कोरोना महामारी के प्रकोप से शायद ही कोई परिवार बच पाया हो। किसी ने अपनों का खो दिया तो किसी के परिवार पर इस लिए मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा क्योंकि अपनोे को बचाने के चक्कर में उसकी वर्षो की जमा पूंजी कुछ भ्रष्ट डाक्टरों, कालाबाजारियों और नर्सिंग होम संचालकों ने इलाज के नाम पर चट कर ली, जिसके चलते किसी का खेत बिक गया तो किसी का घर,किसी की लड़की की शादी रूक गई तो किसी का मकान अधूरा ही बना रह गया। कोरोना महामारी ने ऐसी कमर तोड़ी कि लोग लोन की किस्तें, बच्चों की स्कूल फीस भी नहीं जमा कर पाए। न जानें कितने लोगों का रोजगार छिन गया,जिसके चलते तमाम घरों में चैके की ‘रौनक’ जाती रही। दो जून की रोटी जुटाना भी लोगों के लिए मुसीबत हो गया। एक ‘घर’ बनाने में पूरी जिंदगी दांव पर लगा देने वालों का आशियाना ‘ताश के पत्तों’ की तरह बिखर गया। कहीं घर के बुजुर्गों ने इलाज के अभाव में दम तोड़ दिया तो, कहीं घर की जिम्मेदारी उठाने वाले स्वयं ही काल के गाल में समा गए।
दर्द-ए-कोरोनाः कोई जिंदगी से हारा, किसी को “सरकार ने मारा”
सबसे बुरा हाल उन छोटे-छोटे बच्चों(नाबालिकों)का हुआ जिनके माॅ-बाप या दोनों में से कोई एक कोरोना महामारी की चपेट में आकर स्वर्गवासी हो गया। ऐसे बच्चे जिनके सिर से माता या पिता या दोनों का ही साया छीन गया था,उनके लिए तो जिंदगी का कोई मकसद ही नहीं बचा। इन बच्चों की अच्छी परवरिश तो दूर रहने और खाने तक का ठिकाना नहीं बचा था।जब विपदा की घड़ी में नाते-रिश्तेदारों ने अनाथ बच्चों से मुंह मोड़ लिया था,तब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ‘फरिश्ता’ बन कर आए। ऐसे अनाथ बच्चों के लिए योगी सरकार का एक फरमान ‘नया सवेरा’ लेकर आया, वो अनाथ बच्चे जिनके सुनहरे भविष्य पर कोरोना का ‘संक्रमण’ लगता दिख रहा था उन बच्चों का भविष्य सुरक्षित करने के लिए सीएम योगी ने ‘ मुख्यमंत्री बाल सेवा योजना’ शुरूआत करके जता दिया कि भले ही उनका जीवन संन्यासी वाला हो, घर-गृहस्थी से उनका कोई नाता नहीं रहा हो,लेकिन बच्चों के लिए तो उनका भी दिल उतना ही धड़कता है जितना किसी और का धड़कता है।
योगी सरकार ने ऐलान किया है कि कोरोना के कारण जिन नाबालिग बच्चों ने अपने माता-पिता या दोनों में से किसी एक को खोया है,उनकी अर्थिक सहायता से लेकर पढ़ाई और विवाह तक खर्च सरकार उठाएगी।सरकार का उक्त फरमान जिसने भी सुना वह योगी को ‘शाबाशी’ देता नजर आया। कोरोना महामारी और लाॅक डाउन के बीच ही योगी सरकार की तारीफ वाले बैनर-पोस्टर सड़क पर नजर आने लगे। विपक्ष के पास भी कोई ऐसी गुंजाइश नहीं थी कि वह योगी सरकार के उक्त फैसले के खिलाफ मुंह खोल पाता, लेकिन रहस्य से पर्दा तब हटा जब कुछ मीडिया रिपोर्टो में इस बात को लेकर बहस छिड़ गई कि योगी सरकार के ‘सरकारी नुमांइदें’ कोरोना से हुई मौतों का आकड़ा कम दिखाने की साजिश में लगे हुए हैं ताकि प्रदेश सरकार को कोरोना से अधिक संख्या में होने वाली मौतों की किरकिरी से बचाया जा