सूनी धरा सूना गहन
सूनी धरा सूना गगन
कैसे बांटे यह अकेलापन
वह निहारे बैठ कर
मुंडेर पर..
दिखता नहीं अपना कोई दूर तक
गैरों से उम्मीद भी क्या करे
सब हैं अपने में मगन
इसको हिस्से में मिला
सूनी धरा सूना गगन
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