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गांधी दर्शन में आत्मनिर्भर भारत

महात्मा गांधी केवल देश को स्वतंत्र कराने के प्रति ही समर्पित नहीं थे,बल्कि उन्होंने भारत को आत्मनिर्भर बनाने वाली अर्थव्यवस्था का भी विचार दिया था। इसी के अनुरूप प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आत्मनिर्भर भारत अभियान शुरू किया है। केन्द्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने शैक्षणिक क्षेत्र में भी प्रेरक बताया है। नई शिक्षा नीति में भी आत्मनिर्भर भारत विचार का समावेश है।

उन्होंने कहा कि मौजूदा कोरोना संकट के समय में भी महात्मा गांधी के विचार अत्यंत प्रासंगिक हैं। प्रत्येक नागरिक गांधी के विचारों और दर्शन से लाभ उठाकर देश को आत्मनिर्भर बना सकता है। पूरी दुनिया गांधीवादी दर्शन के महत्व और सत्य,प्रेम,विनम्रता और अहिंसा के उनके सिद्धांतों को महसूस कर रही है,खासकर जब यह कठिन समय से गुजर रहा है। गांधी की प्रासंगिकता सर्वविदित है। जीवन का कोई ऐसा हिस्सा नहीं है जहां गांधी के विचार प्रासंगिक नहीं लगते हैं। गांधीजी के विचार सच्चाई,शांति, अहिंसा,सतत विकास, पर्यावरण संरक्षण,मूल्य आधारित शिक्षा आदि जैसे कई पहलुओं पर मार्गदर्शन करते हैं।  छात्रों के पास आज गांधीजी के जीवन से बहुत कुछ सीखने का अवसर है कि छात्र राष्ट्र निर्माण में कैसे योगदान दे सकते हैं। आज देश का प्रत्येक नागरिक गांधी के विचारों और दर्शन से लाभ उठाकर देश को आत्मनिर्भर बना सकता है। महात्मा गांधी सर्वधर्म समभाव के लिए भी समर्पित थे। यह भारतीय विचार है। जबकि पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश धर्मनिरपेक्ष मुल्क नहीं है। निशंक ने
सीएए के विरोध को भी अनुचित बताया। जबकि पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने का फैसला मानवीय था।

महात्मा गांधी ने भी विभाजन के समय कहा था कि हिन्दू,सिख आदि जब चाहें भारत आ सकते है। विभाजन के दौरान धार्मिक अल्पसंख्य हिंदू, बौद्ध, सिख, जैन और ईसाई की पाकिस्तान में तेईस आबादी थी, जो आज करीब तीन हो गई है। क्या उन्हें धर्म बदलने के लिए मजबूर किया गया, मार दिया गया या पलायन करने के लिए मजबूर किया गया। पोखरियाल ने दावा किया कि भारत में मुस्लिम आबादी आजादी के दौरान नौ प्रतिशत थी,जो आज बढ़कर चौदह प्रतिशत हो गई है। कोरोना आपदा ने दुनिया के परिदृश्य को परिवर्तित किया है। जिसने विकास की आधुनिक मान्यताओं के सामने प्रश्नचिन्ह लगाया है। विकसित देशों को भी इस संकट में विवश देखा जा रहा है।

भारतीय संस्कृति की मान्यताओं का महत्व बढा है। इसके जीवन मूल्यों व जीवन शैली को स्वीकार किया जा रहा है। इस संकट में भारत ने सही समय पर सही तरीके से  कदम उठाए है। भारत में लॉकडाउन का कितना व्यापक प्रभाव रहा है। प्रधानमंत्री ने कहा कि इस लॉकडाउन में भारत ने कोरोना से लड़ाई के लिए भौतिक संसाधनों को  तैयार किया। अपने मानव संसाधन को भी बचाया है। भारत से अन्य देश प्रेरणा ले रहे है। यह माना जा रहा है कि भारत विश्व को उचित दिशा दिखा सकता है। लेकिन इसके पहले भारत को स्वयं आत्मनिर्भर बनाना होगा। इसके लिये इच्छाशक्ति, समावेशी विचार, निवेश, अवसंरचना और नवप्रवर्तन की आवश्यकता है। इसी को आगे बढाने के लिए  केंद्रीय कैबिनेट कारगर कदम उठाए है। उसके निर्णय से देश के छांछठ करोड़ लोगों को आत्मनिर्भर बनने का अवसर मिलेगा। जिसमें पचपन करोड़ लोग खेती पर निर्भर हैं। शेष ग्यारह करोड़ लोग एमएसएमई में काम कर रहे हैं।

