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साहित्य व समाजसेवा का समन्वय

साहित्य व समाज सेवा को प्रायः अलग क्षेत्र माना जाता है। लेकिन इन दोनों के बीच समन्वय बनाकर चलने वालों की भी कमी नहीं है। स्वतन्त्रा आंदोलन के अनेक सेनानी उच्च कोटि के लेखक भी थे। वरिष्ठ साहित्यकार सम्पूर्णानन्द उत्तर के मुख्यमंत्री रहे। इस समय उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित भी श्रेष्ठ विचारक लेखक है। उनकी करीब तीन दर्जन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। उनका लेखन कार्य निरन्तर जारी है।

अनेक पत्र पत्रिकाओं के वह नियमित स्तंभ लेखक है। इसी सूची में डॉ कन्हैया सिंह भी शामिल है। वह समाज सेवा में आजीवन सक्रिय रहे। इसके साथ ही उनकी चालीस पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। पच्चासी वर्ष की आयु में भी उनका लेखन कार्य चल रहा है। कोरोना कालखंड में उनकी तीन पुस्तकें प्रकाशित हुई। वह बाल्यकाल में ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े थे। इस रूप में उन्होंने समाजसेवा का व्रत लिया। आपात काल में वह मीसा के अंतर्गत जेल में रहे।

हृदय नारायण दीक्षित और डॉ कन्हैया सिंह ने साहित्य व समाज सेवा का समन्वय किया है,तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सन्यास व समाजसेवा के साधक है। यह सांयोग था कि मुख्यमंत्री आवास में योगी आदित्यनाथ और हृदय नारायण दीक्षित ने डॉ कन्हैया सिंह की तीन पुस्तको ‘काली मिट्टी पर पारे की रेखा’, ‘गोरखनाथ:जीवन और दर्शन’आलोचना के प्रत्यय: इतिहास और विमर्श’,‘संस्मरणों का आलोक’ पुस्तकों का विमोचन किया गया।

इसके साथ ही उनका अभिनन्दन भी किया गया। योगी आदित्यनाथ ने कहा कि डॉ सिंह का व्यक्तित्व बहुआयामी है। वे साहित्यकार होने के साथ साथ एक समाजसेवी भी हैं। वह विधि प्रवक्ता रहे, उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष रहे, आजमगढ़ नगर पालिका के अध्यक्ष भी रहे। इस सक्रियता के बाद भी उनकी साहित्य साधना अनवरत चलती रही। अनेक साहित्यिक, सामाजिक एवं राष्ट्रीय चिन्तन के मंचों पर उनकी सशक्त उपस्थिति रही है। हृदय नारायण दीक्षित ने साहित्य की कई धाराओं के उल्लेख किया। कहा कि कन्हैया सिंह के लेखन में विविधता है।

यह उनकी लेखन व विचार क्षमता को प्रमाणित करता है। उन्होंने साहित्य व समाज दोनों के सन्दर्भों में लिखा है। किसी भी देश की संस्कृति दर्शन व मेधा की माप वहां के बौद्धिक वर्ग,जिनमें लेखक,साहित्यकार से होती है। भारत में साहित्य सृजन की पुरानी परम्परा है। डॉ कन्हैया सिंह इसी परम्परा का प्रतिनिधित्व करते है। इस अवसर पर उप्र हिन्दी संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष डॉ सदानन्द प्रसाद गुप्त पवन पुत्र बादल हिन्दी संस्थान के निदेशक श्रीकान्त मिश्र साहित्य अनेक योग उपस्थित थे।

डॉ दिलीप अग्निहोत्री

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