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यूरोपीय संघ प्रतिनिधिमंडल व बांग्लादेश जमात-ए-इस्लामी की बैठक, क्या हो रहा है यूरोपीय मूल्यों का हनन!

बांग्लादेश के चुनावी माहौल में एक बार फिर राजनीति का तवा गर्म है। ऐसे में इस गर्म तवे पर तमाम राजनीतिक दल नरम नरम रोटी सेक कर जनता को खिलाने की जद्दोजहद में लगे हैं। इस राजनीतिक माहौल में यूरोपीय संघ प्रतिनिधिमंडल और बांग्लादेश जमात-ए-इस्लामी की हाल ही में हुयी बैठक यूरोपीय मूल्यों पर तमाम सवाल खड़े कर रही है। आगामी बांग्लादेश चुनावों के संदर्भ में आयोजित यूरोपीय संघ प्रतिनिधिमंडल और बांग्लादेश जमात-ए-इस्लामी (जेईआई) के बीच हालिया बैठक आक्रोश का एक गंभीर कारण है।

भारत इनकी दोस्ती का करता है विरोध।

यूरोप जिसकी आधारशिला लोकतंत्र, न्याय और स्वतंत्रता के सिद्धांतों पर आधारित है, उसे अपंजीकृत राजनीतिक दल को संरक्षण देने के रूप में देखा जा रहा है। मौलिक अधिकारों का यूरोपीय संघ चार्टर हर व्यक्ति की गरिमा, उनकी स्वतंत्रता, लोकतंत्र, समानता और व्यक्तिगत डेटा की सुरक्षा के अधिकार को निर्धारित करता है। 1971 में बांग्लादेश के खूनी मुक्ति युद्ध के दौरान जेईआई ने क्रूर नरसंहार, अपहरण, लूट, आगजनी और महिलाओं के खिलाफ अकल्पनीय हिंसा के कृत्यों में पाकिस्तानी सेना के साथ सहयोग किया।

अनुमान के मुताबिक लगभग 200,000 से 400,000 महिलाएँ बलात्कार और यौन दासता का शिकार हुईं, जो एक क्रूर संघर्ष में मोहरे बनकर रह गईं। यूरोपीय संघ के प्रतिनिधिमंडल और ऐसे भयावह अतीत वाले संगठन के बीच बैठक इन अत्याचारों के पीड़ितों का अपमान है और एक निराशाजनक संकेत है कि यूरोपीय संघ राजनीतिक लाभ के नाम पर इन गंभीर अन्यायों को नजरअंदाज करने के लिए तैयार हो सकता है।

यूरोपीय संघ प्रतिनिधिमंडल व बांग्लादेश जमात-ए-इस्लामी की बैठक, क्या हो रहा है यूरोपीय मूल्यों का हनन!

यह बात हैरान करने वाली है कि यूरोपीय संघ जमात-ए-इस्लामी के साथ दोस्ती करेगा, जिसका अतीत घृणित और वर्तमान चिंताजनक है। जेईआई का चार्टर – लोकतंत्र के विपरीत – लोकतांत्रिक संस्थानों के उन्मूलन के माध्यम से एक इस्लामी राज्य की स्थापना की कल्पना करता है। एक राजनीतिक दल के रूप में इसका पंजीकरण देश के संविधान के साथ असंगतता के कारण बांग्लादेश उच्च न्यायालय द्वारा उचित रूप से रद्द कर दिया गया था।

जेईआई इस्लाम के कट्टरपंथी स्वरूप का प्रचार करना, महिलाओं का अवमूल्यन करना और जहरीली विचारधारा का प्रचार करना जारी रखता है। वे घोषणा करते हैं कि एक महिला का एकमात्र ‘करियर’ बच्चों का पालन-पोषण करना चाहिए, कि कामकाजी महिलाएं अपनी प्रजनन क्षमता और ‘नारीत्व’ खो देती हैं और महिलाओं को ‘फितना’ को रोकने के लिए विशेष रूप से महिलाओं के साथ काम करना चाहिए। वे नग्न महिलाओं को हीन घोषित करके, मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा (यूडीएचआर), महिलाओं के खिलाफ सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर कन्वेंशन और महिलाओं के अधिकारों को कायम रखने वाली विभिन्न अन्य घोषणाओं के सिद्धांतों का उल्लंघन करके महिलाओं पर और अधिक अत्याचार करते हैं। इसके उलट यूरोप की आधारशिला लोकतंत्र, न्याय और स्वतंत्रता के सिद्धांतों पर आधारित है।

