फैशन और शीर्ष सौंदर्य ब्रांड वाली कंपनियां जलवायु परिवर्तन को रोकने में सहयोग नहीं कर रही हैं। गैर-लाभकारी शोध समूह ‘न्यूक्लाइमेट इंस्टिट्यूट’ और ‘कार्बन मार्किट वॉच’ ने मंगलवार को अपनी रिपोर्ट में बताया कि ये कंपनियां जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए आवश्यक गति से अपने ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम नहीं कर रही हैं। कई कंपनियां तो निरंतरता को बढ़ावा देने के अपने वादों को बढ़ा चढ़ा कर बता रही हैं।
एचएंडएम, नेस्ले और टोयोटा जैसी जानी-मानी कंपनियां इस सूची में शामिल हैं। कुल 51 कंपनियां 2022 में 16 फीसदी वैश्विक उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार थीं। रिपोर्ट के मुताबिक, 2015 के पेरिस समझौते के तहत वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक रोक कर रखने में इनकी कोशिशें गंभीर रूप से अपर्याप्त हैं। हालांकि, 2030 के जलवायु संकल्पों को लेकर कंपनियों की सामूहिक महत्वाकांक्षा में पिछले दो सालों में धीरे-धीरे सुधार हुआ है। अधिकांश कंपनियां अभी भी उत्सर्जन में उतनी कमी नहीं कर पा रही हैं जितनी जरूरत है।
वैश्विक उत्सर्जन को 2030 तक 43 प्रतिशत घटाने की जरूरत होगी
संयुक्त राष्ट्र के जलवायु वैज्ञानिकों के मुताबिक पेरिस समझौते के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए वैश्विक उत्सर्जन को 2030 तक 43 फीसदी घटाने की जरूरत होगी। लेकिन ये कंपनियां अपने मौजूदा संकल्पों के मुताबिक उस अवधि तक अपने उत्सर्जन में सिर्फ 33 फीसदी की कटौती कर पाएंगी।
कॉरपोरेट सेक्टर में बढ़ी मांग
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि कॉरपोरेट सेक्टर से कार्बन क्रेडिट (कार्बन डाइऑक्साइड या अन्य ग्रीनहाउस गैसों को छोड़ने की अनुमति) के जरिये जलवायु लक्ष्यों को हासिल करने में लचीलेपन की मांग बढ़ रही है। कार्बन क्रेडिट के जरिये कंपनियां अपने उत्सर्जन की भरपाई के लिए ऐसे किसी प्रोजेक्ट में पैसा लगा सकती हैं, जो उत्सर्जन को कम करता हो। इसमें जंगलों का संरक्षण जैसे विकल्प भी शामिल है।