बुंदेलखंड Bundelkhand में एक कुतिया का मंदिर बनाकर उसकी पूजा की जा रही है। हैरत की बात यह है कि कुतिया को महारानी के साथ मां का दर्जा भी दिया गया है। श्रद्धा और आस्था वाला कुतिया महारानी का यह मंदिर झांसी के नजदीक रेवन और ककवारा गांवों के बीच बना हुआ है। मंदिर में कुतिया की काले पत्थर की प्रतिमा है, जहा लोग रोजाना पूजा कर शीश नवाने और मन्नते मांगने आते हैं।
Bundelkhand के ग्रामीणों की दिवंगत
बुंदेलखंड Bundelkhand के ग्रामीणों की दिवंगत कुतिया के प्रति अपार श्रद्धा है और बड़ी संख्या में लोग यहां जल चढ़ाने और सुख-समृद्धि की कामना के लिए आते हैं। मंदिर की सुरक्षा भी काफी चाक-चौबंद की गई है।
ग्रामीणों के अनुसार रेवन और ककवारा दोनों गांवों में जब भी भोज का आयोजन होता था तो उससे पहले बुंदेलखंडी लोक संगीत का एक वाद्य यंत्र रमतूला बजाया जाता था। जिसकी आवाज सुनकर दोनों गांवों के ग्रामीण पंगत में खाना खाने के लिए पहुंच जाते थे। साथ ही कुतिया भी रमतूला की आवाज सुनकर पहुंच जाती थी।
एक बार ककवारा और रेवन दोनों गांवों में भोज का आयोजन किया गया था। लिहाजा कुतिया को भी दोनों जगहों पर जाना था, लेकिन वह बीमार थी। ककवारा के रमतूला की आवाज सुनकर वह बीमार अवस्था में ककवारा पहुंची। वह पहुंची तब तक पंगत खत्म हो चुकी थी। बीमार की वजह से वह थक गई थी इसलिए कुछ देर आराम करने के लिए रुक गई। तभी रेवन गांव का रमतूला बजा। कुतिया दौड़कर रेवन पहुंची, लेकिन तब तक वहां भी पंगत खत्म हो गई।
दोनों जगह खाना नहीं मिलने और बीमारी में भागदौड़ करने से वह दोनों गांवों के बीच रास्ते में गिर गई और कुछ देर बाद उसकी मौत हो गई। गांववालों को जब उसकी दर्दनाक मौत का पता चला तो उन्होंने कुतिया को उसी जगह पर दफना कर वहां पर उसका मंदिर बना दिया।