सके। इसी लिए साजिश के तहत कई सरकारी और गैर सरकारी अस्पतालों में कोरोना मरीजों की मौत की वजह छिपा कर कोरोना से हुई मौतों को हार्ट-किडनी फेल,शुगर व अन्य कारणों से हुई मौत बताकर मृत्यु प्रमाण पत्र तैयार किया जा रहा है,इससे योगी सरकार की छवि बले चमकती दिखती हो लेकिन इसी के चलते कोरोना के कारण जान गंवाने वाले लोगों के परिवार वालों को मुआवजा,आश्रितों को नौकरी और बीमा क्लेम आदि का फायदा नहीं मिल पा रहा है।
दरअसल,कोरोना से होने वाली मौतोें का मृत्यु प्रमाणपत्र जारी करते समय इसमें कहीं भी कोविड-19 का जिक्र नहीं किया जा रहा है।मृत्यु प्रमाण पत्र में कार्डियक पल्मोनरी अरेस्ट और सोप्टिसीमिया आदि लिख कर मृतक के परिवार वालों को गलत तरीके से तैयार प्रमाण पत्र थमा दिया जाता है। ऐसे में परिवारजन मुआवजा और बीमा राशि पाने के लिए चक्कर काटते रह जाते हैं। बाद में सभी जगह से इन्हें ‘ठेंगा’ दिखा दिया जाता है। राजधानी लखनऊ में ही अब तक 2477 लोगों की मौत हो चुकी है। जबकि पूरे प्रदेश में यह संख्या 20895 है। इनमें बड़ी संख्या में नौकरीपेशा लोेग है। तमाम ऐसे लोग है, जिन्होेंने बीमा करा रखा है। प्रमाण पत्र पर मौत की वजह अलग-अलग होने से मुआवजा और बीमा रिस्क कवर आदि मिलने में समस्या आ रही है। ऐसे में कोरोना के कारण जान गंवाने वाले लोगों के परिवार वाले अस्पताल का चक्कर काट रहे हैं। इसी के चलते लखनऊ के सिविल अस्पताल के लैब टेक्नीशियन अशोक कुमार गुप्ता को इंसाफ नहीं मिल पा रहा है। अशोक बीते साल नवंबर में संक्रमित होने के बाद दिन तक सिविल में भर्ती रहे। हालत बिगड़ने पर परिवारीजन उन्हें सहारा अस्पताल ले गए, जहां 29 नवंबर को मौत हो गई। डेथ सर्टिफिकेट में मौत की वजह हार्ट फेल होना दिखाया गया। कोविड डयूटी के दौरान जान गंवाने वाले लैब टेक्नीशियन के परिवार को न तो सरकार की तरफ से अभी तक कोई मुआवजा मिला और न ही किसी सदस्य को नौकरी।
इसी प्रकार से लखनऊ के डफिरन अस्पताल के बाल रेाग विशेषज्ञ डाॅ. अजीज बीते साल अस्पताल में संक्रमित गर्भवती व बच्चे का इलाज करने के दौरान पाॅजिटिव हुए। उन्हें पीजीआई में भर्ती कराया गया, जहां 15 जुलाई को उनकी मौत हो गई। अस्पताल प्रशासन ने परिजनों को मुआवजा राशि दिलाने के लिए सभी कागज तैयार करके स्वास्थ्य महानिदेशक को भेज दिए। करीब 11 माह बाद भी जब परिवार को मुआवजा राशि नहीं मिल पाई है तो मृतक की पत्नी ने स्वास्थ्य विभाग से सम्पर्क किया तो स्वास्थ्य महानिदेशक कार्यालय से उन्हें पत्र भेजकर अफसरों ने तर्क दिया कि वह कोविड वार्ड में डयूटी नहीं कर रहे थे। ऐसे में मुआवजे की राशि उन्हें नहीं मिल सकती। यह तो बानगी भर है ऐसे मामलों की लम्बी-चैड़ी लिस्ट मौजूद है।
इस संबंध में डाॅ. आरके गुप्ता, सीएमएस बलरामपुर अस्पताल से जानकारी ली गई तो उन्होंने बताया कि कोविड वार्ड में भर्ती होने वाले मरीजों की मौत पर कोविड निमोनिया लिखा जाता है।यदि दूसरे कारण से मरते है तो उसका जिक्र होता है। जिन मरीजों की आरटीपीसीआर रिपोर्ट नहीं होती है, उनमें मौत का कारण स्पष्ट नहीं होता है। ऐसे में उसका जिक्र नहीं किया जाता है।
