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विकास और बुलडोजर पर बल

दिग्गज नेता मणिशंकर अय्यर ने नरेंद्र मोदी के चाय वाला होने पर तंज कसा था। उनका कहना था कि मोदी प्रधानमंत्री तो नहीं बनेंगे। लेकिन, वह चाहें तो कांग्रेस उनके चाय बेचने की व्यवस्था कर सकती है। इस एक बयान ने चाय वाला को मुद्दा बना दिया। फिर यह चाय बेचने तक सीमित नहीं रह गया। यह गरीबों के सम्मान और स्वाभिमान से जुड़ गया। कहा गया कि कांग्रेस को गरीब परिवार के व्यक्ति का प्रधानमंत्री बनना पसंद नहीं है। उसे नरेंद्र मोदी का मुख्यमंत्री बनना भी मंजूर नहीं रहा। अब वह उन्हें प्रधानमंत्री बनने से रोकना चाहती है। 

  • Published by- @MrAnshulGaurav, Written by- Dr. Dilip Agnihotri
  • Friday, 11 March, 2022
     डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

सात वर्ष पहले भाजपा ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया था। तब वह गुजरात के मुख्यमंत्री हुआ करते थे। उस समय देश दुनिया को में यह चर्चा भी हुई कि वह बचपन में चाय बेचा करते थे। यह तथ्य रोचक था। लेकिन लोकसभा चुनाव में इसके व्यापक सन्दर्भ के साथ मुद्दा बनने की संभावना नहीं थी। किंतु उस समय सत्ता में बैठी कांग्रेस ने इसे संभव बना दिया। दिग्गज नेता मणिशंकर अय्यर ने नरेंद्र मोदी के चाय वाला होने पर तंज कसा था। उनका कहना था कि मोदी प्रधानमंत्री तो नहीं बनेंगे। लेकिन, वह चाहें तो कांग्रेस उनके चाय बेचने की व्यवस्था कर सकती है।

 

इस एक बयान ने चाय वाला को मुद्दा बना दिया। फिर यह चाय बेचने तक सीमित नहीं रह गया। यह गरीबों के सम्मान और स्वाभिमान से जुड़ गया। कहा गया कि कांग्रेस को गरीब परिवार के व्यक्ति का प्रधानमंत्री बनना पसंद नहीं है। उसे नरेंद्र मोदी का मुख्यमंत्री बनना भी मंजूर नहीं रहा। अब वह उन्हें प्रधानमंत्री बनने से रोकना चाहती है। पूरे देश में चाय पर चर्चा के कार्यक्रम आयोजित होने लगे। इसमें गरीबों वंचितों की समस्याओं पर चर्चा होने लगी। इस प्रकार अन्य मुद्दों के साथ चाय वाला भी एक आकर्षक मुद्दा बन गया।

इसके बाद चौकीदार का मुद्दा भी कांग्रेस की अदूरदर्शिता से चर्चा में आ गया था। यूपीए सरकार अनेक घोटालों के कारण चर्चा में रहती थी। नरेंद्र मोदी ने कहा था कि वह एक चौकीदार की तरह सरकारी खजाने की रक्षा करेंगे। जनता का धन जनता के कल्याण में ही खर्च होगा। यह विषय भी सामान्य रूप में था। लेकिन, राहुल गांधी अपनी जनसभाओं में चौकीदार चोर है का नारा लगवाने लगे। कांग्रेस का यह दांव भी उल्टा पड़ा। यूपीए के घोटाले नए सिरे से चर्चा में आ गए।

