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कोरोना वैक्सीन पर अनुचित राजनीति

डॉ. राकेश कुमार मिश्र
डॉ. राकेश कुमार मिश्रा

प्रधानमन्त्री मोदी ने कहा कि आज सम्पूर्ण देश के लिए गर्व का दिन है कि हमें कोरोना से सार्थक लड़ाई के लिए एवं इस विपदा से देश को बचाने के लिए दो वैक्सीन मिल गई हैं। आज ही डी जी सी आई ने आपात स्थिति में कोवीशील्ड एवं कोवैक्सीन नामक दो वैक्सीन को उपयोग करने की मंजूरी प्रदान की। यह भारत जैसे विकासशील देश के लिए निश्चित तौर पर गर्व की बात है कि वैक्सीन विकसित करने के मामले में भी भारत अमेरिका एवं ब्रिटेन जैसे देशों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रहा है और अपने नागरिकों की सुरक्षा के लिए आत्मनिर्भर है।

यही नहीं अनेकों पिछड़े एवं अर्धविकसित राष्ट्र भारत की तरफ नजर लगाए हैं कि वह इन राष्ट्रों की भी मदद करेगा। आक्सफोरड एस्ट्राजेनिका के साथ सहयोग से सीरम इंस्टीट्यूट आफ इंडिया में बनी वैक्सीन कोवीशील्ड को इंग्लैंड पहले ही मान्यता दे चुका है सीरम इंस्टीट्यूट विश्व में वैक्सीन निर्माण के लिए नंबर वन की कंपनी है जिसका लैब एवं कार्यालय पूना में है। इसी तरह कोवैक्सीन आई सी एम आर के साथ मिलकर भारत बायोटेक ने बनाई है जो पूर्णतया स्वदेशी है। यह दोनों वैक्सीन भारतीय परिवेश के लिए पूर्णतया उपयुक्त हैं क्योंकि इनको दो से आठ डिग्री तापमान पर स्टोर किया जा सकता है जबकि विदेशों में बनी फाइजर या माडरना वैक्सीन को सुरक्षित रखने के लिये बीस से तीस डिग्री के बीच माइनस तापमान की आवश्यकता होती है।

स्वाभाविक है कि यह विदेशी वैक्सीन भारत की बड़ी आबादी एवं जलवायु तथा परिवेश को देखते हुए उतनी उपयुक्त नहीं और इनकी कीमत भी अपनी वैक्सीन से अधिक है। डी जी सी आई ने एक अन्य वैक्सीन को भी तीसरे चरण के ट्रायल की मंजूरी दी है। उम्मीद है कि निकट भविष्य में तीन चार और देशी वैक्सीन आ सकती हैं।

यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि जहाँ एक तरफ पूरा देश वैक्सीन आने से उत्साहित है वहीं विपक्ष के कई राजनेता जन स्वास्थ्य एवं सदी की सबसे भयावह त्रासदी के विरुद्ध सार्थक उपलब्धि पर भी घ्रणित राजनीति से बाज नहीं आ रहे हैं। इन नेताओं को शर्म भी नहीं आती कि वो अपने बयानों से कोरोना के विरुद्ध आगे बढ़कर लड़ने वाले डाक्टरों,वैज्ञानिकों एवं शोधकर्ताओं की समर्पण भावना एवं मेहनत का अपमान कर रहे हैं। हकीकत यह है कि मोदी सरकार ने जिस धैर्य, संवेदनशीलता एवं परिश्रम के साथ कोरोना के विरुद्ध लड़ाई लड़ी एवं कोरोना से होने वाले जनमानस के नुकसान को सीमित रखने में सफलता पाई, उसे विपक्ष हजम नहीं कर पा रहा। यह विपक्ष के लिए एक और झटका था कि कोरोना के विरुद्ध लड़ाई को अंजाम तक पहुंचाने के लिए भारत ने दो वैक्सीन भी समय रहते प्राप्त कर ली। यह हास्यास्पद है कि जहाँ विश्व स्वास्थ्य संगठन कोरोना के विरुद्ध लड़ाई में भारत के प्रयासों की तारीफ़ करता है एवं वैक्सीन आने पर बधाई देता है वहीं विपक्ष के कई राजनेता इस नाजु़क दौर में भी अपनी ओछी राजनीति से बाज नहीं आ रहे। ऐसा लगता है कि इन विपक्षी नेताओं के लिए मोदी विरोध सर्वोपरि है चाहे मौका कितना भी नाजुक हो और इनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा एवं मोदी विरोध की नीति से देश एवं जनता का कितना भी अहित हो। सच यह है कि मोदी सरकार ने विपक्ष को किंकर्तव्यविमूढ बना दिया है और इस कारण विपक्षी नेता यह समझ भी नहीं पाते कि मोदी विरोध करते करते वह कब देश एवं जनता के विरुद्ध भी खड़े दिखाई पड़ते हैं।

