पुस्तक का नाम- निहारिका, समीक्षक- आशीष तिवारी निर्मल, रचनाकार-कवि उपेन्द्र द्विवेदी रूक्मेय, प्रकाशक- विधा प्रकाशन उत्तराखंड, कीमत-225 कवि सम्मेलन यात्रा से मैं लौटकर रीवा पहुंचा ही था कि देश के तटस्थ रचनाकार कवि उपेन्द्र द्विवेदी का फोन आया कि अल्प प्रवास पर रीवा आया हूं शीघ्र ही राजस्थान निकलना है। ...
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संंवेदना : भगवान को हंसा कर बस लौटते ही होंगे हमारे राजू भैया!
थोड़ी देर पहले जैसे ही मोबाइल डाटा ऑन किया। एक दुखद खबर सोशल मीडिया के माध्यम से प्राप्त हुई। समाचार सुनकर अत्यंत कष्ट हुआ कि भारत देश ही नहीं अपितु पूरे विश्व में अपनी मेहनत के बलबूते, अपनी कला के बलबूते, लोगों के लबों पर मुस्कान बिखेरने वाले हिंदुस्तान के ...
Read More »वाह रे ठाकुर जी
वाह रे ठाकुर जी तुम ने गज़ब रचा संसार, चहुंओर मचा है हाहाकार, वाह रे ठाकुर जी………..! बेबसी का लगा हुआ अंबार, खोया अपनापन और प्यार, वाह रे ठाकुर जी…………! छद्मश्री को पद्मश्री उपहार, सच्ची कला हो रही भंगार, वाह रे ठाकुर जी…………! खूब बढ़ा काला कारोबार, मौन देख रही ...
Read More »खुश हूँ मैं
खुश हूँ मैं जिससे मिला ही नहीं उसकी जुदाई से खुश हूँ मैं। गैरों से की मेरी बुराई उसकी इस अच्छाई से खुश हूँ मैं। अपनों की तारीफों से भी यदि खुशी नही मिलती खुद की ही मुसलसल खुद्सिताई से खुश हूँ मैं। किसी कमनीय कन्या को बनाया ही नही ...
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