मुंबई। बॉम्बे हाईकोर्ट ने मंगलवार को निचली अदालतों को कड़ी नसीहत दी। कोर्ट ने कहा कि जब किसी नागरिक की स्वतंत्रता को लेकर सवाल खड़ा हो तो निचली अदालतों को अग्रिम जमानत याचिकाओं पर सुनवाई करने में देरी नहीं करनी चाहिए। ऐसे मामलों में जल्द से जल्द फैसला लेकर याचिकाकर्ता की अंतरिम सुरक्षा की व्यवस्था करनी चाहिए। कोर्ट ने कहा कि जब निचली अदालतें सुनवाई नहीं करतीं तो उच्च न्यायालय का बोझ बढ़ जाता है।
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न्यायाधीश संदीप मार्ने की एकल पीठ ने यह टिप्पणी शिवसेना नेता वामन म्हात्रे की अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई में देरी करने पर ठाणे जिले के कल्याण की निचली अदालत पर नाराजगी जाहिर करते हुए की। म्हात्रे पर बदलापुर में दो बच्चियों के यौन उत्पीड़न के दौरान हुए विरोध प्रदर्शन में एक महिला पत्रकार पर अपमानजनक टिप्पणी करने का आरोप है। म्हात्रे ने हाईकोर्ट में अपील की है कि उन्होंने 22 अगस्त को कल्याण सेशन्स कोर्ट में अग्रिम जमानत याचिका दायर की थी, लेकिन उनकी याचिका पर अब तक सुनवाई नहीं की गई।
म्हात्रे ने याचिका में कहा कि उनके आवेदन को हर बार निचली अदालत खारिज कर देती है और याचिका पर अब सुनवाई 29 अगस्त को होनी है। न्यायाधीश मार्ने ने निचली अदालत के न्यायाधीश को 29 अगस्त को याचिका पर फैस्ना सुनाने के निर्देश दिए।
न्यायाधीश मार्ने ने कहा कि अग्रिम जमानत याचिका की स्थिति की रिपोर्ट 29 अगस्त की शाम को हाईकोर्ट के रजिस्ट्री विभाग को सौंपी जाए। उन्होंने कहा कि जब व्यक्ति की स्वतंत्रता का मुद्दा हो तो कोर्ट को कम से कम अग्रिम जमानत आवेदन पर विचार करना चाहिए। जब निचली अदालतें ऐसे मामलों में फैसला नहीं लेतीं तो हाईकोर्ट का बोझ बढ़ जाता है। कोर्ट ने कहा कि समस्या ही यही है कि ऐसे में मामलों में फैसला ही नहीं लिया जाता।