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देव प्रबोधिनी एकादशी व्रत पर्व आज, विभिन्न क्षेत्रों में अलग अलग हैं मान्यताएं 

अयोध्यादेव प्रबोधिनी एकादशी का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है क्योंकि इस दिन भगवान नारायण योगनिद्रा का त्याग करते हैं और सृष्टि का कार्यभार संभालते हैं। इसके बाद से ही चार्तुमास का अंत होता है और शुभ व मांगलिक कार्यक्रम शुरू हो जाते हैं। पुराणों में बताया गया है कि इस एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति जन्म मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है। और बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है।

देव प्रबोधिनी एकादशी व्रत पर्व आज, विभिन्न क्षेत्रों में अलग अलग हैं मान्यताएं 

शास्त्रों में देव प्रबोधिनी एकादशी को लेकर अलग अलग मान्यताएं हैं।यह भी मान्यता है कि आज के दिन व्रत धारण करने वाले अगर भगवान सत्यनारायण की कथा व्रत कथा श्रवण करते हैं तो परिवार में खुशहाली रहती है।

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व्रत धारण करने वाले श्रद्धालुओं द्वारा अपने पुरोहित द्वारा भगवान् सत्यनारायण व्रत कथा श्रवण किया है। प्रसाद वितरण किया जाता है। इसके अलावा स्नान करके पवित्रता के साथ भगवान् विष्णु को गन्ना, गुड़, सिंघाडा, गंजी (कंद) पुष्प, धूप, अगरबत्ती आदि चढाया जाता है। देशी घी से दीपक जलाया जाता है। भगवान् विष्णु की आरती की जाती है। साथ विष्णु मंत्र जाप श्रद्धालुओं द्वारा किया जाता है।

देव प्रबोधिनी एकादशी व्रत पर्व आज विभिन्न क्षेत्रों में अलग अलग हैं मान्यताएं 

उनकी आराधना की जाती हैं कि परिवार में सुख, शांति, समृद्धि, प्राप्त हो। परिवार निरोगित रहे। परिवार में मंगल कार्य हों। कहा जाता है कि ऐसा करने से भाग्य में वृद्धि होती है और जीवन में मंगल बना रहता है। इस दिन परिवार में तामसिक भोजन नहीं किया जाता है।

शुद्धता, पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है ।एक मान्यता यह भी है। माता तुलसी शालिग्राम का विवाह भी इसी दिन श्रध्दालुओं द्वारा किया जाता है। परम्परा के अनुसार श्रदालु करते हैं। उनके परिवार में सुख, शांति, समृद्धि मिलती है। कहा जाता है कि उस परिवार में मांगलिक कार्य भी होते हैं।

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कुछ श्रध्दालुओं द्वारा तुलसी पूजन किया जाता है। अवध क्षेत्र के विभिन्न जिलों में प्रबोधिनी एकादशी के दूसरे दिन सुबह होने से पहले सूप गन्ने के डंडे से पीटा जाता है। ईश्वर आवैं। दरिदर जांयें। ईश्वर आवैं। दरिदर जांयें। सूप को मकान के हर कमरों में पीटा जाता है। उसके बाद मकान से कुछ दूरी पर फेंक दिया जाता है। लोक मान्यता है कि ऐसा करने से परिवार से दुखः दारिद्रय दूर हो जाते हैं। परिवार मंगल ही मंगल होता है। यह लोक मान्यता अभी चली आ रही है।

देव प्रबोधिनी एकादशी व्रत पर्व आज, विभिन्न क्षेत्रों में अलग अलग हैं मान्यताएं  आज से गन्ने चूसने व नया गुड़ खाने की परम्परा भी है। गौ माता की सेवा की जाती है। गरीब जरूरतमंद लोगों को दान दिया जाता है। इस पर्व की अलग अलग क्षेत्रों में अलग अलग मान्यताएं प्रचलित हैं। अपने परम्परा व रिवाज के अनुसार लोगों द्वारा मनाया जाता है।

रिपोर्ट-जय प्रकाश सिंह

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