- Published by- @MrAnshulGaurav
- Wednesday, April 20, 2022
भारत में प्राचीन काल से सकारात्मक संवाद का महत्व रहा है। प्रश्न जिज्ञासा व तर्क विर्तक से दर्शन यात्रा आगे बढ़ती रही। वर्तमान समय में संवाद के क्षेत्र में व्यापक बदलाव हुए है। तकनीक के चलते संवाद सम्प्रेषण आसान हुआ है। किंतु सकारात्मक संवाद के शाश्वत मूल्य यथावत है। इसमें विश्वसनीयता के साथ साथ समाज व राष्ट्र का हित भी समाहित रहता है।
संवाद में सामाजिक सरोकार होना चाहिए। ऐसा संवाद देश काल की सीमा तक सीमित नहीं रहता है। भारतीय परिवेश के संवाद ने उच्च प्रतिमान स्थापित किये है। जबकि वामपंथी रुझान की संवाद में नकारात्मक तत्व भी रहते है। उसमें राष्ट्र के हित का आग्रह नहीं रहता है। यूरोप अमेरिका आदि में कोरोना की दूसरी लहर के समय स्थिति भयावह थी। किंतु वहां की मीडिया ने विचलित करने वाले कष्टप्रद प्रसंगों को दिखाने में परहेज किया। उस समय जन सामान्य के मनोबल को बनाये रखने का दायित्व भी मीडिया पर था। वहां के मीडिया ने यह कार्य किया। इधर भारत के राष्ट्रवादी मीडिया ने भी इस तथ्य का ध्यान रखा। लेकिन उस समय भी एक वर्ग दुनिया में भारत की छवि को बिगाड़ने का जाने अनजाने प्रयास कर रहा था।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि वर्तमान में पत्रकारिता के समक्ष नई चुनौतियां हैं। प्रिण्ट मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया एवं डिजिटल मीडिया के अपने अपने महत्व हैं। समाज में विभिन्न आयुवर्ग के लोगों की अपनी अपनी रुचि और आवश्यकताएं हैं, जिन्हें मीडिया द्वारा अपनी जिम्मेदारियों के साथ पूर्ण किया जा रहा है। आजादी के अमृतकाल को मीडिया जगत द्वारा दुनिया के समक्ष भारतीयता का काल बनाना होगा।
दुनिया एक तरफ सदी की सबसे बड़ी महामारी कोरोना से जूझ रही है, तो वहीं दूसरी तरफ रूस और यूक्रेन के युद्ध से प्रभावित है। इन दोनों ही वैश्विक संकटों में दुनिया भारत के शान्तिपूर्ण सहअस्तित्व के भाव देख रही है।
इस आपदाकाल में विभिन्न देशों के राष्ट्राध्यक्ष प्रधानमंत्री से संवाद स्थापित कर रहे हैं। भारत के कौशल एवं प्रबन्धन को दुनिया सराह रही है। कोरोना महामारी के दौरान भारत का कोरोना प्रबन्धन एवं नियंत्रण दुनिया के विकसित और मजबूत स्वास्थ्य आधारभूत अवसंरचना वाले देशों की तुलना में बेहतर रहा है।
वर्तमान में दुनिया का दृष्टिकोण यह है कि भारत की पहल का असर पड़ेगा। विश्व की वर्तमान स्थिति और यूक्रेन-रूस युद्ध के बीच दुनिया की निगाहें शांति की अपेक्षा के साथ भारत पर टिकी हुई हैं। भारत ने कोविड काल में प्रबंधन के क्षेत्र में दुनियाभर में अपना लोहा मनवाया है।
विश्व भारत के कौशल एवं प्रबन्धन का लोहा मान रहा है। इसी कारण कि भारत आज जिस दिशा में आगे बढ़ रहा है,उसी दिशा में देश का मीडिया आगे बढ़ रहे है। उत्तर प्रदेश कई प्रश्नों के उत्तर ढूंढने वाला प्रदेश है। प्रश्नों का समाधान करने के लिए प्रखरता निष्ठा, लगन और मन का संकल्प आवश्यक है। नरेंद्र मोदी के सक्षम नेतृत्व में पहली बार भारत का सही चित्रण विश्व पटल पर हुआ है।
