CDS Gen Bipin Rawat का आज एक हेलीकॉप्टर दुर्घटना में निधन हो गया है। जनरल रावत, उनकी पत्नी सहित 14 लोग भारतीय वायुसेना के जिस हेलीकॉप्टर में सवार थे, वह आज दोपहर तमिलनाडु के नीलगिरि जिले में दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। Mi सीरीज के हेलीकॉप्टर ने सुलुर आर्मी बेस से उड़ान भरी थी, इसके कुछ ही देर बाद यह नीलगिरि में दुर्घटनाग्रस्त हो गया। हादसे में 13 लोगों की मौत हो गयी है, जबकि बचने में सफल रहे एक शख्स का बुरी तरह से झुलसने के कारण इलाज किया जा रहा है।
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जनरल रावत के अलावा उनकी पत्नी, उनके डिफेंस असिस्टेंट, सुरक्षा कमांडोज और भारतीय वायुसेना के जवान हेलीकॉप्टर में थे। IAF की ओर से एक ट्वीट में कहा गया है,’बेहद अफसोस के साथ बताना पड़ रहा है कि जनरल बिपिन रावत, श्रीमती मधुलिका रावत और हेलीकॉप्टर में सवार 11 अन्य लोगों की ‘इस दुर्घटना में मृत्यु हो गई है।’ एक अन्य ट्वीट में यह भी जानकारी दी गई है कि ग्रुप कैप्टन वरुण सिंह का इस समय वेलिंगटन के मिलिट्री हॉस्पिटल में इलाज चल रहा है।
दुर्घटना की सबसे पहले जानकारी दोपहर 12.20 बजे मिली। केटेरी गांव के ग्रामीणों ने डिफेंस एस्टेब्लिशमेंट को यह जानकारी दी, जिन्होंने जिला प्रशासन को इससे सूचित किया। 63 वर्षीय जनरल रावत ने जनवरी 2019 में देश के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ का कार्यभार संभाला था। यह पद देश की तीनों सेनाओं, थल सेना, नौसेना और वायुसेना को एकीकृत करने के उद्देश्य से सृजित किया गया। बाद में उन्हे नवनिर्मित, डिपार्टमेंट आफ मिलिट्री अफेयर्स का भी प्रमुख नियुक्त किया गया था।
उत्तराखंड के पौड़ी में हुआ था जन्म
जनरल बिपिन रावत का जन्म उत्तराखंड के पौड़ी में 16 मार्च 1958 को हुआ था। उनके पिता लक्ष्मण सिंह लेफ्टिनेंट जनरल के पद से रिटायर हुए थे। मेरठ यूनिवर्सिटी से मिलिट्री-मीडिया स्ट्रैटेजिक स्टडीज में पीएचडी करने के साथ ही जनरल बिपिन रावत राष्ट्रीय रक्षा अकादमी, वेलिंगटन स्थित रक्षा सेवा स्टाफ कॉलेज और उच्च कमान राष्ट्रीय रक्षा कॉलेज के पूर्व छात्र रह चुके थे। उन्होंने अमेरिका के फोर्ट लीवएनवर्थ से कमान और जनरल स्टाफ विषय की पढ़ाई की। सेना में अपने लंबे करियर के दौरान जनरल रावत सेना के पूर्वी सेक्टर में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर थल सेना की एक बटालियन का नेतृत्व कर चुके हैं, साथ ही उन्होंने कश्मीर और पूर्वोत्तर में भी सेना की टुकडि़यों की कमान संभाली थी।
कई महत्वपूर्ण पदों पर रहे
एनडीए और भारतीय सैन्य अकादमी (आईएमए) के पूर्व छात्र रावत दिसंबर 1978 में सेना में शामिल हुए थे। उन्होंने सेकेंड लेफ्टिनेंट के साथ आर्मी में सफर शुरू किया और अभी सीडीएस जनरल के रूप में सेवाएं दी थीं। इस दौरान वो कई पद पर रहे। अपने चार दशक की सेवा के दौरान उन्होंने ने एक ब्रिगेड कमांडर, जनरल ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ (जीओसी-सी), जनरल स्टाफ ऑफिसर ग्रेड 2 के रुप में भी काम किया। वह संयुक्त राष्ट्र शांति सेना का भी हिस्सा रहे हैं।
जनरल रावत ने कांगो गणराज्य में विभिन्न देशों की सेनाओं की एक ब्रिगेड की भी कमान संभाली है। उनके पास सेना की पश्चिमी कमान में कई सैन्य अभियानों के संचालन का अनुभव था। सेना प्रमुख नियुक्त किए जाने के पहले वे सेना उप प्रमुख के पद पर काम कर चुके थे। सेना में 42 सालों से ज्यादा समय के कामकाज के अनुभव के आधार पर जनरल रावत को उनकी उत्कृष्ट सेवाओं के लिए कई वीरता और अतिविशिष्ट सेवा पदकों से सम्मानित किया जा चुका है।
देश सेवा का जज्बा है तो ज्वाइन करें सेना
बिपिन रावत 13 मई 2019 को शिमला गए थे। उस दौरान बिपिन रावत ने शिमला के सेंट एडवर्ड स्कूल का दौरा कर स्कूल में बिताए लम्हों को याद किया। इसी स्कूल से उन्होंने कुछ साल पढ़ाई भी की है। इस दौरान स्कूल के छात्रों ने बिपिन रावत से कई सवाल भी पूछे थे। उन्होंने छात्रों के सवालों का जवाब देने के साथ ही जीवन में सफलता पाने के लिए लगातार कड़ी मेहनत करने का मूल मंत्र भी दिया था। इस दौरान जनरल बिपिन रावत ने एनसीसी विंग के छात्रों को कहा था कि देश सेवा का जज्बा हो तो सेना ज्वाइन करें। जनरल बिपिन रावत ने स्कूल की विजिटर बुक में लिखा था, एनसीसी कैडेट के जज्बे और जोश को देखकर काफी प्रभावित हुआ हूं। इनके उज्जवल भविष्य की कामना करता हूं।
विदेश में शांति मिशन
MONUSCO की कमान संभालते हुए जनरल रावत ने अपनी सेवा की सर्वोच्च भूमिका निभाई। कांगो में तैनाती के दो सप्ताह के भीतर ब्रिगेड को पूर्व में एक बड़े हमले का सामना करना पड़ा, जिसने न केवल उत्तरी किवु (गोमा की क्षेत्रीय राजधानी) बल्कि पूरे देश में स्थिरता के लिए खतरा पैदा कर दिया। जनरल रावत की कमान में ही उत्तर किवु ब्रिगेड को मजबूत किया गया। उनका व्यक्तिगत नेतृत्व, साहस और अनुभव ब्रिगेड को मिली सफलता के लिए महत्वपूर्ण थे।
म्यांमार में सैन्य कार्रवाई
जून 2015 में मणिपुर में यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ वेस्टर्न साउथ ईस्ट एशिया (UNLFW) से जुड़े उग्रवादियों के घातक हमले में अठारह भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे। भारतीय सेना ने सीमा पार से हमलों का जवाब दिया जिसमें पैराशूट रेजिमेंट की 21वीं बटालियन की इकाइयों ने म्यांमार में एनएससीएन-के बेस पर हमला किया। दीमापुर स्थित III कोर के संचालन नियंत्रण में 21 पारा था, जिसकी कमान तब रावत के पास थी। उनकी कमान में की गई कार्रवाई सैन्य कार्रवाई में सबसे अहम स्थान रखता है।