लखनऊ विश्वविद्यालय किंग जार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) के एनाटामी विभाग में अस्थियों की पहचान में अपना सहयोग देगा। इसके लिए केजीएमयू के क्वालिटी कंट्रोल क्लिनिकल आडिट एक्रीडिटेशन एंड फ्यूचर प्लानिंग की वाइस डीन प्रोफेसर अनिता रानी और एनाटामी विभाग की विभागाध्यक्ष ज्योति चोपड़ा ने लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर आलोक कुमार राय से मुलाकात कर सहयोग की अपेक्षा की है। कुलपति के आश्वासन देने के बाद जूलाजी और एंथ्रोपोलाजी विभाग जल्द ही अपनी योजना बनाकर प्रस्तुत करेंगे, जिस पर कुलपति के अनुमोदन के बाद निर्णय लिया जाएगा। दोनो विश्वविद्यालयों के मध्य इस विषय पर MoU भी हो सकता है।
जंतु विज्ञान विभाग के हेड प्रोफेसर एम सेराजुद्दीन ने बताया कि केजीएमयू के एनाटामी विभाग में काफी पुरानी अस्थियां (कंकाल) रखे हैं। जिसकी पहचान करने में एनाटमी विभाग ने मदद की मांगी है। वह बताते हैं कि एडल्ट मनुष्य के अंदर 206 और बच्चों में 270 हड्डियां होती हैं। इनमें दो तरह की हड्डी एक्जियल और एपेंडीकुलर पाई जाती हैं। एक्जियल में चार प्रकार की हड्डी जैसे स्कल (खोपड़ी में पाई जाने वाली), वर्टिब्री (गर्दन से शुरू होकर कमर तक), तीसरी हड्डी रिब और चौथी स्टर्नब होती है। 27 हड्डी हाथ में और पैर के पंजे के पास 26 हड्डी होती हैं। जंतुओं में अजगर में सबसे ज्यादा 1800 हड्डी पाई जाती हैं। उनमें रीढ़ की हड्डी में 600 होती हैं।
प्रोफेसर एम सेराजद्दीन के मुताबिक एनाटामी विभाग के पास हड्डियों का काफी पुराना संग्रह है। उन्होंने 78 हड्डियों के नमूने की फोटो भी दी है। जूलॉजी और एंथ्रोपोलाजी विभाग मिलकर इन नमूनें की पहचान करेंगे। यह भी बताएंगे कि यह हड्डियां किस जानवर की हैं और शरीर के किस हिस्से की हैं। इसके लिए वे लोग केजीएमयू के एनाटामी विभाग में भी जाएंगे।
लखनऊ विश्वविद्यालय को अभी हाल में ही ए प्लस प्लस (A++) की रैंकिंग प्राप्त प्राप्त हुई है और कुलपति प्रोफेसर आलोक कुमार राय पूरी तरीके से तत्पर हैं कि उत्तर प्रदेश के विश्वविद्यालय भी इस दौड़ में आगे आएं। इसी मंशा से उन्होंने एंथ्रोपोलॉजी एवं जूलॉजी विभाग को त्वरित कार्यवाही करने हेतु पत्र को अग्रसारित किया है। एंथ्रोपोलॉजी विभाग एवं जूलॉजी विभाग अपने शोध कार्यों के लिए जाने जाते हैं। एंथ्रोपोलॉजी विभागाध्यक्ष डॉक्टर केया पांडे का कहना है कि कुलपति महोदय के निर्देश के अनुपालन में यह कार्य शीघ्र ही संपन्न किया जाएगा जिससे की भविष्य में शोध की संभावनाएं बढ़ सके।