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ऐतिहासिक गुरूद्वारा श्री गुरु नानक देव जी नाका हिण्डोला में मनाया गया लोहड़ी का त्यौहार

लखनऊ। ऐतिहासिक गुरूद्वारा श्री गुरु नानक देव जी नाका हिण्डोला, लखनऊ में आज 13 जनवरी को लोहड़ी के त्यौहार का विशेष आयोजन किया गया। इस अवसर पर लखनऊ गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी के अध्यक्ष राजेन्द्र सिंह बग्गा ने उपस्थित संगतों एवं समस्त नगरवासियों को लोहड़ी के त्यौहार की बधाई देते हुए कहा कि लोहड़ी एक सामाजिक पर्व है सिक्खों का धार्मिक त्यौहार नहीं है। इसे पंजाबी समाज के लोग बेटे की शादी की पहली लोहड़ी या बच्चे के जन्म की पहली लोहड़ी बड़ी खुशी एवं उल्लास के साथ गुरु महाराज का आर्शीवाद लेकर मनाते हैं।

लोहड़ी को पहले तिलोड़ी कहा जाता था। यह शब्द तिल और रोड़ी (गुड़ की रोड़ी) के शब्दों से बना है जो समय के साथ बदल कर लोहड़ी के नाम से प्रसिद्ध हो गया। इस पर्व पर लकड़ियों को इकट्ठा कर अग्नि प्रज्वलित की जाती है और अग्नि के चारो तरफ चक्कर लगाकर अपने जीवन को खुशियों और सुख शान्ति से व्यतीत होने की कामना करते हैं और उसमे रेवड़ी, मूंगफली खील, मक्की के दानों की आहूति देते हैं और नाचते गाते हैं जिस घर में नई शादी हुई होती है या बच्चा पैदा होता है वह इस त्यौहार को विशेष तौर पर मनाते हैं।

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स्टेज सेक्रेट्ररी सतपाल सिंह मीत ने बताया कि लोहड़ी की रात बहुत ठंडी और लम्बी होती है। लोहड़ी के बाद रात छोटी और दिन बड़ा होने लगता है। ऐतिहासिक तथ्य है कि बादशाह अकबर के समय दुल्ला भट्ठी नाम का बागी नायक था पर वह दिल का बड़ा नेक था। वह अमीरों को लूटकर गरीबों मे बांट देता था। वह अमीरों द्वारा जबरदस्ती से गुलाम बनाई गई लड़कियों को उनसे छुड़वा कर उन लड़कियों की शादी करवा देता था और दहेज भी अपने पास से देता था वह दुल्ला भट्ठी वाला के नाम से प्रसिद्ध हो गया।

अकबर के शासनकाल में बागी नायक को मृत्यु दंड देकर सरकार द्वारा शरीर मे भूसा भर लाहौर के चौराहे पर लटकवा दिया गया था। दुल्ला भट्टी ने दो अगवा ब्राह्मण कन्यायों, “सुन्दरी मुन्दरी” को मुगल आक्रांताओं से मुक्त करा कर मकर संक्रान्ति की पूर्व संध्या पर जंगल मे ब्राह्मण युवकों के साथ अग्नि के फेरे लगवा कर शादी करवा दी थी। इसी घटना की याद में मकर संक्रान्ति के एक दिन पूर्व यह पर्व मनाया जाता है। तभी से लोहड़ी की रात लोग आग जला कर और रंग-बिरंगे कपड़े पहन कर नाचते गाते हैं और उसका गुणगान करते हैं पंजाब के प्रसिद्ध लोक गीतः- सुंदर मुंदरिए-हो, तेरा कौन विचारा-हो, दुल्ला भट्टी वाला-हो गाकर इस पर्व को मनाते हैं।

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कार्यक्रम की समाप्ति के उपरान्त मक्के के दानेे ,रेवड़ी, चिड़वड़े, तिल के लडडू का प्रसाद श्रद्धालुओं में वितरित किया गया। संस्था के महामंत्री हरमिन्दर सिंह टीटू ने बताया कि 14 जनवरी 2023 को सायं 6.30 बजे से रात्रि 9.15 बजे तक माघ माह संक्रान्ति पर्व मनाया जायेगा। दीवान की समाप्ति के उपरान्त गुरु का लंगर वितरित किया जायेगा।

रिपोर्ट-दया शंकर चौधरी

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