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ऐशबाग जलसंस्थान के भक्तों ने भगवान गणेश को झूमते-नाचते किया विदा

लखनऊ। ऐशबाग जल संस्थान स्थित शिव मंदिर में पिछले दो दिन तक भक्तों के बीच विराजमान रहने के बाद गणेशोत्सव के अंतिम दिन विघ्नहर्ता गणेश अपने धाम को वापस लौटने के लिए चल पड़े। गणेश प्रतिमा विसर्जन से पूर्व पुरोहितों के द्वारा शुभ मूहर्त में मंगलमूर्ति की वैदिक मंत्रोचार से हवन एवं पूजा अर्चना किया गया।

झांकी संयोजिका अनामिका मिश्रा के नेतृत्व में गणेश प्रतिमा विसर्जन शोभायात्रा में भगवान गणेश के स्वरूप को रंग-बिरंगे फूलों की मालाओं एवं सिंदूर से अलौकिक श्रृंगार करके वाहन पर रखा गया। तत्पश्चात भक्त जावेद भाई ने गणपति बप्पा को मोदक, फलों का भोग चढ़ाया। ढोल-नगाड़े की धुनों एवं गणपति बप्पा मोरया अगले बरस तू जल्दी आना के जयकारे के बीच भगवान गणेश को रंग-गुलाल वर्षा करते हुए इको फ्रेंडली गणेश प्रतिमा का विसर्जन करने के लिए भक्तजन झूमते-नाचते हुए ऐशबाग जल संस्थान से कुड़िया घाट विसर्जन स्थल के लिए निकल पड़े।

इस दौरान भगवान गणेश के भक्त अपने ईष्टदेव के भक्ति भाव में सराबोर नजर आए। रविवार को धूमधाम के साथ गणेशजी का विसर्जित किया गया। सभी लोगों की सुख समृद्धि की प्रार्थना की गई। गणेशोत्सव पर ऐशबाग जल संस्थान स्थित शिव मंदिर में श्री गौरी पुत्र गणेश की इको फ्रेंडली प्रतिमा की स्थापना की गई थी। जिसकी पूरी देखरेख हिन्दू-मुस्लिम भाईयों-बहनों भक्तों द्वारा किया जाता है।

मंदिर के पुजारी ने बताया कि गणेश विसर्जन की परंपरा द्वापर युग से चली आ रही है। उस समय गणेश चतुर्थी पर वेदव्यास ने विघ्नहर्ता गणेश को महाभारत सुनाते हुए इसे कलम बंद करने के लिए कहा था। श्रीगणेश यह कथा लगातार दस दिन अनंत चतुर्दशी तक अपने कर कमलों द्वारा लिखते रहे। महाभारत की संपूर्णता पर जब व्यास जी महाराज ने गणेश जी को उनके आसन से उठाया तो उस समय श्री गणेश जी का शरीर बहुत तप रहा था तो व्यास जी ने गणेश जी का हाथ पकड़कर उन्हें पास ही स्थित सरोवर में स्नान करवाया। इससे उनका शरीर शीतल हो गया। तभी से श्री गणेश जी के स्वरूप को स्नान अथवा विसर्जन करने की परंपरा चली आ रही है।

 दया शंकर चौधरी

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