लखनऊ: मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का हर सप्ताह अयोध्या का दौरा। दौरे में संतों के साथ बातचीत में लोकसभा चुनाव में फैजाबाद (अयोध्या) सीट पर भाजपा की पराजय के उलाहना देना बताता है कि यहां विधानसभा की मिल्कीपुर सीट पर होने वाले उपचुनाव को लेकर मुख्यमंत्री रत्तीभर भी चूक नहीं करना चाहते हैं।
एक तरह से उन्होंने मिल्कीपुर और अंबेडकरनगर की कटेहरी सीट पर होने वाले उपचुनाव में भाजपा की जीत सुनिश्चित करने के लिए अपनी प्रतिष्ठा दांव पर लगा दिया है। गहराई से नजर डालें तो इन सीटों पर भाजपा की जीत सुनिश्चित करने की चुनौती को लेकर मुख्यमंत्री ने खुद से ज्यादा अपने दो सहयोगी उप मुख्यमंत्रियों की कड़ी परीक्षा की चौसर सजा दी है।
वैसे तो विधानसभा की 10 सीटों पर होने वाले उपचुनाव की औपचारिक घोषणा अभी तक नहीं हुई है। पर, इनमें सपा विधायक अवधेश प्रसाद के फैजाबाद (अयोध्या) के सांसद चुने जाने से खाली हुई मिल्कीपुर और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के सांसद चुने जाने से रिक्त हुई मैनपुरी की करहल सीट पर चुनाव जीतना भाजपा के लिए खास मायने रखता है।
सत्तारूढ़ दल भाजपा की कोशिश है कि मिल्कीपुर और करहल में सपा को पराजित कर न सिर्फ इंडी गठबंधन की मनोवैज्ञानिक बढ़त पर विराम लगाया जाए बल्कि अयोध्या सीट पर हार के बहाने पूरे देश में विपक्ष की तरफ से हिंदुत्व के एजेंडा के फेल होने के प्रचार का भी जवाब दिया जाए।
वैसे तो मुख्यमंत्री ने लगभग एक महीने पहले ही इन सभी दस सीटों के चुनाव के लिए 30 मंत्रियों की फौज उतारकर यह संदेश दे दिया था कि उपचुनाव के अखाड़े में वह विपक्ष को काफी कड़ी टक्कर देने का निश्चय कर चुके हैं। पर, उन्होंने जिस तरह मिल्कीपुर और कटेहरी सीट पर भाजपा की जीत के लिए जिम्मेदारी ली है और दूसरी प्रतिष्ठापूर्ण सीटों करहल तथा फूलपुर में जीत के लिए अपने दोनों उप मुख्यमंत्रियों को जिम्मेदारी सौंपी वह गूढ़ निहितार्थ की ओर इशारा करते हैं।