दूसरी तरफ डेढ़ दशक तक मुख्यमंत्री फिर प्रधानमंत्री बनने के बाबजूद मोदी का दामन बेदाग रहा। वह मनमोहन सिंह की तरह भी नहीं थे। जो निजी रूप से तो ईमानदार थे, लेकिन घोटालों को मौन रहकर देखते रहते थे। नरेंद्र मोदी ने कहा था कि मनमोहन सिंह रेनकोट पहन कर नहाते है। इसका मतलब भी घोटालों को नजरअंदाज करने से था। राहुल के बयान के बाद देश मैं भी चौकीदार मुद्दा बन गया। इसे ईमानदार सरकार से जोड़ कर देखा गया। इसी तर्ज पर बुलडोजर बाबा भी मुद्दा बन गया।

इसमें भी विपक्ष का ही योगदान रहा। यह सही है कि सत्ता पक्ष ने सबसे पहले इसका उल्लेख किया था। कहा गया कि अवैध सम्पत्ति पर बुलडोजर चलवाया गया। हजारों करोड़ रुपये की अवैध सम्पत्ति जब्त की गई। अनेक कार्यों के साथ ही यह विषय शामिल किया गया था। लेकिन विपक्ष ने प्रतिक्रिया देकर इसको बड़ा मुद्दा बना दिया। उसका यह दांव उसी पर भारी पड़ा। क्योंकि सत्ता पक्ष ने से कानून व्यवस्था, दंबगों, माफियाओं के दमन और सुशासन से जोड़ दिया। इससे विपक्ष स्वयं जबाबदेह बन गया। उसकी तरफ से कहा गया था कि बुलडोजर से जिसकी सम्प्पति ध्वस्त की गई, उनकी सरकार बनने पर उन्हें बना कर दिया जाएगा।

विपक्षी नेता यहीं तक नहीं रुके। उन्होंने कहा कि यह बुलडोजर सरकार है। बुलडोजर वाले बाबा नामकरण भी विपक्ष ने ही किया था। इस तरह यह बहुत बड़ा मुद्दा बन गया। भाजपा की प्रत्येक जनसभाओं में बुलडोजर भी प्रतीक रूप में खड़े होने लगे। योगी आदित्यनाथ ने कहा कि दस मार्च के बाद माफियाओं की अवैध सम्पत्ति पर बुलडोजर चलता रहेगा। उत्तर प्रदेश के इतिहास में विगत पांच वर्ष उपलब्धियों की दृष्टि से सर्वाधिक महत्वपूर्ण रहे है। करीब पचास योजनाओं में यूपी के नंबर वन का गौरव सामान्य नहीं है। नरेंद्र मोदी चुनाव प्रचार में यूपी के विकास का उल्लेख करते रहे। साथ ही विपक्ष पर भी जमकर हमला चलता रहा। उनके निशाने पर परिवारवादी पार्टी थी। उनका कहना था कि कुछ राजनीतिक दलों को देश की विरासत से भी परेशानी होती है। क्योंकि इन्हें अपने वोट बैंक की चिंता ज्यादा सताती है।

देश के विकास से दिक्कत इस कारण हैं क्योंकि गरीबों की इन पर निर्भरता दिनों दिन कम हो रही है। काशी में बाबा विश्वनाथधाम के पुनर्निर्माण कार्य से भी कुछ दलों के नेताओं की परेशानी सामने आई है। क्योंकि इससे उन्हें वोट बैंक की चिंता सता रही है। ऐसे दल गंगा की सफाई, आतंक के आकाओं के खिलाफ सेना की कार्रवाई पर सवाल उठाते हैं। ये वही लोग हैं जो भारतीय वैज्ञानिकों की बनाई मेड इन इंडिया कोरोना वैक्सीन को कठघरे में खड़ा कर देते हैं। अयोध्या में प्रभु श्रीराम का भव्य मंदिर बनने से परेशान होते हैं। जबकि, देश के विकास का उत्सव हम सभी को खुले मन से मनाना चाहिए। नरेन्द्र मोदी सार्वजनिक जीवन में कर्म योग पर अमल करते हैं। वर्तमान समय में उन्होंने ईमानदारी व मेहनत से कार्य की मिसाल कायम की है। मुख्यमंत्री व प्रधानमंत्री के रूप में पूर्ण क्षमता कुशलता से अपनी जिम्मेदारियों का उन्होंने निर्वाह किया है। इक्कीस वर्ष की इस अवधि में उन्होंने एक भी अवकाश नहीं लिया।

