अन्तर्राष्ट्रीय वृद्ध दिवस एक अक्टूबर को मनाया जाएगा। इस उपलक्ष्य में इंस्टीट्यूट ऑफ प्रोफेशनल स्टडीज की ओर से पहली बार अंतरराष्ट्रीय सीनियर सिटीजन अभियान लाँच किया जा रहा है। यह अपनी तरह का पहला वैश्विक अभियान होगा जो वृद्ध जनों के माध्यम से देश-विदेश के लोगों को सकारात्मक ऊर्जा से लबरेज करेगा और बेहतर भविष्य के लिए संगठित हो कार्य करेगा।
सीनियर सिटीजन्स पर शोध परक किताब लिखने वाले मयंक रंजन ने बताया कि मौजूदा कोरोना जैसी महामारी पहले भी विश्व में फैल चुकी है। सकारात्मक सोच और संगठित प्रयासों से हर बार विश्व ने न केवल संकटों पर विजय हासिल की है बल्कि नए अवसर भी सृजित किये हैं। उन्होंने बताया कि महात्मा गांधी की पुत्र वधू गुलाब और पोते शांति की मृत्यु भी स्पैनिश फ्लू जैसी महामारी से हुई थी। आखिरकार भारत में मार्च 1920 तक इस पर नियंत्रण पाना संभव हो सका। दुनियाभर में दिसंबर 1920 में इसका खात्मा हुआ। दुनिया में स्पैनिश फ्लू की शुरुआत जनवरी 1918 में हुई थी, लेकिन भारत में यह बीमारी 29 मई 1918 को तब आई, जब पहले विश्व युद्ध से लौट रहे भारतीय सैनिकों का जहाज मुंबई बंदरगाह पर लगा था। इसलिए दो साल का धैर्य, सकारात्मकता और संगठित प्रयास जरूरी है।
इसे संयोग ही कहा जाएगा कि हर सौ साल के अंतराल पर विश्व में महामारियां फैली हैं। साल 1720 में पूरी दुनिया में प्लेग फैला था। प्लेग की वजह से दो साल में 1 लाख रोगियों की मौत हुई थी। 100 साल बाद 1820 में एशियाई देशों में कॉलेरा ने जापान, फारस की खाड़ी के देश, भारत, बैंकॉक, मनीला, जावा, ओमान, चीन, मॉरिशस, सीरिया आदि देशों में लाखों लोगों की जान ली थी। इसके 100 साल बाद 1920 में स्पैनिश फ्लू फैला। इसकी शुरुआत 1918 से हुई पर सबसे ज्यादा असर 1920 में देखने को मिला था। इस फ्लू की वजह से पूरी दुनिया में 1.70 करोड़ से अधिक रोगियों की मृत्यु हुई थी।
मयंक रंजन ने बताया कि बेहतर भविष्य के लिए वृद्ध जनों के इस अंतरराष्ट्रीय अभियान के पहले चरण में देश-विदेश के उन सकरात्मक सीनियर सिटीजन्स के वीडियो आमंत्रित किये जा रहे हैं जो किसी भी कला में माहिर है। यह वीडियो मयंक रंजन के वॉटसऐप नम्बर 94157-85170 पर 20 सितम्बर तक भेजने होंगे। इस अभियान से प्रवासी सीनियर सिटीजन्स को उनके वतन हिन्दुस्तान से सीधे जोड़ा जाएगा। इस अभियान में 60 से अधिक किसी भी आयु के सीनियर सिटीजन भाग ले सकेंगे। प्रतिभागी हिंदी अंग्रेजी आदि भाषाओं में अपनी प्रस्तुतियां दे सकेंगे। अंतिम चरण में तीन पीढ़ियों को इस वैश्विक अभियान से जोड़ा जाएगा।