पर्यावरण Environment से मानव का बहुत पुराना और गहरा सम्बन्ध रहा है। हम अपने जीवन का हर क्षण इसी धरती पर मौजूद पर्यावरण के बीच बिताते हैं। लेकिन आज के परिवेश को देखते हुए लगता है की जैसे हम इस जीवनदायिनी पर्यावरण पर नहीं, बल्कि ये पर्यावरण हम जैसे लोगों के हाथों अपना जीवन तलाश रही है।
Environment को लेकर उदासीन होता मानव
मानव ने अपना जीवन इसी Environment पर्यावरण के बीच आरम्भ किया। इसी पर्यावरण में दुनिया का हर जीव पला-बढ़ा। एक समय ऐसा भी था जब मानव एक असभ्य जीवन जी रहा था। ऐसे में वह अपनी हर क्रिया, हर कर्म इस जीवनदायिनी पर्यावरण को ध्यान में रखकर करता था। किन्तु आज का मानव या ये कहें की आज का सभ्य मानव लगातार पर्यावरण का दोहन करता आ रहा है।
क्या यही है हमारी बुद्धिमता ?
जिस तरह हम लगातार पर्यावरण को क्षति पहुंचा रहे, पेड़ काट रहे, धरती का दोहन कर रहे , जल को दूषित कर रहे ऐसे में ये कहना कदापि अनुचित नहीं होगा कि हम जैसे सभ्य मानव से अच्छे हमारे वे पूर्वज थे जिन्होंने कोई व्यावसायिक शिक्षा तो नहीं पायी, किन्तु व्यावहारिक शिक्षा में हमसे कहीं उत्तम थे।
अन्धविश्वास हमेशा गलत ही होता है लेकिन अगर किसी पेड़ में देवता ,किसी जानवर पर देवी-देवताओं की सवारी, जल को देवता मानना, आदि विभिन्न तरीकों से जो पर्यावरण ,जीव जन्तुओ , पेड़ों की सुरक्षा होती थी ,वो कहीं न कहीं अन्धविश्वासी ही सही किन्तु हमसे तो कहीं बेहतर थे।
तो क्या हम भी अन्धविश्वास को बढ़ावा दें ?
जी नहीं, कदापि नहीं, किन्तु हम अपने विश्वास को तो बढ़ावा दे ही सकते हैं।
हमारे पूर्वज शायद पर्यावरण की आने वाली पीढ़ी के लिए क्या महत्वता होगी इस बात से अनजान थे, लेकिन हम ?
जवाब शायद आपके ज़हन में आ गया होगा। अब ये देखना महत्वपूर्ण है की आज के इस वैज्ञानिक युग में हम कितने समझदार, जानकार और प्रकृतिवादी हो पायें हैं। हालाँकि हम हर वर्ष ‘पर्यावरण दिवस’ भी मानते हैं ,किन्तु हमें ये विचार करना होगा की हम पर्यावरण के लिए क्या कर सकते हैं। और इससे भी पहले ये समझना आवश्यक है कि पर्यावरण को लेकर हम कितने चिंतित हैं।
जानें कैसे और कब बना ‘पर्यावरण दिवस’
पर्यावरण के इस गम्भीर समस्या पर दुनिया का ध्यान पहली बार तब केन्द्रित हुआ जब स्वीडन की राजधानी स्टाक होम में 5-10 जून 1972 को प्रथम संयुक्त राष्ट्र सार्वभौम पर्यावरण सम्मेलन का आयोजन हुआ और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की विधिवत स्थापना हुई तथा 5 जून को प्रति वर्ष ‘पर्यावरण दिवस’ के रूप में मनाए जाने का निर्णय हुआ।
उसके बाद अनेक अध्ययनों और अनुभवों के फलस्वरूप पर्यावरण सम्बन्धी प्रश्न दुनियाँ के विकसित व विकासशील देशों के अति चिन्तनीय विषयों की मुख्य धारा से जुड़ गया। इस दिशा में भारत की गम्भीरता व जागरूकता का पता, ‘धरती संरक्षण कोष’ के उस व्यापक प्रस्ताव से चलता है जो उसने बेलग्रेड गुट-निरपेक्ष शिखर सम्मेलन और क्वालालम्पुर राष्ट्र मण्डल सम्मेलन में रखा, जहाँ इसे व्यापक समर्थन मिला।