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ईमानदारी और सादगी के प्रतीक थे लाल बहादुर शास्त्री

आज महात्मा गांधी के साथ-साथ देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी का जन्मदिन भी है, शास्त्री जी का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को शारदा प्रसाद और रामदुलारी देवी के घर उत्तर प्रदेश के मुगलसराय शहर के रामनगर (वर्तमान का पंडित दीनदयाल नगर) में हुआ था। नेहरू जी के निधन के बाद शास्त्री जी देश के दूसरे प्रधानमंत्री बने। शास्त्री जी के ईमानदारी और सादगी-पूर्ण जीवन के अनेक क़िस्से हैं।


जब शास्त्री जी देश के प्रधानमंत्री थे, एक बार उनके बेटे सुनील शास्त्री ने रात कहीं जाने के लिए सरकारी गाड़ी का प्रयोग किया, और जब वापस आए तो लाल बहादुर शास्त्री जी ने पूछ कहा गए थे, सरकारी गाड़ी लेकर। इस पर सुनील जी कुछ कह पाते की इससे पहले लाल बहादुर शास्त्री जी ने कहा कि सरकारी गाड़ी देश के प्रधानमंत्री को मिली है न की उसके बेटे को, आगे से कही जाना हो तो घर की गाड़ी का प्रयोग किया करो, शास्त्री जी यही नहीं रुके उन्होंने अपने ड्राइवर से पता करवाया की गाड़ी कितने किलोमीटर चली है और उसका पैसा सरकारी राज कोष में जमा करवाया।  जबकि आजकल के जन प्रतिनिधियों के परिजनों के साथ उनके करीबी लोग भी उन्ही की सरकारी गाड़ी में घूमते हैं।

लाला लाजपतराय ने आजादी की लड़ाई लड़ रहे गरीब देशभक्तों के लिए सर्वेंट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी बनायीं थी, जो गरीब देशभक्तों को पचास रुपये की आर्थिक मदद प्रदान करती थी। एक बार जेल से उन्होंने (शास्त्री जी) अपनी पत्नी ललिता जी को पत्र लिखकर पूछा कि क्या सोसाइटी की तरफ से तुम्हें 50 रुपये आर्थिक मदद मिलती है। उनके पते के जवाब में ललिता जी ने कहा हाँ, जिसमे से 40 रुपये में घर का खर्च चल जाता है, ये पता चलते ही शास्त्री जी बिना किसी देर किये सर्वेंट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी को पत्र लिखा कि मेरे घर का खर्च 40 रुपये में हो जाता हैं, कृपया मुझे दी जानी वाली सहयोग राशि 50 रुपये से घटा कर 40 रुपये कर दी जाए ताकि ज्यादा से ज्यादा दूसरे लोगो को आर्थिक सहयोग मिल सकें। इसके विपरीत आज यदि जन प्रतिनिधियों की सैलरी बढ़ोत्तरी की बात हो तो क्या सत्ता पक्ष, क्या विपक्ष दोनों एक मत होकर इस मांग पर अपना समर्थन दे देते हैं। वो तनिक नहीं सोचते जहां इस सरकारी पैसे से वो और उनका परिवार मौज से जी रहे हैं वहीं देश का किसान, मज़दूर इत्यादि अभाव की जिंदगी जी रहे हैं।

शास्त्री जी जब प्रधानमंत्री थे और उन्हें मीटिंग के लिए कही जाना था, वो वहां जाने के लिए जो कुर्ता पहन रहे थे तो थोड़ा फटा था। जिसपर उनके परिवार के लोगों ने कहा, आप नया कपड़ा क्यों नहीं ले लेते। इस पर शास्त्री जी ने कहा, मेरे देश के अब भी लाखों लोगो के तन पर कपड़े नहीं है। मेरा कुर्ता फटा हुआ है तो क्या हुआ मैं इसके ऊपर कोट पहन लूंगा।

कथनी और करनी में समानता रखते थे लाल बहादुर शास्त्री, बात सन 1965 की है जब भारत और पाकिस्तान का युद्ध चल रहा था और भारतीय सेना लाहौर के हवाई अड्डे पर हमला करने सीमा के भीतर पहुंच गयी थी। घबराकर अमेरिका ने अपने नागरिकों को लाहौर से निकालने के लिए कुछ समय के लिए युद्धविराम की अपील की। उस समय हम अमेरिका की पीएल-480 स्कीम के तहत हासिल लाल गेहूं खाने को बाध्य थे हम। अमेरिका के राष्ट्रपति ने शास्त्री जी को कहा कि अगर युद्ध नहीं रुका तो गेहूं का निर्यात बंद कर दिया जाएगा। फिर, शास्त्री जी ने कहा- बंद कर दीजिए, और फिर अक्टूबर 1965 में दशहरे के दिन दिल्ली के रामलीला मैदान में शास्त्री जी ने देश की जनता को संबोधित किया। उन्होंने देशवासियों से एक दिन का उपवास रखने की अपील की और साथ में खुद भी एक दिन उपवास करने का प्रण लिया और देश की सीमा के रक्षक जवान और देश के अंदर अन्नदाता के लिए “जय जवान जय किसान” का नारा दिया।

10 जनवरी 1966 को ताशकंद में भारत के प्रधानमंत्री शास्त्री जी और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान के बीच बातचीत करने का समय निर्धारित था। लाल बहादुर शास्त्री और अयूब खान तय किये गये निर्धारित समय पर मिले। बातचीत काफी लंबी चली और दोनों देशों के बीच शांति समझौता भी हो गया। ऐसे में दोनों मुल्कों के शीर्ष नेताओं और प्रतिनिधि मंडल में शामिल अधिकारियों का खुश होना उचित था। लेकिन उस दिन की रात शास्त्री जी के लिए मौत बनकर आई।

10-11 जनवरी की रात में प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की संदिग्ध परिस्थितों में मौत हो गई। ताशकंद समझौते के कुछ घंटों बाद ही भारत के लिए सब कुछ बदल गया। विदेशी धरती पर संदिग्ध परिस्थितियों में भारतीय प्रधानमंत्री की मौत से सन्नाटा छा गया। शास्त्री जी की मौत के बाद तमाम सवाल खड़े हुए, उनकी मौत के पीछे साज़िश की बात भी कही जाती है। क्योंकि, शास्त्री जी की मौत के दो अहम गवाह उनके निजी चिकित्सक आर एन चुग और घरेलू सहायक राम नाथ की सड़क दुर्घटनाओं में संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हुई तो यह रहस्य और गहरा हो गया। देश के नागरिकों को चाहिए कि वो सरकार से शास्त्री जी के मौत की निष्पक्ष जांच की मांग करें यही शास्त्री जी के प्रति देश वासियों की सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

रिपोर्ट-अंकुर सिंह

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