इस दौरान, विपक्ष के सर्वाधिक हमले उन्हीं पर हुए। यह हमले आज भी उसी तीव्रता से जारी हैं। उनके प्रत्येक कदम पर हंगामा होता है। नरेन्द्र मोदी ने इसे अपनी नियति मान ली है। हमलों को झेलते हुए वह निरन्तर आगे बढ़ते रहे हैं। उन्होंने एक बार कहा भी था कि विपक्ष की गलियां उन्हें आगे बढ़ने की प्रेरणा देती हैं। मतलब इसे भी वह अवसर बना लेते हैं। उनका पूरा जीवन राष्ट्र सेवा के लिए समर्पित है। शायद यही कारण है कि वह लगातार लोकप्रियता के शिखर पर हैं। समूचा विपक्ष उनके मुकाबले में नहीं है। नरेन्द्र मोदी को कर्म योग की जीवन शैली पसन्द है। यही कारण है कि वह अक्सर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की सराहना करते हैं। योगी आदित्यनाथ गोरक्ष पीठ के श्रीमहंत हैं। लेकिन, सामाजिक जीवन में वह भी कर्म योगी हैं। बिना किसी अवकाश के लगातार पूरी ईमानदारी से कार्य करना उनकी भी विशेषता है।

कोरोना पॉजिटिव होने के बाद भी उन्होंने विश्राम नहीं किया। अपने आवास से लगातार वर्चुअल माध्यम से सक्रिय रहे। अधिकारियों के साथ बैठक करते रहे,उनको निर्देश देते रहे,पूरे प्रदेश से आपदा प्रबंधन के फीडबैक प्राप्त करते रहे। कोरोना रिपोर्ट नेगेटिव आने के कुछ घण्टे बाद ही वह वह जनपदों की व्यवस्था का भौतिक जायजा लेने निकल गए। यह क्रम कई दिनों तक जारी रहा। साठ से अधिक जनपदों में उन्होने व्यवस्था का परीक्षण किया। सभी जनपदों में ऑक्सीजन प्लांट लगवाने और संभावित तीसरी लहर की तैयारियों पर उनका विशेष जोर था। इसके पहले कोरोना की पहली लहर के दौरान उनका कर्म योग परिलक्षित हुआ था। उस समय वह लगातार आपदा प्रबंधन में व्यस्त थे। योगी के इस प्रबंधन मॉडल की दुनिया में सराहना हो रही थी। अनेक विकसित देशों ने भी योगी मॉडल की प्रशंसा की थी। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी योगी मॉडल की सराहना की थी।

इसी दौरान, योगी आदित्यनाथ को अपने संन्या पूर्व आश्रम पिता का निधन हुआ। योगी आदित्यनाथ यह समाचार सुन कर भावुक हुए थे। फिर भी प्रदेश के हित को उन्होंने वरीयता दी। वह पुनः कोरोना आपदा प्रबंधन के कार्यों में व्यस्त हो गए। उन्होंने अपने मन की व्यथा को दबाए रखा। यही तो कर्मयोग है। इसी कार्यशैली से वह पूर्वी उत्तर प्रदेश में चार दशकों की जापानी बुखार समस्या का समाधान करते हैं। चालीस वर्षों से कहर बनी इस बीमारी पर पंचानबे प्रतिशत तक नियंत्रण स्थापित किया गया। इसी कार्यशैली से बयालीस योजनाओं में उत्तर प्रदेश पहले स्थान पर पहुंच गया। पहले उत्तर प्रदेश पिछड़ा और बीमारू माना जाता था। अब विकास के कीर्तिमान कायम हुए।

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