अनिल मेहता- लखनऊ की वरिष्ठ पुलिस अधीक्षिका ने कमाण्ड पर पत्रकारों के रवैये से परेशान हो कर ब्रिफिंग बन्द करने की ऐलान कर दी,प्रतिस्पर्धा के चलते अच्छे भले पत्रकार को भली प्रकार से हुये भी जानते हुये तथाकथित पत्रकार कह देना।अवैध वसूली करते हुये सरेआम पकड़े जाना।पुलिस या अधिकारियों के सामने प्रतिस्पर्धा के चलते पत्रकार द्वारा पत्रकार को नीचा दिखाने का प्रयास करना।पत्रकारिता की गरिमा को भूल कर अधिकारियों की चाटुकारिता करते घूमना।ये है आज की पत्रकारिता के कुछ उदाहरण। प्रश्न यह उठता है कि वर्तमान मे पत्रकारिता कौन सा स्वरूप धारण कर रही है। जहाँ तक मेरे गुरू स्व0आचार्य पद्मश्री वचनेश त्रिपाठी,तथा भारत के सुप्रसिद्ध आशु कवि तथा पत्रकार/सम्पादक स्व0 पं0 जगमोहन अवस्थी ने पत्रकारिता के बारे में पढ़ाया तथा बताया था वो यह था कि पत्रकारिता का मतलब आपके कंधों पर एक भारी सामाजिक उत्तरदायित्व,आप पत्रकार होने के साथ-साथ एक समाज सेवक भी हैं।परन्तु आज की पत्रकारिता इन उद्देश्यों से कहीं दूर जाती दिख रही है। आज के पत्रकारों में माँगने तथा दिखावे की प्रवृति बढ़ती जा रही है तथा काम करने क्षमता घटती जा रही है। मुझे याद है मेरे गुरू स्व0 वचनेश त्रिपाठी जी बहुत ही सादे परिधान में रहा करते थे। कुर्ता,पायजामा,सदरी और कंधे पर एक झोला। पत्रकारिता जगत की शख्सियत ऐसी कि मुख्य मंत्री छोड़िये अगर भारत के प्रधानमंत्री से कह देते तो उनको सारी सुविधायें उपलब्ध हो जातीं मैने एक दिन उनसे कहा बाबू जी आपका इतना नाम है सुविधायें क्यों नहीं लेते आचार्य का तत्काल उत्तर था मैं भिखारी नहीं हूँ जो सरकारी भीख माँगने जाऊँ मेरा सिर श्रद्धा से उनके चरणों में झुक गया।ये थी एक सच्चे पत्रकार की सोच।लाख तकलीफें सहीं पर कभी अपनी कलम अपने विचारों का सौदा नहीं किया।आज जब पत्रकार बन्धुओं को सौदा करते देखता हूँ तो बड़ा दु:ख होता है।आज का पत्रकार,न्यूज चैनल,अखबार सब बिक रहे हैं। माना कि यह व्यवसायिक युग है।परन्तु व्यवसायिकता में कलम की मौत हो जाये यह भी ठीक नहीं है।आजकल की पत्रकारिता में एक नई बात देखने को मिल रही है।वह है निजस्वार्थ की पत्रकारिता अगर किसी अधिकारी या पुलिस वाले ने पत्रकार का काम नहीं किया तो तत्काल उसके खिलाफ समाचार पत्रों में अभियान छिड़ जाता है।अब कोई उन भलेमानुष पत्रकारों से ये पूछे कि अगर कोई अधिकारी या पुलिसकर्मी भ्रष्ट है तो क्या केवल आप की ही नजर उसके भ्रष्टाचार पर गई।बाकी पत्रकार अन्धे थे क्या? अभी हाल ही में सुनने को मिला कि वाराणसी के एक समाचार पत्र के सम्पादक महोदय एक महिला पत्रकार का शारीरिक शोषण करना चाहते थे उस महिला पत्रकार ने जब विरोध किया तो उसके पति को फर्जी मोटर साइकिल चोरी के मामले में फँसा दिया।तथा सोशल मीडिया पर उस महिला पत्रकार की बेइज्जती आज भी बदस्तूर जारी है।तो ये है आज की पत्रकारिता का स्वरूप।पत्रकारिता आज अपने उद्देश्यों से कहीं दूर चली गई है।कहीं ऐसा न हो कि कल को पत्रकारिता वसूली का एक अवैध धंधा बन कर रह जाये।
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