आजादी के अमृत महोत्सव पर सभी युवाओं से भारत का समग्र स्वर्णिम इतिहास से परिचित होने का अवसर मिल रहा है। भारत का इतिहास लिखते समय कुछ विशेष लोगों पर ही ध्यान दिया गया। अन्य महत्वपूर्ण योगदानों को इतिहास का हिस्सा नहीं बनाया गया। इसलिए इतिहास में सभी के योगदान का उल्लेख आवश्यक है। भारत का इतिहास सिर्फ स्वतंत्रता संग्राम तक सीमित नहीं है। यह आदिकाल से भारतीय संस्कृति की यात्रा है। भारत का इतिहास ऐतिहासिक इमारतों के साथ संस्कृति,परंपराएं, संस्कार और जीवन मूल्यों को संजोए हुए है। प्रदूषण केवल पर्यावरण का ही नहीं बल्कि संवाद व संस्कृति का भी है। पश्चिमी और पूंजीवादी विचार में एकाधिकारवादी प्रवृत्ति होती है। मीडिया में इनका वर्चस्व हो रहा है। भारतीय संस्कृति उदारता में विश्वास रखती है। अंग्रेजी का महत्व बढ़ना और हिंदी के महत्व का कम होना चिंता का विषय है।
मदर्स, फादर्स डे के नाम पर एक दिन का आयोजन यूरोप की सोच है। यह भी सांस्कृतिक प्रदूषण है। हमारे यहां प्रतिदिन माता पिता के सम्मान होता है। पूर्वाग्रह से संवाद की कभी सही दिशा नहीं मिलती। जैसे असिष्णुता अभियान चलाने वाले लोग पूर्वाग्रह से पीड़ित थे। ये वही लोग थे जो नरेंद्र मोदी के खिलाफ थे।
पिछले लोकसभा चुनाव से पहले यही लोग राष्ट्रपति से मिले थे। मोदीं के प्रधानमंत्री बनने का विरोध किया था। यह विचार संविधान और प्रजातंत्र के विरुद्ध था। कल्चर छोटा शब्द है, संस्कृति व्यापक होती है। पहले आंगन में तुलसी जी का विरवा होता था। पूरा परिवार आंगन के चारो ओर रहता था।
कमरे से बाहर आते ही संस्कृति शुरू होती है। जेएनयू हमारे देश में है। वहां जो टीचर विद्यर्थियो को हिन्दू धर्म की निंदा करते है, उन्हें रोका नहीं जाता। यह सहिष्णुता नहीं है। यह दूसरों की भावनाओं पर हमला है। इस प्रकार की सहिष्णुता केवल हिन्दू धर्म के विरुद्ध ही दिखाई देती है। इस पर भी विचार होना चाहिए। भारत जैसी सहिष्णुता विश्व में कहीं नहीं है। यह ऐसा अकेला देश है जिसने अपने आक्रान्ताओ से भी घृणा नहीं की। लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि नालंदा को जलाने वाले के नाम पर रेलवे स्टेशन का नाम बना रहे। संस्कृति के प्रति आत्मगौरव होना चाहिए।
वीर सावरकर ने कभी हिंसा का सहारा नहीं लिया। वह राष्ट्रवादी थे। अंग्रेजों ने उन्हें बहुत यातना दी। लेकिन भारत के वामपंथी लेखकों, पत्रकारों ने उनकी सदैव निंदा की। यही लोग सोवियत संघ,चीन, क्यूबा आदि कम्युनिस्ट देशों में लाखों लोगों की हत्या की भी कभी आलोचना नहीं करता। ये लोग ईसाई मिशनरी के विरोध में कुछ नहीं बोलते। हिन्दू संगठन सदैव इनके निशाने पर रहते है। एक तरह कम्युनिस्ट व पश्चिम सभ्यता से प्रभावित मीडिया है। दूसरा राष्ट्रवादी मीडिया है। यह भारतीय संस्कृति के अनुरूप कार्य करता है।
पत्रकारिता संस्कृति की संवाहक होती है। ऐसे में इसका भारतीय मूल्यों के अनुरूप अपरिहार्य है। संस्कृति से मनुष्य की मानसिक और सभ्यता से भौतिक क्षेत्र की जानकारी मिलती है। भारत की पत्रकारिता को श्रेष्ठ होना है तो उसे भारतीय मूल्य स्वीकार करना होगा। भारतीय चिंतन में असहिष्णुता संभव ही नहीं है। जिस दिन यह विचार प्रभावी होगा, उसके सकारात्मक प्रभाव दिखाई देने लगेंगे।पत्रकारिता अपनी संस्कृति से अलग होकर कल्याणकारी नहीं हो सकती। यह अच्छा है कि भारतीय पत्रकारिता में राष्ट्रवादी लोगों की संख्या बढ़ रही है।