करीब 27 महीने पंजाब की रोपड़ जेल में बिताने के बाद यूपी के बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी की घर वापसी आज (6 अप्रैल) हो रही है। बांदा जेल के बैरक नं. 15 में उसका नया ठिकाना बनाया गया है। बांदा जेल से ही उसे एक धमकी के मामले में पंजाब ले जाया गया था। मुख्तार अंसारी को पूर्वांचल के अपराध जगत में खौफ का पर्याय माना जाता रहा है।
1996 से मुख्तार का मऊ विधानसभा सीट पर कब्जा है। कभी निर्दलीय तो कभी एसपी का साथ तो कभी बीएसपी, पार्टियां बदलने के बावजूद मुख्तार का सियासी रसूख कायम रहा। वहीं 29 नवंबर 2005 को कृष्णानंद राय हत्याकांड से पूर्वांचल दहल उठा था। इस वारदात में भी मुख्तार अंसारी का नाम आया। गाजीपुर के मुहम्मदाबाद थाने में हिस्ट्रीशीट नंबर-16 बी में मुख्तार का पूरा कच्चा चिट्ठा है। आइए जानते हैं मुख्तार की क्राइम कुंडली…
1988 में मुख्तार अंसारी के खिलाफ सबसे पहला 302 यानी हत्या का केस गाजीपुर कोतवाली में दर्ज हुआ। यह मामला अभी कोर्ट में चल रहा है। इसके बाद वाराणसी के कैंट थाने में हत्या का दूसरा केस मुख्तार पर दर्ज हुआ। इस मर्डर केस को कोयले के ठेके में वर्चस्व की जंग के रूप में देखा गया था। यह पहला मौका था जब पूर्वांचल के माफिया डॉन मुख्तार अंसारी और बृजेश सिंह का आमना-सामना हुआ। इस मर्डर केस में बताया जाता है कि हत्या के मामले में जेल में बंद बृजेश सिंह की मुलाकात गाजीपुर के मुडियार गांव के त्रिभुवन सिंह से हुई। दोनों के बीच दोस्ती हो गई। त्रिभुवन सिंह का भाई हेड कॉन्स्टेबल राजेंद्र सिंह वाराणसी पुलिस लाइन में तैनात था। अक्टूबर 1988 में साधू सिंह ने राजेंद्र सिंह की हत्या कर दी। कैंट थाने में साधू सिंह के अलावा मुख्तार अंसारी और गाजीपुर निवासी भीम सिंह को भी 302 केस में नामजद आरोपी बनाया गया था।
इसके बाद तो मुख्तार की हिस्ट्रीशीट मुकदमों का पुलिंदा बन गई। 1991 में मुख्तार के खिलाफ गाजीपुर के मुहम्मदाबाद थाने और कोतवाली गाजीपुर में हत्या के दो केस दर्ज हुए। पहला मामला कोर्ट में विचाराधीन है, जबकि दूसरे मामले में गवाहों और सबूतों के अभाव में वह बरी हो चुका है। 1991 में ही चंदौली जिले के मुगलसराय में मुख्तार के खिलाफ 302 का एक और मुकदमा दर्ज हुआ। इसके बाद 1996 में गाजीपुर के मुहम्मदाबाद थाने में उसके खिलाफ हत्या का केस मुकदमा दर्ज हुआ। यह मामला भी अंडरट्रायल है। वाराणसी के भेलूपुर और चेतगंज थाने में 1990 और 1991 में उसके खिलाफ 302 का केस दर्ज हुआ। भेलूपुर वाले मामले में फाइनल रिपोर्ट लग चुकी है।
मुख्तार की हिस्ट्रीशीट 16-बी को खंगाले तो उसके खिलाफ 32 साल के आपराधिक जीवन में 302 यानी हत्या के 18 केस दर्ज हो चुके हैं। वहीं हत्या के प्रयास (307) के 10 मुकदमे दर्ज हैं। इसके अलावा टाडा, गैंगस्टर ऐक्ट, एनएसए (राष्ट्रीय सुरक्षा कानून) और आर्म्स ऐक्ट के अलावा मकोका ऐक्ट के तहत भी उसके खिलाफ केस दर्ज हैं। ऐसा कहा जाता है कि मुख्तार ने अपराध की दुनिया में दबदबा बनाने के लिए डी-5 के नाम से अपना गैंग बनाया था। पूर्वांचल के अपराध जगत के जानकार बताते हैं कि कृष्णानंद राय हत्याकांड के बाद यह गैंग बनाया गया था। इसी गैंग के सदस्य राकेश पांडेय उर्फ हनुमान पांडेय को पिछले साल अगस्त में लखनऊ के सरोजिनीनगर इलाके में मुठभेड़ के दौरान मार गिराया गया था। उस पर एक लाख का इनाम था। इस डी-5 गैंग में मुख्तार अंसारी, मुन्ना बजरंगी, अंगद राय, गोरा राय और राकेश पांडेय उर्फ हनुमान शामिल थे।
2005 में मुहम्मदाबाद से बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय हत्याकांड के बाद पूर्वांचल के अपराध जगत में मुख्तार का एकछत्र राज हो गया था। कृष्णानंद राय की बृजेश गैंग से करीबी को इसकी वजह माना जाता है। वहीं कृष्णानंद ने विधानसभा चुनाव में मुख्तार के सबसे बड़े भाई सिबगतउल्ला अंसारी को शिकस्त दी थी। इससे मुख्तार की कृष्णानंद से रंजिश बढ़ गई थी। इसी तनातनी के बीच मुख्तार पर लखनऊ से लौटते वक्त उसरी चट्टी के पास हमला हुआ। फायरिंग के बीच मुख्तार गैंग के कई साथी मारे गए, लेकिन मुख्तार बाल-बाल बच गया।
पूर्वांचल के अपराध जगत के सूत्रों की मानें तो इस हमले में सीधे बृजेश सिंह ने एके-47 से गोलियां चलाई थीं। अंधाधुंध फायरिंग में बृजेश को भी गोली लगी, हालांकि इस दौरान वह फरार होने में कामयाब रहा। इस वारदात के बाद मुख्तार ने किसी तरह कृष्णानंद राय को रास्ते से हटाने की ठान ली थी। 29 नवंबर 2005 को कृष्णानंद राय के काफिले पर अंधाधुंध फायरिंग हुई। बताया जाता है कि इस दौरान एके-47 से लैस हमलावरों ने 400 राउंड गोलियां चलाई थीं। इसमें कृष्णानंद राय, उनके गनर और ड्राइवर समेत 7 की मौत हो गई थी।
कहा जाता है कि मुख्तार के निर्देश पर इस हमले को दुर्दांत प्रेम प्रकाश सिंह उर्फ मुन्ना बजरंगी, राकेश पांडेय उर्फ हनुमान पांडेय और संजीव माहेश्वरी उर्फ जीवा ने अंजाम दिया था। पोस्टमॉर्टम में राय के शव से 21 गोलियां निकली थीं। पूर्वांचल के जानकार बताते हैं उस दौर में कृष्णानंद राय की चोटी का काफी क्रेज हो गया था। हनुमान पांडेय ने ही हत्या के बाद कृष्णानंद की चोटी काटी थी। इस बात का जिक्र एक कथित ऑडियो में भी है। इसमें मुख्तार और हत्याकांड में शामिल लोगों की बातचीत है।