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परेशान करने वाले कई तथ्यों के साथ आतंकवाद और कट्टरपंथ में जेईआई की भागीदारी चिंता को और बढ़ा देती है। जेईआई और आईएसआईएस बांग्लादेश और हरकत उल जिहाद आई इस्लामी बांग्लादेश (हुजी बी) जैसे अमेरिकी विदेश विभाग द्वारा नामित विदेशी आतंकवादी संगठनों के बीच घनिष्ठ संबंध एक स्पष्ट प्रमाण है। आईएसआईएस बांग्लादेश का नेता मोहम्मद कमरुल हसन जेईआई का सदस्य है। इसके अलावा बांग्लादेश और ब्रिटेन द्वारा मान्यता प्राप्त आतंकवादी समूह जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश (जेएमबी) के भी जेईआई के साथ गहरे संबंध हैं। शेख हसीना सहित नागरिकों और राजनीतिक नेताओं को निशाना बनाकर 2005 में किए गए उसके विनाशकारी बमबारी हमलों से जेईआई के गंभीर खतरे का पता चलता है।

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ऐसी इकाई के साथ यूरोप का जुड़ाव एक भयावह संदेश भेजता है। यूरोपीय संघ का इतिहास अधिनायकवादी शासन के खिलाफ लड़ाई से चिह्नित है। जेईआई के साथ सहयोग यूरोपीय सिद्धांतों के मूल सार का खंडन करता है। महिलाओं के अधिकारों और लोकतंत्र के लिए उस कठिन संघर्ष को कमजोर करता है, जिसके लिए यूरोपीय, पुरुष और महिलाएं समान रूप से लड़े हैं।

एक ऐसी संस्था के साथ जुड़ाव की मांग करके जो अपनी आधी आबादी का अवमूल्यन करती है, चुपचाप उनकी विचारधारा को मंजूरी दे देना है। यह कूटनीतिक सुविधा का मामला नहीं है, बल्कि सिद्धांत का मुद्दा है। यूरोपीय संघ को लोकतांत्रिक मूल्यों, मानवाधिकारों और लैंगिक समानता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता बरकरार रखनी चाहिए और राजनीतिक सुविधा के लिए इन सिद्धांतों को खतरे में नहीं डालना चाहिए।

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भारत भी इनकी दोस्ती का विरोध करता है भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भी कहा है कि कहीं न कहीं यूरोप को इस मानसिकता से बाहर निकलना होगा कि यूरोप की समस्याएँ दुनिया की समस्याएँ हैं लेकिन दुनिया की समस्याएँ यूरोप की समस्याएँ नहीं हैं। बांग्लादेश, एक राष्ट्र जो अपने अतीत के घावों से उबर रहा है, एक लोकतांत्रिक और न्यायसंगत समाज के निर्माण में सभी के  समर्थन का हकदार है। हमारा व्यवहार उन लोगों के साथ होना चाहिए जो सभी व्यक्तियों के मौलिक अधिकारों का सम्मान करते हैं, न कि जेईआई जैसी संस्थाओं के साथ, जिनकी विचारधारा और कार्य हमारे प्रिय मूल्यों का घोर अपमान हैं।

लोकतंत्र और मानवाधिकारों के लिए वैश्विक संघर्ष में यूरोप की भूमिका है। हमें दृढ़ रहना चाहिए, उन सिद्धांतों का पालन करना चाहिए जिन्हें हमने वैश्विक मानवाधिकार घोषणाओं में बड़ी मेहनत से स्थापित किया है, और उन ताकतों को स्पष्ट रूप से अस्वीकार करना चाहिए जो इन मूल्यों को कमजोर करना चाहते हैं।

रिपोर्ट-शाश्वत तिवारी

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