मध्यप्रदेश में कमल नाथ की जगह कमल निशान की सरकार का शपथ ग्रहण हुआ। शिवराज सिंह चौहान ने मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण की। पन्द्रह महीने पहले कमलनाथ ने बमुश्किल बहुमत का पाला छुआ था, तब संख्याबल उनके साथ था। लेकिन मत प्रतिशत भाजपा का अधिक था। लेकिन आंतरिक कलह कांग्रेस पर भारी पड़ा। उसके विधायकों ने ही बगावत कर दी थी। यह बगावत निराधार नहीं थी।
मुख्यमंत्री केे रूप में कमलनाथ आमजन के साथ ही अपने ही विधायकों को संतुष्ट नहीं कर सके थे। खासतौर पर पर्दे के पीछे दिग्विजय सिंह का हस्तक्षेप से सरकार अलोकप्रिय हो गई थी। यह कहना गलत है कि यहां जनादेश का पालन नहीं हुआ। सच्चाई यह कि कांग्रेस की सरकार जन आकांक्षा के अनुरूप कार्य नहीं कर रही थी। इसलिए उसके दो दर्जन विधायकों ने साथ छोड़ दिया। इन्होंने मध्यप्रदेश के लोगों की भावनाओ को समझा। कमलनाथ सरकार की कार्यशैली में बदलाव लाने का दबाब बनाया। लेकिन जब इनको लगा कि इस दबाब का कोई प्रभाव कमलनाथ,दिग्विजय सिंह और पार्टी हाईकमान पर नहीं पड़ रहा है,तब अंतिम विकल्प के रूप में इन्होंने सरकार से समर्थन वापस लेने का निर्णय किया था।
मध्य प्रदेश में कांग्रेस बेहिसाब वादों के साथ सत्ता में पहुंची थी। लेकिन पन्द्रह महीनों के बाद भी कमलनाथ सरकार इस दिशा में बढ़ती हुई दिखाई नहीं दी। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने इसी भावना को अभिव्यक्त किया। उन्होने अपनी पितामही राजमाता विजय राजे सिंधिया की राजनीतिक विरासत को संभालने का निर्णय लिया था। कांग्रेस की उपेक्षा और जन आकांक्षा को पूरा न करने से आहत होकर उन्होंने इस्तीफा दिया था। वह भाजपा में शामिल हुए।
सिंधिया ने कांग्रेस से अलग होने के कारण भी बताए थे। उनका कहना था कि कांग्रेस जमीनी सच्चाई के देखना व समझना नहीं चाहती। नए विचार और नेतृत्व को मान्यता नहीं देना चाहती। कांग्रेस सरकार ने वादे पूरे नहीं किए हैं। कांग्रेस में रहकर जनसेवा नहीं की जा सकती। सिंधिया के आरोप वास्तविकता को उजागर करने वाले है।
मध्य प्रदेश में कांग्रेस ने सरकार तो बना ली, लेकिन यह समझने का प्रयास नहीं किया कि मध्यप्रदेश के लोग चाहते क्या है। एक तरफ कमलनाथ के पुत्र का अनुचित हस्तक्षेप रहता था। दूसरी तरफ दिग्विजय सिंहअपने पुत्र को प्रदेश अध्यक्ष या मुख्यमंत्री बनाने के लिए जोड़ तोड़ कर रहे थे। ऐसे में इस सरकार की बिदाई तय थी।
रिपोर्ट-डॉ. दिलीप अग्निहोत्री