लखनऊ। लखनऊ विश्वविद्यालय (Lucknow University) के समाजशास्त्र विभाग (Department of Sociology) के अंतर्गत 27 मार्च को डॉ राम मनोहर लोहिया शोधपीठ (Dr Ram Manohar Lohia Research Centre) द्वारा आयोजित ‘समकालीन भारत में राष्ट्र निर्माण की चुनौतियाँ’ विषय पर तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी (National Seminar) का समापन सत्र डीपी मुखर्जी सभागार में किया गया। सगोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में प्रोफेसर देबल के सिंघराय (Professor Debal K Singhrai) , प्रोफेसर श्वेता प्रसाद और लखनऊ विश्वविद्यालय की उपकुलपति प्रोफेसर मनुका खन्ना उपस्थित रहे। मंच का संचालन डॉक्टर सरोज ढल द्वारा किया गया।
लोहिया शोधपीठ के निदेशक प्रोफेसर डीआर साहू ने कार्यशाला में विभिन्न क्षेत्रों से आए अतिथियों व प्रवक्ताओं का स्वागत किया। प्रोफेसर
देबल के सिंघाराय, समकालीन अध्ययन केंद्र, प्रधानमंत्री संग्रहालय पुस्तकालय नई दिल्ली ने अपने समापन उद्बोधन में कृषि एवं गामीण क्षेत्र के विकास को राष्ट्र निर्माण के लिए आवश्यक बताते हुए कृषि एवं गामीण क्षेत्रों में उत्पन्न बाधाओं एवं चुनौतियों के बारे में बताया।
भारत मे कृषक और नगरीय संक्रमण अवस्था तथा भारत में राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में उपनिवेशकालीन संदर्भों का उल्लेख करते हुये मेटकाफ, हेनरी मेन एवं मार्क्स आदि के अध्ययनों के साथ साथ स्वतंत्रता के बाद भूमि सुधार, हरित क्रांति की महत्ता और वैश्वीकरण 1991 के बाद तथा 73वां संविधान संसोधन और 21वीं सदी में बढ़ता ग्रामीण. नगरीय प्रवसन और देश में बढ़ता विदेशी कर्ज आदि मुद्दों को राष्ट्र निर्माण में आने वाली चुनौतियों के रूप में बताया।
प्रो श्वेता प्रसाद, सचिव आईएसएस ने बताया कि कैसे हम डॉ लोहिया के विचारों की अवधारणा का प्रयोग करते हुए राष्ट्र निर्माण की चुनौतियों को हल कर सकते है। राष्ट्र निर्माण के लिए हमे अपने राष्ट्र की सबसे छोटी इकाई गाँव के विकास को महत्ता देनी होगी। उन्होंने राष्ट्र निर्माण के लिए डॉ लोहिया की सप्तक्रांति की अवधारणा को आज के समय में भी प्रासंगिक बताया।
प्रोफेसर मनुका खन्ना, उपकुलपति ने डॉ राम मनोहर लोहियाके राजनैतिक विचारों के बारें मे चर्चा करते हुए बताया कि आजादी के पूर्व राष्ट्र निर्माण जैसी कोई अवधारणा थी ही नहीं। लोहिया के ‘सप्तक्रांति’ के बारे में बताते हुए कहा कि समाज में असमानता किसी ना किसी प्रकार के संघर्ष को जन्म देती है साथ ही लैगिंग समानता के बारे में चर्चा करते हुए कहा कि हमें बेटियों का समाजीकरण उचित रूप से करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि राष्ट्र निर्माण एक भावनात्मक प्रक्रिया है। सभी भारतीयों में हम की भावना राष्ट्र निर्माण प्रक्रिया में सहायक सिद्ध हो सकती है
संगोष्ठी का सारांश लोहिया पीठ की शोध सहायक डॉक्टर शिप्रा पंवार द्वारा प्रस्तुत किया गया जिसमें उन्होंने ने बताया कि इस संगोष्ठी में विभिन्न राज्यों से लगभग 250 शोध छात्र छात्राओं ने प्रतिभाग किया एवं लगभग 50 चयनित शोध पत्रों को शोधार्थियों द्वारा प्रस्तुत किया गया। इस संगोष्ठी में भारत वर्ष के विभिन्न राज्यों के विभिन्न विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों से विभिन्न विषय विशेषग्यों, समाज वैज्ञानिकों, सामाजिक चिंतकों एवं समाजशास्त्रियों की उपस्थिति रही। डॉ सरोज कुमार ढल द्वारा धन्यावाद ज्ञापन करते हुए कार्यक्रम का समापन किया गया।