नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने ईसाई समुदाय के एक व्यक्ति की याचिका पर छत्तीसगढ़ सरकार को फटकार लगाई और उससे जवाब मांगा। व्यक्ति ने याचिका में कहा था कि उसे अपने पादरी पिता को छिंदवाड़ा गांव में दफनाने में मुश्किल हो रही है, क्योंकि गांव के लोग विरोध कर रहे हैं और पुलिस ने भी उसे कानूनी कार्रवाई की धमकी दी है।
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जस्टिस बी.वी.नागरत्ना और जस्टिस सत्येश चंद्र शर्मा की बेंच ने आश्चर्य जताया कि मृतक का शव सात जनवरी से जगदलपुर के जिला अस्पताल और मेडिकल कॉलेज के शवगृह में पड़ा हुआ है। जबकि पुलिस ने इस मामले में अब तक कोई कार्रवाई नहीं की हैं।
बेंच ने छत्तीसगढ़ सरकार को नोटिस जारी करते हुए कहा, ग्राम पंचायत की बात छोड़िए, हाईकोर्ट ने भी एक अजीब आदेश पारित किया है। राज्य सरकार क्या कर रही है? सुप्रीम कोर्ट ने मामले पर अगली सुनवाई 20 जनवरी को तय की।
शीर्ष कोर्ट रमेश बघेल की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उन्होंने छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने उनके पिता को गांव के ईसाई समुदाय के लिए तय कब्रिस्तान में दफनाने की अनुमति देने से मना कर दिया था। हाईकोर्ट ने गांव के सरपंच की ओर से जारी प्रमाणपत्र के आधार पर यह कहा था कि गांव में ईसाई लोगों के लिए दफनाने का अलग से स्थान नहीं है और इस वजह से यह कदम सार्वजनिक असंतोष और अशांति का कारण बन सकता है।
बघेल ने अपनी याचिका में कहा कि छिंदवाड़ा गांव में एक कब्रिस्तान है, जिसे ग्राम पंचायत ने दफनाने और शव जलाने के लिए तैय किया है। इस कब्रिस्तान में आदिवासी, हिंदू और ईसाई समुदाय के लिए अलग-अलग स्थानों का निर्धारण किया गया है। उनके अनुसार, जिस जगह उनके पिता के शव को दफनाया जाना है, वह जगह पहले भी उनके परिवार के सदस्यों के लिए इस्तेमाल की जाती रही है।
याचिकाकर्ता ने कहा कि उनके पिता की मृत्यु के बाद उनके परिवार ने शव को दफनाने की कोशिश की थी। लेकिन गांव के कुछ लोगों ने इसका विरोध किया और उन्हें धमकी दी कि अगर वे अपने पिता के शव को यहां दफनाएंगे तो गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। इसके बाद बघले के परिवार ने पुलिस को सूचना दी। लेकिन पुलिस ने भी उन्हें शव को दफनाने से रोका और कानूनी कार्रवाई की धमकी।