चार दिनों तक चलने वाली Chhath छठ पूजा इस बार 11 नवंबर 2018 से प्रारंभ होकर 14 नवंबर 2018 तक चलेगी। चार दिनों तक चलने वाले इस महापर्व का समापन उदीयमान भगवान सूर्यदेव को अर्घ्य देने के साथ होता है। इस क्रम में 11 नवंबर को नहाने-खाने, 12 नवंबर को खरना, 13 नवंबर को संध्या अर्ध्य और 14 नवंबर को सूर्योदय/ऊषा अर्ध्य आैर पारण होगा। छठ पूजा की परंपरा और उसके महत्व का प्रतिपादन करने वाली अनेक पौराणिक और लोक कथाएं प्रचलित हैं।
सूर्यपुत्र कर्ण ने किया था पहला Chhath
पौराणिक कथाओं के अनुसार पहला छठ सूर्यपुत्र कर्ण ने किया था। कहीं-कहीं माता सीता तथा द्रौपदी के भी छठ करने की बात कही गयी है। लोक परंपरा के मुताबिक सूर्य देव और छठी मईया का संबंध भाई-बहन का है। इसलिए छठ पर्व के अवसर पर सूर्य की आराधना की जाती है।
एक और पौराणिक कथा –
कहा जाता है कि नि:संतान राजा प्रियवंद से महर्षि कश्यप ने पुत्र की प्राप्ति के लिए यज्ञ कराया तथा राजा की पत्नी मालिनी को आहुति के लिए बनाई गई खीर दी। इससे उन्हें पुत्र की प्राप्ति तो हुई, लेकिन वह मरा हुआ पैदा हुआ। राजा प्रियंवद पुत्र को लेकर श्मशान चले गए और उसके वियोग में प्राण त्यागने लगे। कहते हैं कि श्मशान में भगवान की मानस पुत्री देवसेना ने प्रकट होकर राजा से कहा कि वे सृष्टि की मूल प्रवृति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण षष्ठी कही जाती हैं। उन्होंने राजा को उनकी पूजा करने और दूसरों को इसके लिए प्रेरित करने को कहा।
उन्होंने ऐसा करने वाले को मनोवांछित फल की प्राप्ति का वरदान दिया। इसके बाद राजा ने पुत्र की कामना से देवी षष्ठी का व्रत किया। उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई। कहते हैं कि राजा ने ये पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को की थी। तभी से छठ पूजा इसी दिन की जाती है।