महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने हाल ही में कहा कि ‘राजनीतिक विरोधियों को दुश्मन नहीं समझते’। उन्होंने पूर्व सीएम उद्धव ठाकरे और राज्य सरकार में मंत्री रहे आदित्य ठाकरे को लेकर यह बात कही थी।
खास बात है कि बीते साल नवंबर में एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में हुई बगावत के तार फडणवीस ने ‘भाजपा के बदला’ से जोड़े थे। हालिया दिनों में ठाकरे परिवार को लेकर भाजपा के सुर नरम पड़ते नजर आए हैं। जानकार इसके तार सियासी हालात से जोड़ रहे हैं।
माना जा रहा है कि भाजपा यह जानती है कि अगर उद्धव लोगों के बीच ‘धोखे’ की बात स्थापित करने में सफल हो गए, तो हालात बदल सकते हैं। एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, भाजपा के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा, ‘पार्टी के नाम और चिह्न की जंग उद्धव सेना और शिंदे गुट के बीच थी, लेकिन उद्धव के पक्ष में जनता की भावना भाजपा की छवि को नुकसान पहुंचाएगी। हमें इस साल होने वाले बीएमसी चुनाव और 2024 लोकसभा चुनाव से पहले सावधानी से रोडमैप बनाना होगा।’
साथ ही अन्य नेताओं का मानना है कि पार्टी का मकसद 2019 को लेकर उद्धव को सबक सिखाना था। उस दौरान उद्धव NDA छोड़कर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस के साथ चले गए थे। अब भाजपा के कुछ नेता मानते हैं कि अब जब सब ठीक है, तो आगे बढ़ना चाहिए।
भारत निर्वाचन आयोग (ECI) के ‘शिवसेना’ नाम और चिह्न (तीर-कमान) को शिंदे समूह को सौंपने के फैसले के बाद उद्धव लगातार भाजपा पर निशाना साध रहे हैं। उन्होंने कहा था कि पिता की विरासत चोरी कर ली गई। साथ ही उन्होंने बदला लेने की कसम भी खाई। कहा जा रहा है कि दिवंगत बाल ठाकरे की गठित पार्टी को ठाकरे परिवार से ही जोड़कर देखा जाता है। ऐसे में कई वफादार आयोग की कार्रवाई को भाजपा प्रभावित मान रहे हैं।