किसानों की फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य की कुल लागत का डेढ़ गुना ज्यादा रखने का वादा सरकार पूरा किया। खरीफ फसल फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य जारी कर दिया गया है। इन फसलों पर किसानों को लागत का पचास से तिरासी प्रतिशत तक ज्यादा मूल्य मिलेगा।  एमएसएमई की परिभाषा में भी संशोधन किया गया है। इकाई की परिभाषा के तहत निवेश की सीमा बढ़ाकर एक करोड़ के निवेश और पांच करोड़ का कारोबार कर दिया है। लघु इकाई निवेश की सीमा बढ़ाकर दस करोड़ रुपए और पचास करोड़ रुपए का कारोबार कर दिया गया है। मध्यम इकाई के तहत बीस करोड़ रुपए निवेश और ढाई सौ करोड़ रुपए का कारोबार कर दिया है। मध्यम और मैन्युफैक्चरिंग सेवा इकाइयों की सीमा भी बढ़ाकर पचास करोड़ निवेश कर दी गई। कारोबार की सीमा ढाई  निर्यात में एमएसएमई को किसी भी टर्नओनर में नहीं गिना जाएगा। यह नियम सूक्ष्म,लघु व मध्यम  उद्यमों पर लागू होंगे। रेहड़ी, पटरी पर सामग्री बेचने वालों के लिए नरेंद्र मोदी पहले भी अपनी मनोभावना व्यक्त कर चुके है। उनका कहना था कि लॉक डाउन के दौरान उनको होने वाली तकलीफ को वह समझते है। अब प्रधानमंत्री स्वनिधि स्कीम के तहत उन्हें दस हजार का कर्ज दिया जाएगा।

लॉक डाउन संकट से बिगड़ी देश की अर्थव्यवस्था को ठीक करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आत्मनिर्भर भारत अभियान  की शुरूआत की थी।
इसके तहत बीस लाख करोड़ रुपए के आर्थिक पैकेज दिया था। उसमें  रेहड़ी पटरी और ठेले पर समान बेचने वाले पचास लाख लोगों को लोन देने के लिए पांच हजार करोड़ रुपए की व्यवस्था आर्थिक पैकेज के तहत की गई थी। इस स्कीम में प्रति व्यक्ति दस हजार रुपए का लोन मिलेगा। इसके पहले नरेंद्र मोदी ने आर्थिक सुधारों की गति बढ़ाने और कृषि क्षेत्र को पुराने कानूनों की बंदिशों से मुक्त कर खोलने की बात कही थी। सरकार की ओर से उठाए जा रहे सुधारवादी कदमों का अर्थव्यवस्था को दीर्घकालिक लाभ होगा। अर्थव्यवस्था को फिर से मजबूत करना सरकार की  प्राथमिकता है। कई क्षेत्र जो अब तक बंद थे उन्हें निजी क्षेत्र के लिये खोला गया है। इन सुधारों से आने वाले समय में आर्थिक वृद्धि की गति बढ़ाने में मदद मिलेगी। उत्तर प्रदेश मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी केंद्र के निर्णयों के स्वागत किया है। कहा कि इससे आत्म निर्भर भारत की राह प्रशस्त होगी। इस क्षेत्र के लिए केन्द्र सरकार द्वारा बीस हजार करोड़ रुपये के ऋण के प्रावधान और पचास हजार करोड़ रुपये के इक्विटी निवेश के अनुमोदन से इस क्षेत्र के पूंजी की कमी का समाधान होगा। सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग के निवेश और कारोबार का दायरा बढाना भी सराहनीय  है। पहली बार किसी ने पटरी दुकानदारों जैसे सब्जी, फल, चाय, आदि बेचने वालों की सुधि ली है।

कोरोना के अभूतपूर्व संकट के दौरान केन्द्रीय कैबिनेट ने ऐतिहासिक फैसले लिए हैं। प्रधानमंत्री जी ने दो हजार बाइस तक किसानों की आय दोगुना करने का न केवल वायदा किया, बल्कि इसके लिए अनेक प्रभावी कदम भी उठाए हैं। हर खेत को पानी, पर ड्राप मोर क्रॉप, प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि और फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में लगातार बढ़ोत्तरी इसका प्रमाण है। नरेन्द्र मोदी के लिए किसानों के साथ समाज के सबसे वंचित वर्ग के जीवन में बदलाव लाना प्राथमिकता रही है। अब तक के उनके विभिन्न निर्णयों के केन्द्र में समाज का यही वर्ग रहा है। एक बार फिर केन्द्रीय कैबिनेट ने इसी वर्ग के हितों का ध्यान रखा है। एमएसएमई सेक्टर को संजीवनी मिली है। न्यूनतम पूंजी, जोखिम और कम इंफ्रास्ट्रक्चर में स्थानीय स्तर पर सर्वाधिक रोजगार देने की सम्भावना वाले सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम  को दिया गया पैकेज इस क्षेत्र के लिए वरदान सिद्ध होगा। इस क्षेत्र की सर्वाधिक इकाइयां उत्तर प्रदेश में हैं। बेहतर गुणवत्ता के साथ इनका उत्पादन बढ़ाने के लिए सर्वाधिक हुनरमंद भी उत्तर प्रदेश में ही हैं। लिहाजा इस सेक्टर को मिले पैकेज का सबसे अधिक लाभ भी यहां की नब्बे लाख से अधिक इकाइयों को मिलेगा।

डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

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