भारत के सभी पर्व उत्सव प्रकृति संरक्षण और सामाजिक समरसता के अनुरूप होते हैं। इनसे जहां एक ओर प्रकृति के संरक्षण और संवर्धन का संदेश मिलता है। दूसरी तरफ समाजिक समरसता का संदेश मिलता है। मकर संक्रांति भी इसी प्रकार का पर्व है। राष्ट्रीय स्वयसेवक संघ भी शक्तिशाली समाज निर्माण की दिशा में समर्पित भाव से कार्य करता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने मकर संक्रांति पर सामाजिक समरसता का संदेश दिया। उन्होने सुल्तानपुर में कहा कि अमृत काल में मन, समाज और राष्ट्र की दुर्बलता को दूर करने का प्रयास करना चाहिए।
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संघ देश के नव संक्रांति के जिस महाभियान को लेकर चल रहा है. समानता एवं समरसता के मंत्र को जीवन में उतारना चाहिए. इसी से हमारा समाज संगठित और शक्तिशाली बनेगा. भेदभाव के लिए समाज में कोई स्थान नहीं होना चाहिए. सामाजिक कमजोरी का लाभ विदेशी आक्रमणकारी उठाते रहे हैं. भारत अब मजबूत हो रहा है. दुनिया में भारत का महत्त्व और प्रभाव बढ़ रहा है. दत्तात्रेय ने कहा कि भारत का उत्थान अब प्रारंभ हो गया है।
हर प्रकार के अंधकार को दूर करने प्रयास करना होगा। जीवन में प्रामाणिता, निःस्वार्थ बुद्धि, प्रयत्न और परिश्रम का भाव होना चाहिए. तभी भारत माता परम वैभव के पद पर पुनः प्रतिष्ठित होंगीं. समाज के हित में निस्वार्थ भाव से कार्य करने की आवश्यता है. उन्होंने कहा कि उदार चरित्र वालों के लिए यह वसुधा कुटुंब होती है.भारतीय दर्शान ने कण कण में ईश्वर का वास माना है.यही भारतीय चिन्तन है. सृष्टि किसी के साथ भेदभाव नहीं करती है। सूर्य,नदी,पेड़ बिना भेदभाव के लोगों को उपकृत करते हैं।
ऐसा ही भाव समाज के प्रति होना चाहिए. अपनी संस्कृति के प्रति गर्व होना चाहिए. उसके अनुरूप ही आचरण करना चाहिए. इसी में देश और समाज का कल्याण समाहित है. इसी में समरसता का विचार है. सरकार्यवाह होसबाले ने कहा कि हमारे पूर्वजों ने त्याग और बलिदान करके देश को स्वतंत्र कराया . उन्होने देश को शक्तिशाली बनाने का सपना देखा था. इसको साकार करना वर्तमान पीढ़ी की जिम्मेदारी है।
भारतीय सभ्यता संस्कृति सर्वाधिक प्राचीन और शास्वत है. ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में हमारी गौरवशाली विरासत है. इसको समझने और उस पर गर्व करने की आवश्यकता है।