बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री एवं पूर्ण केन्द्रीय मंत्री स्व•डा•जगन्नाथ मिश्र राज्य के लिए एक संपूर्ण विचार थे। या यूं कहें सभी के लिए मार्गदर्शक तभी तो सभी राजनीतिकज्ञ घोर विरोधी भी उनसे सलाह ले लेते थे।उन्हें सारी विषयों समस्याओ पर मजबूत पकड़ थी। वे स्वंय हमेशा लिखते पढ़ते और पत्राचार करते जो उन्हे वेहद पसंद था। उनके पास आदर्श विचार हुआ करते थे।
उनका आज हम सब के बीच न होना एक रिक्तयां पैदा कर रहा है।वह राजनीतिक गलियारे में भी वैसे ही थे जैसे एक आम लोगो में, वे शख्सियत ही ऐसे थे जो सभी के दिलों में बसते थे।वे जीवन पर्यन्त सभी को राह दिखाते रहे।बिहार के दिग्गज नेताओं ने कई बार इसे सार्वजनिक मंचो से स्वीकार भी किया है।
वे स्वभाव के धनी और मिलनसार व्यक्ति थे।वे जीवन पर्यन्त जन-कल्याण के लिए समर्पित रहे।यही कारण है कि उनके घोर विरोधी भी उनका नाम लेते थे और इज्जत करते थे। इन्हें भारत के सर्वश्रेष्ठ बुद्धिजीवी में से एक माना जाता रहा। अपने सभी कार्य-कर्ताओं को उम्र के अंतिम पड़ाव तक बतौर नाम से जानते और पहचानते रहे जो इनकी याददाश्त लेवल को दर्शाता है। इनके बारे में लोग यही कहते है जिनसे एक बार मिल लेते थे उसे वे वर्षो बाद भी नाम के साथ पहचान लेते थे।जो उनकी शख्सियत को बढ़ाता चला गया।
इन्होंने कुल 5 बार लगातार ( 1972, 1977, 1980, 1985, 1990 ) मधुबनी के झंझारपुर विधानसभा से चुनाव जीता और तीन बार बिहार के मुख्यमंत्री बने 75 -77, 80-83, 89-90, तक।
उन्होंने बिहार के लिए कई महत्वपूर्ण कार्य किए विशेषकर शिक्षा के क्षेत्र में उनके अमूल्य योगदानो को चाहकर भी नही भुलाया जा सकता।संस्कृत स्कूल मदरसा,स्कूलो और कालेजो का सरकारी करण उनके मुख्यमंत्रीत्व काल में बड़े पैमाने पर हुए जो आज भी शिक्षा के मूल आधार है।शिक्षको की नियुक्ति और वेतनमान का ग्रेड भी उन्ही के द्वारा दी गयी शिक्षकों को भी कलेक्टर के दर्जे का तनख्वाह तक पहुंचाया।जिसके कारण उस समय की शिक्षा आज की शिक्षा से बेहतर मानी जाती है।उर्दू को द्वितीय राजभाषा में शामिल करना ।उर्दू शिक्षकों टायपिस्टो की नियुक्ति करना उनकी दूरगामी सोच और समरसता पूर्ण व्यवहार को दर्शाता है।
वे जाति की नही वरन पूरे समाज के लिए कार्य करते थे। ऐसे महानविभूषित का इस कोरोना काल में न होना एक शून्य पैदा कर रहा है।सम्पूर्ण बिहार को वे अपने लेखो प्रलेखो चिठ्ठीयो और विज्ञप्तियों के जरिये सदा संदेश देते रहे।उनके विचारो से राज्य के सभी दल लाभान्वित होते रहे थे।सभी के प्रति उनका स्नेह मन भावन था और सभी उनको अभिवाहक की तरह मानते थे।कभी भी इन्होंने अपने सिद्धांतों से समझौता नही किया।
उन्होंने अपने जीवन काल में बहुत सी किताबें भी लिखी जो बिहार की विभिन्न समस्याएँ, अर्थशास्त्र की कई शोध पत्र और बिहार की उत्थान से जुड़ी हुई है।उन्हें लिखने और पढ़ने में बड़ी रूचि थी।जीवन के अंतिमकाल में भी वे प्रेस विज्ञप्ति देते रहे।ऐसे महान विचारक लेखक मार्गदर्शक का आज न होना बिहार की राजनीति जगत के लिए शून्य पैदा कर रहा है।