बहरहाल,स्वास्थ्य महकमें के ऐसे ही कारनामों के चलते कोरोना के कारण जान गंवाने वाले लोगों के आश्रितों को काफी परेशानी का सामना कराना पड़ रहा है,वहीं इसी के चलते कई नाबालिग बच्चांे को भी ‘मुख्यमंत्री बाल सेवा योजना’ का लाभ नहीं मिल पा रहा है क्योंकि उनके माॅ-बाप या दोनों के मृत्यु प्रमाण पत्र में मौत का कारण कोविड-19 दर्शाया ही नहीं गया है,जबकि इन बच्चों के माॅ-बाप या या दोनों में से एक की मौत कोरोना संक्रमण के चलते हुई ही थी।
गौरतलब हो, गत दिनों योगी ने कोरोना काल में अनाथ हो गए बच्चो के लिए ‘मुख्यमंत्री बाल सेवा योजना’ की घोषणा की थी,जिसके तहत दस वर्ष से कम उम्र के बच्चे का कोई अभिभावक न होने पर बाल गृह में रखवाया जाएगा। लड़कियांे को अलग से आवासीय सुविधा मिलेगी। स्कूल-काॅलेज में पढ़ने वालो बच्चों की शिक्षा जारी रखने के साथ ही योजना के तहत आवश्यकतानुसार लैपटाॅप, टेबलेट आदि भी उपलब्ध करवाए जाएंगे। राज्य बाल आयोग की सदस्य डाॅ. शुचिता चुतर्वेदी के अनुसार योजना के लिए ऑनलाइन या ऑफलाइन दोनों तरह से आवेदन किया जा सकता है। लखनऊ से अब तक 75 बच्चों की सूची मिली है।
उधर, कोविड-19 के संक्रमण के चलते अपनों को खो चुके अनाथ और प्रभावित बच्चों की सुरक्षा व संरक्षण के लिए डीएम अभिषेक प्रकाश ने टास्क फोर्स गाठित की है। जिलाधिकारी ने प्रभावित बच्चों के लिए शुरू की गई ‘मुख्यमंत्री बाल सेवा योजना’ के सुचारू संचालन के लिए सीडीओं और तहसीलों के एसडीएम को नोडल अधिकारी बनाया है। इसके अलावा पात्र लाभर्थियों का आवेदन करवाने के लिए निगरानी समितियोें की भी मदद ली जा रही है,लेकिन सरकार के इन प्रयासों पर मृत्यु प्रमाण-पत्र में होने वाला खेल भारी पड़ रहा है। वैसे इस ‘खेल’ के पीछे विपक्ष योगी सरकार की भूमिका ही बता रहा है। समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता सरकार की नियत और नीति पर सवाल उठा रहे हैं।
लब्बोलुआब यह है कि योगी सरकार कोरोना पीड़ित परिवार वालों को मदद पहुंचाने पर ज्यादा ध्यान दें,जितनी मदद का ढिंढोरा पीटा जा रहा है अभी उतना काम जमीन पर नहीं दिखाई दे रहा है। सब कुछ सरकारी अधिकारियों/कर्मचारियों पर ही छोड़ दिया जाएगा तो फिर सरकार की जरूरत ही क्या रह जाएगी।सरकार को तो उसी समय चेत जाना चाहिए था जब उसकी सरकारी मशीनरी ने पंचायत चुनाव के समय ड्यूटी पर तैनात करीब डेढ़ हजार शिक्षकों की मौत का आकड़ा तीन पर समेट दिया था,जिसके चलते योगी सरकार की काफी फजीहत हुई थी। बाद मेें योगी ने घोषणा की थी पंचायत चुनाव ड्यूटी के दौरान तीस दिनों के भीतर जिसकी भी मृत्यु हुई होगी उसे तीस लाख रूपए मुआवजा और अन्य सुविधाएं दी जाएंगी,जबकि पहले तीन दिन में मरे शिक्षकों को मुआवजा दिए जाने की बात कही जा रही थी। अगर सरकार का यही रवैया रहा तो कहना ही पड़ेगा कि कोरोना के कारण जो ंिजंदगी से हारा, उसके आश्रितों को ‘सरकार ने मारा।’