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यादों में गोपाल दास नीरज

डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

श्रेष्ठ साहित्यकार कभी आत्म प्रशंसा नहीं करते। भारतीय परंपरा में तो सदैव यह विचार परिलक्षित हुआ है। अपने छोटे बताना और फिर बड़ी बात कहना ही किसी को महान बनाता है। प्रसिद्ध कवि गोपाल दास नीरज ऐसे ही थे।

अपने बारे में वह गुनगुनाते थे- इतने बदनाम हुए, हम तो इस जमाने में। लगेंगी आपकी सदियां, हम भुलाने में।।

यह पंक्तियां उनके बड़प्पन को उजागर करती है। वह तो विख्यात हुए,उनके गीतों के प्रति लोगों की दीवानगी रही है। इसी लिए आज भी लोग उनको याद करते है। लखनऊ में पद्मभूषण गोपाल दास नीरज को समर्पित नीरज चौक का लोकार्पण उपमुख्यमंत्री डॉ. दिनेश शर्मा, विधि मंत्री बृजेश पाठक, नगर विकास मंत्री आशुतोष टण्डन और महापौर संयुक्ता भाटिया ने किया।

डॉ. दिनेश शर्मा ने ने नीरज जी की साहित्यिक यात्रा पर भी अपने विचार व्यक्त किये। उन्होंने कहा नीरज जी कालजयी कवि थे। उनके नाम पर चौराहा नामांकित होना लखनऊ का सौभाग्य है। इसके लिए उन्होंने महापौर संयुक्ता भाटिया बधाई दी।

अटल चौक और नीरज चौक

लखनऊ में पहले अटल चौक फिर नीरज चौक का नामकरण अद्भुत सांयोग भी है। कानपुर के डीएवी कॉलेज में भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी राजनीति शास्त्र में एम ए कर रहे थे। उसी समय गोपाल दास नीरज वहां कार्यालय में कार्यरत थे।

अटल जी और नीरज जी दोनों कविता लिखते थे। अक्सर साथ साथ कवि सम्मेलनों में जाते थे। उनके संस्मरण अति रोचक है। कई बार धन आभाव का सामना करना पड़ता था। जैसे तैसे दोनों लोग इसके लिए व्यवस्था करते थे। अब लखनऊ में इन दोनों महापुरुषों के नाम पर चौक है।

नीरज को समर्पित कवि सम्मेलन

समारोह के दूसरे चरण में अखिल भारतीय कवि सम्मेलन हुआ जिसमें डॉ विष्णु सक्सेना की वाणी वंदना से गीत यात्रा शुरू हुई जिसमें गजेंद्र प्रियांशु ने-जैसे तैसे उम्र बिता ली मैंने तेरे प्यार में, रात रात भर तुमको गाया सुबह छपे अखबार में..

गीतकार राजेन्द्र राजन ने- रिश्ते सहना भी जिम्मेदारी है, चाहे जितनी भी जंग जारी है..

डॉ. विष्णु सक्सेना ने – रेत पर नाम लिखने से क्या फायदा, एक आई लहर कुछ बचेगा नहीं..

प्रथम बार मंच से स्माइलमैन सर्वेश अस्थाना ने भी गीत पढ़ा- तुमने पत्र जलाया होगा प्रेम प्रमाण मिटाने को, चलो बहाना ये भी अच्छा अपने ही समझाने को।

मैनपुरी के बलराम श्रीवास्तव व इटावा के राजीव राज ने भी काव्यपाठ किया। अध्यक्षता कर रहे डॉ. उदय प्रताप ने नीरज जी से जुड़े संस्मरण भी सुनाए व काव्यपाठ में – पुरानी कश्ती को पार लेकर फकत हमारा हुनर गया है, नए खिवैये कही न समझे नदी का पानी उतर गया है।

महापौर संयुक्ता भाटिया ने कहा कि गोपालदास नीरज की गीत प्राणों और सांसों में बस जाने वाले थे। उनके अवसान से हिंदी गीत की एक बड़ी परंपरा का अवसान हो गया है। वह दिनकर के बाद हिंदी पट्टी के सर्वाधिक लोकप्रिय कवि थे जिन्हें जितने चाव से पढ़ा और गुनगुनाया जाता था,उतने ही चाव से सुना जाता था। नीरज जी ने निज के अभावों और पीड़ा को भी गीतों में बदल दिया था, युवावस्था के प्रेम की भाव में वे लगभग सारी उम्र खोए रहे और आजीवन प्रेम का संदेश देते रहे।

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