सोचने की बात है कि पिता की विरासत एवं बुआ के कुशासन के फलस्वरूप पांच वर्ष तक मुख्यमंत्री रहे अखिलेश यादव को कोरोना वैक्सीन में बीजेपी वैक्सीन दिख रही है और उन्होंने वैक्सीन न लगवाने के पीछे यह तर्क दिया कि उन्हें बीजेपी पर भरोसा नहीं। अखिलेश यादव को यह बताना चाहिए कि कोरोना वैक्सीन क्या आर एस एस के मुख्यालय नागपुर में बनी है। यह सीधे सीधे कोरोना वैक्सीन बनाने एवं विकसित करने वाले वैज्ञानिकों एवं शोधकर्ताओं का एवं उनकी राष्ट्र के प्रति समर्पण एवं निष्ठा का अपमान है। प्रदेश के दुबारा मुख्यमंत्री बनने के लिए बेताब अखिलेश यादव अपने बयान से समाज एवं अपने समर्थकों को क्या संदेश देना चाहते हैं? क्या वे ऐसे बयान देकर लोगों को गुमराह करने एवं देश की कोरोना के विरुद्ध लड़ाई को कमज़ोर नहीं कर रहे हैं। अखिलेश यादव ऐसे बयान देकर अपने को कुछ मुस्लिम कट्टरपंथियों के साथ दिखाने की कोशिश भी कर रहे हैं जो वैक्सीन पर पहले से ही सवाल खड़ा कर रहे हैं। अखिलेश यादव की ही पार्टी के एक एम एल सी तो यहां तक कह गए कि हो सकता है वैक्सीन में प्रजनन क्षमता घटाने वाली कोई बात हो। आप इन बयानों को हँसकर नहीं टाल सकते क्योंकि ये देश की कोरोना जैसी महामारी के खिलाफ गंभीर लड़ाई के विरुद्ध सोचा समझा दुष्प्रचार है और निश्चित उद्देश्य के साथ कि कोरोना के विरुद्ध मिलती सफलता को पटरी से उतारा जा सके एवं मोदी को नीचा दिखाया जा सके। संतोष की बात यह है कि जनता का मोदी सरकार पर अटूट विश्वास है एवं इन नेताओं को जनता पहचान चुकी है कि इनके लिए सत्ता ही सबकुछ है। मेरी राय में ऐसे नेताओं के प्रति जनता को गुमराह करने केआरोप में कठोर कार्यवाही की जानी चाहिए। अखिलेश यादव को सत्ता में आने या पाकिस्तान में सुरक्षित वैक्सीन विकसित होने का पार्टी के कार्यकर्ताओं के साथ इन्तजार करना चाहिए परन्तु देश के जनमानस को गुमराह करने वाली ओछी एवं राष्ट्रविरोधी राजनीति से बाज आना चाहिए। अखिलेश को यह समझ आ जाना चाहिए कि जनता बहुत समझदार है और वह सब देख रही है।

आज राशिद अल्वी ने भी अखिलेश का बचाव करते कहा कि वर्तमान सरकार विपक्ष के प्रति दमनकारी है एवं वह किसी भी हद तक जा सकती है।ऐसे में अखिलेश यादव की शंका निराधार नहीं है। इतनी नकारात्मक एवं तुच्छ मानसिकता की जितनी निन्दा की जाय कम है। आज ही कोवैक्सीन को डीसीजीआई द्वारा मान्यता देते ही शशि थरुर एवं जयराम रमेश ने वैक्सीन की सुरक्षा एवं ट्रायल का तीसरा चरण पूरा हुए बिना संस्तुति पर सवाल खड़े कर दिए। विशेषज्ञों का कहना है कि किसी भी वैक्सीन को मंजूरी दिए जाने की एक तय प्रकिया है जिसका अनुपालन किया जाता है। हो सकता है कि ट्रायल के तृतीय चरण के आंकड़े सार्वजनिक न हुए हों परन्तु यह भरोसा किया जाना चाहिए कि विषय विशेषज्ञ समिति एवं डीजीसीआई ने बिना शत प्रतिशत संतुष्ट हुए संस्तुति नहीं दी होगी। क्या इस क्षेत्र में सक्षम शीर्षस्थ अधिकारी का वैक्सीन को पूर्णतः सुरक्षित बताना पर्याप्त नहीं है। यह समझ से परे है कि काँग्रेस के नेता केवल अपने को बुद्धिमान एवं ईमानदार समझने एवं शीर्षस्थ संस्थानों की ईमानदारी एवं निष्पक्षता पर प्रश्न उठाने से कब बाज आयेंगे। यह किस प्रकार की राजनीति कांग्रेस करती है कि चुनाव के समय चुनाव आयोग पर, सर्जिकल स्ट्राइक एवं एयर स्ट्राइक के समय सेना की जाँबाजी पर, मनोनुकूल निर्णय न आने पर उच्चतम न्यायालय की समझ एवं परिपक्वता पर और अब वैक्सीन संस्तुति पर वैज्ञानिकों एवं डाक्टरों की ईमानदारी, समर्पण पर प्रश्नचिन्ह उठाती है।

जब सत्तापक्ष उनकी मंशा पर सवाल उठाता है तो यह दुष्प्रचार कि मोदी सरकार ने विपक्ष को सवाल पूछने के अधिकार से भी वंचित कर दिया है और हमें देशभक्ति का प्रमाणपत्र किसी से नहीं चाहिए। वैक्सीन मुफ्त मिलेगी या कीमत देनी होगी, इस पर भी कांग्रेस सहित पूरा विपक्ष परेशान है। यदि सरकार सभी को मुफ्त वैक्सीन लगाती है तब भी वह पैसा चुकाना तो करदाता को ही होगा परन्तु विपक्ष यह कहते नहीं थक रहा कि हम सत्ता में होते तो सबको मुफ्त वैक्सीन लगाते। मेरा मानना है कि समाज के कमजोर तबके को वैक्सीन मुफ्त मिलनी चाहिए परन्तु जो सक्षम है उन्हें इसका खर्च वहन करना चाहिए।यदि केन्द्र सभी को मुफ्त वैक्सीन के पक्ष में नहीं है तो राज्य सरकारें अपने स्तर पर ऐसा निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र हैं। अनेक राज्य सरकारें ऐसी घोषणा कर भी चुकी हैं। अंत में मेरा यही सुझाव होगा कि देश में राजनेताओं को कोरोना वैक्सीन पर सस्ती राजनीति से बाज आना चाहिए और कोरोना को मात देने में सरकार का भरपूर सहयोग करना चाहिए।

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