद्दाख को भारत के नक्शे में नहीं दिखाया गया था और जब भारत की तरफ़ से इसका विरोध किया गया तो बाद में बीबीसी ने नक्शे की जगह भारत का राष्ट्रीय ध्वज लगा दिया था.

यूनिवर्सिटी ऑफ़ लंदन में विशेषज्ञ अलासदेर पिंकर्टन ने वर्ष 1947 यानी आज़ादी के बाद से वर्ष 2008 तक भारत को लेकर बीबीसी की रिपोर्टिंग पर एक स्टडी की थी. जिसमें उन्होने माना था कि बीबीसी का भारत के प्रति नज़रिया पूर्वाग्रह से भरा रहा है और उन्होंने कहा था कि बीबीसी आज तक साम्राज्यवादी और औवनिवेशवादी मानसिकता से बाहर नहीं निकल पाई है.

BBC की मानसिकता

BBC की मानसिकता अक्सर दुनिया के सामने आ जाती है. इस मानसिकता को आप न्यू यॉर्क टाइम्स के एक विज्ञापन से आसानी से समझ जाएंगे. न्यूयॉर्क टाइम्स ने भारत में स्थित अपने दक्षिण एशिया संवाददाता की एक वैकेंसी निकाली थी और इसके लिए बकायदा एक लंबा चौड़ा लेख लिखा था. विज्ञापन की शर्तों के अनुसार न्यू यॉर्क टाइम्स में उसी को नौकरी मिल सकती थी, जो मोदी और हिंदू विरोधी हो.

ये वही बीबीसी है जिसकी ईरान के तख़्तापलट में भूमिका पर आज भी सवाल उठाए जाते हैं.साल 1953 में ईरान की चुनी हुई सरकार के ख़िलाफ़ BBC पर्शियन के ज़रिए ईरान के पूर्व शासक रजा शाह पहलवी को एक कोड भेजा गया था और इस कोड के बाद ही ईरान में तख़्तापलट हो गया था.

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भारत के ख़िलाफ़ नैरेटिव सेट करने में न्यू यॉर्क टाइम्स को इसका चैम्पियन कहा जा सकता है. वहीं वॉशिंगटन पोस्ट, द गार्डियन और द टाइम्स जैसे मीडिया संस्थान भी भारत विरोधी एजेंडा चलाने में पीछे नहीं हैं. 2019 में पुलवामा आतंकी हमला रहा हो या कोरोना महामारी का आगमन, कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन हो या फिर आर्टिकल 370 को हटाना, पश्चिमी मीडिया का भारत के प्रति दोहरा रवैया सामने आता रहा है.

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