पुस्तक का नाम- निहारिका, समीक्षक- आशीष तिवारी निर्मल, रचनाकार-कवि उपेन्द्र द्विवेदी रूक्मेय, प्रकाशक- विधा प्रकाशन उत्तराखंड, कीमत-225
कवि सम्मेलन यात्रा से मैं लौटकर रीवा पहुंचा ही था कि देश के तटस्थ रचनाकार कवि उपेन्द्र द्विवेदी का फोन आया कि अल्प प्रवास पर रीवा आया हूं शीघ्र ही राजस्थान निकलना है। मैं बिना समय गवाएं उपेन्द्र जी से मिलने पहुंचा तो एक गर्मजोशी भरी मुलाकात के बाद उन्होंन अपनी एक अद्वितीय व दूसरी कृति ‘निहारिका’ मुझे भेंट की। इसके पहले मैं उनकी एक राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत कृति राष्ट्र चिंतन पढ़ चुका था। अत: दूसरी कृति पाकर मन प्रसन्न हो गया।
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उपेन्द्र जी एक संवेदनशील कवि हैं। वे सबरस कविता और गद्य लेखन दोनों में सामर्थ्य के साथ अपनी रचनाओं को अभिव्यक्त करते हैं। कवि उपेन्द्र द्विवेदी काफी समय से लेखन में सक्रिय हैं। दो काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। उपेन्द्र जी कई पुरस्कारों से सम्मानित हो चुके हैं। निहारिका कृति पढ़ने के बाद मुझे लगा कि नि:सन्देह उनकी यह कृति समाज व देश को नई दिशा और दशा देने मे सहायक सिद्ध होगी।
इस पुस्तक में आम आदमी की छटपटाहट की कविताएँ हैं। उपेन्द्र जी ने आम आदमी की पीड़ा, निराशा, घुटन, दर्द को मार्मिक रूप से अपनी कविताओं में अभिव्यक्त किया है। कवि उपेन्द्र जन-जन की सूक्ष्म संवेदनाओं के मर्म को पहचानने वाले कवि हैं। संग्रह की हर कविता जीवन की सच्चाई को बयां करती है।
कवि की दृष्टि छोटी से छोटी बातों पर गई है। कवि ने कम से कम शब्दों में प्रवाहपूर्ण सारगर्भित बात कही है। इस संग्रह की कविताएँ जीवन के खुरदुरे यथार्थ से जूझती दिखाई देती हैं। लेखक की रचनाएँ व्यक्ति के अंतर्मन के द्वंद्व को पाठक के सामने प्रस्तुत करती है। इस कविता संग्रह की भूमिका, वरिष्ठ साहित्यकार डाक्टर सोमदत्त काशीनाथ ने लिखी है। उन्होंने लिखा है -कि कवि उपेन्द्र की कविताएँ पढ़ते हुए कई जगह महसूस होता है कि यह रचना संभवत: एक बेहतरीन शैली में मानवीय संवेदना जगा रही है। कई जगह वे कोई शब्द चित्र सा बनाते नज़र आते हैं।
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कवि के इस काव्य संग्रह में मानव-कल्याण की ओर परिलक्षित विविध रचनायें हैं जो उत्कृष्ट रचना धर्मिता की परिचायक होने के साथ ही कवि होने के धर्म व मर्म को प्रकट करती हैं।कवि उपेन्द्र की रचना धर्मिता में ईमानदारी है और सत्यता का आग्रह भी है । राष्ट्र व समाज की पीड़ा को रचना के माध्यम से आमजन तक पहुंचा देने की उत्कृष्ट काव्य कौशल से पोषित काव्य संग्रह ‘निहारिका’ पाठक से सीधा संवाद स्थापित करती है। रचनाकार उपेन्द्र जी ने आमजन को बखूबी परखते हुए लिखा है कि-
नीर नयन के मोती हैं
मत इनको बह जाने दो।
सारा दर्द न साझा करना
कुछ भीतर रह जाने दो।।
जीवन मे चल रही उथल-पुथल को बड़े सलीके से लिखते हुए कवि उपेन्द्र कहते हैं कि-
जीवन मधुरिम रात नही है।
खुशियों की सौगात नही है
मैं अनुभव साझा करता हूं
ये कोई झूठी बात नही है।।
वहीं जब देश मे मर्यादापुरुषोत्तम भगवान श्री राम पर लोग अनर्गल अलाप अलापने लगते हैं तब कवि उपेन्द्र की कलम श्री राम के चरणों की वंदना करते हुए अपने भाव प्रकट करती है कि-
दिनकर राम प्रभाकर राम
अमृत सुधा सुधाकर राम।
अवधपति अवधेश हैं राम
दुष्ट दलन संदेश हैं राम।
दशरथ नंदन चंदन राम
रघुकुल के रघुनंदन राम।
कवि उपेन्द्र की कृति निहारिका एक सबरस समाहित अनुपम सृजन है ।मैं ऐसी रचनात्मक सृजन के लिए बहुत बधाई देता हूं । और आशान्वित हूं शीघ्र ही आप पुन: ऐसी कोई कृति पाठकों के बीच लेकर रूबरू होंगे।