आजादी के बाद से देश में संचार ने नई क्रांति ला दी है, वहीं देश के कई गांवों ऐसे है जहां अभी तक फोन की घंटी तक नहीं बजी है. पूरे देश में जहां 5जी नेटवर्क (5G network) लांच की बात हो रही है वहीं पहाड़ी राज्य उत्तराखंड के बागेश्वर जिला स्थित गरुड़ ब्लॉक का सुराग आज भी नेटवर्क (Network) विहीन है. यह गांव ब्लॉक मुख्यालय से 30 किलोमीटर की दूरी पर बसा है. यह एक ऐसा गांव है जहां पर आज भी नेटवर्क का नामोनिशान नही है. ऐसे में इंटरनेट की कोई सुविधा उपलब्ध नहीं हो पाती है.
इस वजह से गांव के स्थानीय निवासी बहुत परेशान हैं. इसी मुद्दे पर गांव की किशोरी कुमारी ममता का कहना है कि भारत डिजिटल तो हो गया है, लोग इंटरनेट का लाभ उठाकर नित्य नई चीज़ें सीख रहे हैं और विकास की राह पर अग्रसर हैं, लेकिन हम सुराग की किशोरियां आज भी इसके लाभ से वंचित हैं क्योंकि हमारे गांव में नेटवर्क ही नहीं आते हैं.
ममता बताती है कि हमें अपनों से बात करने के लिए गांव से कोसों दूर पहाड़ियों के ऊपर जाना पड़ता है ताकि नेटवर्क पकड़ सके और हम अपनों का हाल जान सकें. लेकिन वहां पहुंचना बहुत दुष्कर होता है क्योंकि पहाड़ तक जाने के रास्ते बहुत खतरनाक हैं. नेटवर्क न होने की वजह से हम अपनी पढ़ाई भी नहीं कर पाते हैं. हम विषय से संबंधित किसी भी चीज को गूगल पर सर्च करना चाहते हैं तो वह भी नहीं कर पाते हैं जिसकी वजह से हमारी बहुत से विषय की जानकारी हम से छूट जाती है.
नेटवर्क की समस्या झेल रही एक अन्य किशोरी नेहा का कहना है कि हमारे गांव में नेटवर्क सबसे बड़ी समस्या है. कई बार तो हफ़्तों तक सिम बंद हो जाते हैं और नेटवर्क ही नहीं आता है. हमें गांव से दूर जाकर जहां थोड़ा बहुत नेटवर्क आता है वहां पर बात करनी पड़ती है, जिसकी वजह से हमें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है.
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एक अन्य किशोरी का कहना है कि जंगल का रास्ता तय करके हमें नेटवर्क खोजने के लिए जाना पड़ता है. ऊपर से लोगों की गलत निगाहों का भी हमें शिकार होना पड़ता है. अगर एक लड़की नेटवर्क के लिए ऊपर पहाड़ी पर जाती है तो यहां लोग उसके बारे में तरह तरह की बातें करते हैं, उसके चरित्र पर प्रश्न चिन्ह लगाने लगते हैं. जबकि हमारी पढ़ाई के विषय के बारे में हमें जानना होता है तो हम इंटरनेट के जरिए ही तो जान सकते हैं. जिसके लिए हमें नेटवर्क एरिया में जाना ही पड़ेगा.
अगर हमारे गांव में भी नेटवर्क आता तो हम अपने घर पर बैठकर अपनी जरूरत को पूरा करते. हमें इधर-उधर भटकने की जरूरत ही नहीं पड़ती. नेटवर्क न होने की वजह से सूचना के अभाव से परेशान गीता का कहना है कि यहां नेटवर्क की सुविधा न होने की वजह से हमें कोई भी सूचना समय पर नहीं मिल पाती है. अगर हमें कही कॉलेज का फार्म भरना पड़े या नौकरी के लिए फार्म भरना हो तो हमें पता ही नहीं चल पाता है कि फॉर्म कब निकले हैं और इसका आखिरी तारीख कब है? जिस वजह से हमारे बहुत बार फार्म छूट जाते हैं. गीता कहती है कि देश बदल रहा है और पूरी तरह से डिजिटल साक्षर होने की दिशा में है, लेकिन हमारे लिए यह केवल एक शब्द बनकर रह गया है.
इसी मुद्दे पर गांव की एक महिला सरस्वती देवी का कहना है कि नेटवर्क नहीं होने की वजह से गांव विकास की दौर में पीछे हो गया है. इसकी कमी से हमें बहुत परेशानियों का सामना है. अगर हमारे घर में रात में कोई बीमार हो जाए तो हम पड़ोसी को भी फोन करके नहीं बुला पाते हैं क्योंकि नेटवर्क ही नहीं होता है. हम घने जंगलों के बीच में रहते हैं जहां पर बाहर निकलने पर जंगली जानवरों का भय रहता है. कब कोई जानवर आकर हमला कर दे इसका हमें डर सताता है.
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जिस वजह से हम रात में घर से बाहर नहीं निकल पाते है. गांव की एक अन्य महिला जानकी का कहना है कि हम गरीब परिवार से हैं, मेरा पति दो वक्त की रोटी कमाने के लिए गांव से बाहर जाता है. जब वह रात में देरी से घर आते हैं तो हमें बहुत टेंशन रहती है कि कब तक घर पहुंचेंगे? ऊपर से उन्हें घने जंगलों के रास्ते से आना पड़ता है कब क्या घटना घट जाए पता नहीं चलेगा? अगर फोन में नेटवर्क होगा तो वह मुझे फोन कर अपना हाल बता सकते कि वह किसी मुसीबत में तो नहीं हैं.
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इस संबंध में गांव की ग्राम प्रधान कुमारी चंपा का कहना है कि हमारे गांव में सिर्फ बीएसएनल और एक निजी कंपनी का नेटवर्क आता है लेकिन वह भी हर जगह नेटवर्क नहीं आते हैं. कहीं-कहीं पर ही इसकी सुविधा उपलब्ध होती हैं. नेटवर्क ना होने की वजह से गांव की किशोरियों का जीवन भी प्रभावित हुआ है. वह समय पर अपनी पढाई के विषय के बारे में जान नहीं पाती हैं. कोरोना काल में तो नेटवर्क नहीं होने के कारण गांव के लगभग सभी बच्चों की शिक्षा प्रभावित हुई थी क्योंकि वह ऑनलाइन क्लास से जुड़ नहीं पाते थे. हम सभी का यही प्रयास है कि हम अपने गांव में एक टावर ला सकें ताकि सभी को आसानी से नेटवर्क की सुविधा प्राप्त हो सके. (चरखा फीचर)