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लग्नेत्तर संबंध कितना जायज़

आजकल समाज में एक हवा चल रही है (Extra marital affairs) यानी कि लग्नेत्तर संबंध। बहुत बार हम पढ़ते है, सुनते है लग्नेत्तर संबंधों के बारे में, पर इसके पीछे का कारण क्या हो सकता है इसका अंदाज़ा नहीं लगा सकते। ऐसे रिश्तों में क्या एक दूसरे के प्रति शिद्दत वाला प्यार होता है? या महज़ कुछ ऐसे कारणों की वजह से लोग किसी ओर के साथ जुड़ते है। जैसे, पति पत्नी एक दूसरे से असंतुष्ट होते है, खुद को आधुनिक विचारधारा वाली शख़्सियत मानते है, शारीरिक आकर्षण होता है या ज़िंदगी में कोई कमी महसूस कर रहे होते है? वजह कुछ भी हो सकती है। पर सोचने वाली बात ये है कि क्या ऐसे रिश्ते जायज़ है? सब जानते है कि ऐसे रिश्ते बारूद के ढ़ेर से खेलने की प्रक्रिया है। जिसमें विस्फोट के बाद सब ख़ाक़ में मिल जाना है।

पर जैसे हर चीज़ के दो पहलू होते है, वैसे इस मामले में भी दो राय हो सकती है। कोई ये कहेगा कि अगर प्यार करने वाले दोनों ही पहले से विवाहित है तो ऐसा रिश्ता प्यार की आड़ में यौनाचार है। अपने साथी के प्रति धोखा है। निश्चित है कि किसी एक ने मिलने के या संवाद साधने के अवसर खोजे होंगे और दूसरे को अपनी ओर आकर्षित करने की स्तिथियां निर्मित की होगी। यह सिर्फ़ #Adultary है, प्यार तो केवल मुलम्मा भर होता है। ऐसा रिश्ते किस काम के जिसमें दो व्यक्तियों के एक गलत कदम से दोनों परिवार बर्बाद हो सकते है। ऐसे रिश्तों की कोई उम्र नहीं होती फिर इस बवंडर को आमंत्रित करने का कोई अर्थ ही नहीं है। सब जानते हैं कि प्रेम की अंतिम परिणीति सेक्स है। प्रेम वहीं, पूर्णता प्राप्त करता है।

चाहे रिश्ता जो भी हो, लेकिन अगर उसमें धोखा, झूठ, फ़रेब और बेईमानी एक कदम भी रख दे, तो रिश्ते का बर्बाद होना तय होता है। #लग्नेत्तर संबंध बर्बादी है, धोखा है या हवसपूर्ति का ज़रिया है। तो दूसरी ओर कुछ लोगों की राय ये भी हो सकती है कि, प्यार कोई बोल नहीं, प्यार आवाज़ नहीं एक ख़ामोशी है, सुनती है, कहा करती है न ये बुझती है, न रुकती है, न ठहरी है कहीं नूर की बूँद है सदियों से बहा करती है। सिर्फ़ एहसास है ये रूह से महसूस करो प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम न दो।

अगर सच्चा प्यार हो जाए किसी से तो जरूर करो! पर आकर्षण को प्यार का नाम देकर यौनाचार न करो। अपने प्रेम को आत्मिक तल तक पहुँचाओ। प्रेम परमात्मा को महसूस करने का ज़रिया है। इसमें वासना या शरिरक उपभोग के विचार मत डालिए। वरना आप अपनी और दो और लोगों की ज़िंदगी बर्बाद करेंगे। प्रेम के आध्यात्मिक अनुभव और परमात्मा की झलक पाने से आप चूक जाएँगे। ये बात बिलकुल गलत है कि शादी नहीं हो पाएगी इसलिय प्रेम जायज़ नहीं है। जरूरी नहीं हर प्रेम की मंज़िल शादी हो।

हमारा समाज कुछ ऐसा है कि यहाँ कोई लड़की या तो आपकी बहन हो सकती है, या पत्नी। कोई लड़का या तो आपका भाई हो सकता है या पति। इसके अलावा जैसे कुछ हो ही नहीं सकता। तो साहब मीरा क्या कृष्ण की बहन थी? या उनकी पत्नी थी? कुछ नहीं, बस कृष्ण उनके प्रेमी थे। क्या मीरा ने कभी ये कहा की कृष्ण अपनी पत्नी को छोड़ कर उनके हो जाए? नहीं कभी नहीं। मीरा ने दूर रहकर भी कृष्ण को ऐसे चाहा की अंत में कृष्ण में समा कर कृष्ण हो गई। ये है सच्चा प्यार। प्रेम करना बिलकुल ग़लत नहीं।

प्रेम किया नहीं जाता हो जाता है। प्रेम कोई साज़िश नहीं जो रची जाए। प्रेम एहसास है कब आँखों की खता दिल पर भारी पड़ जाए पता ही नहीं चलता। तो जो तुम कर ही नहीं सकते उसे रोकोगे भी कैसे। हाँ जो तुम कर सकते हो वो यें की प्रेम के नाम पर वासना में डूब जाओ। प्रेम न करो ये तुमपर निर्भर करता ही नहीं है।

इसलिए प्रेम हो जाता है तो प्रेम करो, उसका सम्मान करो। अपने साथी की तकलीफ़ें कम कर सकते हो, उन तक आने वाली हर तकलीफ़ों को ख़ुद से गुज़र जाने देकर दर्द बाँट सकते हो। प्रेम अगर सच्चा है तो कभी मर्यादाए नहीं टूटेंगी। जिससे प्रेम करते हो उसका जीवन बस महका दो। उसे लगे की वो कितना ख़ुशनसीब है कि आपके जैसा एक मित्र उसे मिला।

वैसे तो प्यार करना गलत नहीं होता लेकिन इसको लेकर आप कितने गंभीर है और रिश्ता किस प्रकार का है। इन बातों पर तय होता है कि आप गलत है या सही। इसको लेकर कानून या सामाजिक मान्यताओं के अलावा खुद से पूछें कि अगर आप अपने लग्न जीवन में सुखी है साथी से संतुष्ट है फिर भी ये कितना सही और गलत है।

     भावना ठाकर ‘भावु’

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